CBI Spacial कोर्ट का बड़ा फैसला-बाबरी केस में अडवानी, उमाभारती, कल्सयाण सिंह सहित सभी आरोपी बरी, जज ने कहा- घटना पूर्व नियोजित नहीं थी

बाबरी का विवादित ढांचा ढहाए जाने को लेकर लखनऊ की स्पेशल कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया। जज एसके यादव ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 32 आरोपियोंं को बरी कर दिया। कुल 48 लोगों पर आरोप लगे थे, जिनमें से 16 की मौत हो चुकी है।

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लखनऊ. बाबरी का विवादित ढांचा ढहाए जाने को लेकर लखनऊ की स्पेशल कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया। जज एसके यादव ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 32 आरोपियोंं को बरी कर दिया। कुल 48 लोगों पर आरोप लगे थे, जिनमें से 16 की मौत हो चुकी है।

स्पेशल कोर्ट के जज ने फैसले में ये टिप्पणियां कीं

  • ढांचा ढहाने की घटना अचानक हुई थी। 6 दिसंबर 1992 को दोपहर 12 बजे ढांचे के पीछे से पथराव शुरू हुआ।
  • अशोक सिंघल ढांचा सुरक्षित रखना चाहते थे, क्योंकि वहां मूर्तियां थीं।
  • कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लाने को कहा गया था।
  • अखबारों में लिखी बातों को सबूत नहीं मान सकते।
  • तस्वीरों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते। तस्वीरों के निगेटिव पेश नहीं किए गए।

इस केस में ये 32 आरोपी थे

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमरनाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, साक्षी महाराज, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धर्मेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ और धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।

अदालत में बचाव पक्ष की दलील

  • सबूत के तौर पर सिर्फ फोटो और वीडियो थे। फोटो के निगेटिव नहीं थे। जो वीडियो थे, उनमें बीच-बीच में न्यूज भी थी, लिहाजा वे ज्यादा भरोसेमंद नहीं थे।
  • जो कारसेवक मौके पर थे, उसकी मंशा ढांचे को गिराने की नहीं थी। चूंकि, वहां रामलला की मूर्ति मौजूद थी, कारसेवक उस ढांचे को गिराते तो मूर्ति को भी नुकसान पहुंचता।

6 नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़े

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, शिवसेना के पूर्व सांसद सतीश प्रधान, महंत नृत्य गोपाल दास और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्टरूम से जुड़े। इनके अलावा अन्य सभी 26 आरोपी कोर्टरूम में मौजूद थे। बाबरी केस विशेष जज एसके यादव के कार्यकाल का अंतिम फैसला रहा। वे 30 सितंबर 2019 को रिटायर होने वाले थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 30 सितंबर 2020 तक (फैसला सुनाने तक) सेवा विस्तार दिया।

अपडेट्स…

  • बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अदालत का फैसला आ गया है. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ उस पर सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया. अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, एमपी की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, बीजेपी के सीनियर नेता विनय कटियार समेत कुल 32 आरोपियों को बरी कर दिया है.
  • अपना फैसला पढ़ते हुए जज एसके यादव ने कहा गया कि ये घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, संगठन के द्वारा कई बार रोकने का प्रयास किया गया. जज ने अपने शुरुआती कमेंट में कहा कि ये घटना अचानक ही हुई थी.
  • कोर्ट में 6 आरोपी मौजूद नहीं हैं। लालकृष्ण आडवाणी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट से जुड़ेंगे। वहीं, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, शिवसेना के पूर्व सांसद सतीश प्रधान, महंत नृत्य गोपाल दास, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी कोर्ट नहीं पहुंचे। इनके अलावा अन्य सभी आरोपी मौजूद हैं। 12 बजे 2 के बीच कोर्ट फैसला सुनाएगा। विशेष जज एसके यादव कोर्ट में पहुंच चुके हैं।
  • विशेष जज एसके यादव के कार्यकाल का आज अंतिम फैसला होगा। 30 सितंबर 2019 को रिटायर होने वाले थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 30 सितंबर 2020 तक सेवा विस्तार दिया।
  • अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का शुभारंभ होने के बाद अब बाबरी विध्वंस केस में फैसले की घड़ी भी आ गई है. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के स्पेशल जज सुरेंद्र कुमार यादव आज इस मामले में फैसला सुनाने के साथ ही रिटायर हो जाएंगे.
  • चंद मिनटों के बाद अदालत की सुनवाई शुरू होगी. कोर्ट रूम में जज के ठीक सामने पहली पंक्ति में साक्षी महाराज, वेंदाती महाराज, विनय कटियार और अन्य लोग बैठे हैं. जज अपने चेंबर में हैं और जल्द ही कोर्ट रूम में आएंगे.
  • उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल के कोविड-19 के अपने निजी रूम में सुबह से टीवी देख रहे हैं. 16 तारीख से कोविड-19 के चलते कौशांबी के यशोदा अस्पताल में एडमिट हैं. अस्पताल के मुताबिक उनकी हालत में काफी सुधार हुआ है.
  • लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, नृत्य गोपाल दास, कल्याण सिंह और सतीश प्रधान को छोड़कर अन्य सभी 26 अभियुक्त अदालत में मौजूद हैं.
  • साक्षी महाराज भी लखनऊ कोर्ट में पहुंच गए हैं. अब सभी आरोपी अदालत में पहुंच गए हैं, जबकि कुछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए फैसले को सुन रहे हैं. सीबीआई के वकील पी. चक्रवर्ती भी अदालत में पहुंच गए हैं. कुछ ही देर में सुनवाई शुरू हो सकती है.
  • लाल कृष्ण आडवाणी,  मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, महंत नृत्यगोपाल दास समेत 6 लोग कोर्ट में पेश नहीं होंगे. आज इन सभी की तरफ से निजी तौर पर पेश होने की छूट के लिए वकील कोर्ट में अर्जी पेश करेंगे. उनके लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कोर्ट की कार्यवाही में शामिल होने और हर हाल में कोर्ट के फैसले पर सहयोग की अंडर टेकिंग दी जाएगी.
  • पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए फैसला सुनेंगे. राम विलास वेदांती, साध्वी ऋतंभरा कोर्ट पहुंच गई हैं. कोर्ट के अंदर 16 कुर्सियां लगाई गई हैं.
  • बाबरी विध्वंस केस के आरोपी विनय कटियार भी अदालत पहुंच गए हैं. इससे पहले आजतक से बात करते हुए विनय कटियार ने कहा कि सजा होगी तो जेल जाएंगे, छूटते हैं तो देखेंगे. बेल होगी तो लेंगे. हमने कोई अपराध किया ही नहीं है. वहां पर मंदिर था और मंदिर बनेगा. सोमनाथ मंदिर की तरह बढ़िया मंदिर बनेगा, ऐसी कल्पना है. उसके लिए काम जारी है. 4 साल में मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा.

6 दिसम्बर 1992 को 10 मिनट के अंतराल पर दर्ज हुईं दो एफआईआर

  • पहली एफआईआर मुकदमा संख्या 197/92 को प्रियवदन नाथ शुक्ल ने शाम 5:15 पर बाबरी मस्जिद ढहाने के मामले में तमाम अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 395, 397, 332, 337, 338, 295, 297 और 153ए में मुकदमा दर्ज किया।
  • दूसरी एफआईआर मुकदमा संख्या 198/92 को चौकी इंचार्ज गंगा प्रसाद तिवारी की तरफ से आठ नामजद लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया, जिसमें भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, तत्कालीन सांसद और बजरंग दल प्रमुख विनय कटियार, तत्कालीन वीएचपी महासचिव अशोक सिंघल, साध्वी ऋतंभरा, विष्णु हरि डालमिया और गिरिराज किशोर शामिल थे। इनके खिलाफ धारा 153ए, 153बी, 505 में मुकदमा लिखा गया।
  • बाद में जनवरी 1993 में 47 अन्य मुकदमे दर्ज कराए गए, जिनमें पत्रकारों से मारपीट और लूटपाट जैसे आरोप थे।
  • 1993 में हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ में बनी विशेष अदालत
    1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ में विशेष अदालत बनाई गई थी, जिसमें मुकदमा संख्या 197/92 की सुनवाई होनी थी। इस केस में हाईकोर्ट की सलाह पर 120बी की धारा जोड़ी गई, जबकि मूल एफआईआर में यह धारा नहीं जोड़ी गई थी। अक्टूबर 1993 में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में 198/92 मुकदमे को भी जोड़कर संयुक्त चार्जशीट फाइल की। क्योंकि दोनों मामले जुड़े हुए थे।उसी आरोप पत्र में विवेचना में आए नाम बाल ठाकरे, नृत्य गोपाल दास, कल्याण सिंह, चम्पत राय जैसे 48 नाम जोड़े गए। केस से जुड़े वकील मजहरुद्दीन बताते हैं कि सीबीआई की सभी चार्जशीट मिला लें तो दो से ढाई हजार पन्नों की चार्जशीट रही होगी।यूपी सरकार की एक गलती से अलग-अलग जिलों में हुई सुनवाई
    अक्टूबर 1993 में जब सीबीआई ने संयुक्त चार्जशीट दाखिल की तो कोर्ट ने माना कि दोनों केस एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए दोनों केस की सुनवाई लखनऊ में बनी विशेष अदालत में होगी, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी समेत दूसरे आरोपियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।दलील में कहा गया कि जब लखनऊ में विशेष कोर्ट का गठन हुआ तो अधिसूचना में मुकदमा संख्या 198/92 को नहीं जोड़ा गया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को आदेश दिया कि मुकदमा संख्या 198/92 में चार्जशीट रायबरेली कोर्ट में फाइल करे।जब कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया
    2003 में सीबीआई ने चार्जशीट तो दाखिल की, लेकिन आपराधिक साजिश की धारा 120 बी नहीं जोड़ सके। चूंकि, दोनों मुकदमे अलग थे, ऐसे में रायबरेली कोर्ट ने आठ आरोपियों को इसलिए बरी कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ मुकदमे में पर्याप्त सबूत नहीं थे। इस मामले में दूसरा पक्ष हाईकोर्ट चला गया तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005 में रायबरेली कोर्ट का आर्डर रद्द किया और आदेश दिया कि सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलता रहेगा।2007 से शुरू हुआ ट्रायल, हुई पहली गवाही
    इसके बाद मामले में ट्रायल शुरू हुआ और 2007 में पहली गवाही हुई। केस से जुड़े वकील केके मिश्रा बताते हैं कि कुल 994 गवाहों की लिस्ट थी, जिसमें से 351 की गवाही हुई। इसमें 198/92 मुकदमा संख्या में 57 गवाहियां हुईं, जबकि मुकदमा संख्या 197/92 में 294 गवाह पेश हुए। कोई मर गया, किसी का एड्रेस गलत था तो कोई अपने पते पर नहीं मिला।जून 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ मामले की सुनवाई के आदेश दिए
    हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 2011 में सीबीआई सुप्रीम कोर्ट गई। अपनी याचिका में उसने दोनों मामलों में संयुक्त रूप से लखनऊ में बनी विशेष अदालत में चलाने और आपराधिक साजिश का मुकदमा जोड़ने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चलती रही। जून 2017 में हाईकोर्ट ने सीबीआई के पक्ष में फैसला सुनाया।यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने दो साल में इस केस को खत्म करने की समय सीमा भी तय कर दी। 2019 अप्रैल में वह समय सीमा खत्म हुई तो नौ महीने की डेडलाइन फिर मिली। इसके बाद कोरोना संकट को देखते हुए 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी करने का और 30 सितंबर को फैसला सुनाने का समय दिया गया है।17 साल चली लिब्रहान आयोग की जांच, 48 बार मिला विस्तार
    6 दिसंबर 1992 के 10 दिन बाद केंद्र सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन कर दिया, जिसे तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन आयोग की जांच पूरी होने में 17 साल लग गए। जानकारी के मुताबिक, इस दौरान तकरीबन 48 बार आयोग को विस्तार मिला।मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयोग पर आठ से दस करोड़ रुपए भी खर्च किए गए। 30 जून 2009 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। जांच रिपोर्ट का कोई भी प्रयोग मुकदमे में नहीं हो पाया न ही सीबीआई ने आयोग के किसी सदस्य का बयान लिया।

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है। इस भूमि पर 1992 तक विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) था, जिसे छह दिसंबर को कारसेवकों ने ढहा दिया था। इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। अब 27 साल फैसले की घड़ी आई है। 30 सितंबर को सीबीआई की विशेष अदालत अपना फैसला सुनाएगी। इसमें पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व सीएम कल्याण सिंह, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी जैसे बड़े नेता समेत 32 आरोपी शामिल हैं। सभी को अदालत में रहना होगा।

एक सितंबर को इस मामले में बचाव और अभियोजन पक्ष की मौखिक बहस पूरी हुई थी। इसके साथ ही करीब रोज-ब-रोज हो रही मामले की अंतिम सुनवाई भी मुकम्मल हो गई थी। दो सितंबर से अदालत ने अपना फैसला लिखना शुरू कर दिया था। आइए जानते हैं 27 साल में हुए 17 बड़े घटनाक्रम के बारे में…

दो एफआईआर पुलिसवालों ने तो 47 एफआईआर पत्रकारों ने दर्ज कराए थे

06 दिसंबर 1992: विवादित ढांचा ढहाया गया। कुल 49 एफआईआर दर्ज हुए थे। एक एफआईआर फैजाबाद के थाना राम जन्मभूमि में एसओ प्रियवंदा नाथ शुक्ला, जबकि दूसरी एफआईआर एसआई गंगा प्रसाद तिवारी ने दर्ज कराई थी। शेष 47 एफआईआर अलग-अलग तारीखों पर अलग-अलग पत्रकारों व फोटोग्राफरों ने भी दर्ज कराए थे।

05 अक्टूबर 1993: सीबीआई ने जांच के बाद कुल 49 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें 13 अभियुक्तों को विशेष अदालत ने आरोप के स्तर पर ही डिस्चार्ज कर दिया था। सीबीआई की ओर से इस आदेश को पहले हाईकोर्ट व बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में फैजाबाद के तत्कालीन डीएम आरएन श्रीवास्तव समेत कुल 28 अभियुक्तों के मुकदमे की कार्यवाही शुरु हो गई। जबकि, लालकृष्ण आडवाणी समेत 8 अभियुक्तों के मामले की कार्रवाई रायबरेली की विशेष अदालत में चलने लगी। इस दरम्यान अशोक सिंघल व गिरिराज किशोर की मौत हो गई।

रायबरेली से केस लखनऊ हुआ ट्रांसफर

19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने रायबरेली की विशेष अदालत में चल रही कार्यवाही को लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में स्थानांतरित कर दिया। साथ ही इस मामले के अभियुक्तों पर आपराधिक षडयंत्र के तहत भी आरोप तय करने का आदेश दिया। पूर्व में आरोप के स्तर पर डिस्चार्ज किए गए अभियुक्तों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने का आदेश दिया।

18 मई 2017: सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) ने डिस्चार्ज हो चुके 13 अभियुक्तों में छह अभियुक्तों को जरिए समन तलब किया। क्योंकि, तब तक छह अभियुक्तों की मौत हो चुकी थी। जबकि गर्वनर होने के नाते कल्याण सिंह पर आरोप नहीं तय हो सकता था। लिहाजा उन्हें तलब नहीं किया गया था।

सीबीआई के आदेश पर अभियुक्तों पर साजिश का केस दर्ज हुआ

30 मई 2017: सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) ने अभियुक्त एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा व विष्णु हरि डालमिया पर आईपीसी की धारा 120 बी (साजिश रचने) का आरोप मढ़ा। लिहाजा इन सभी अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 149, 153ए, 153बी व 505 (1)बी के साथ ही आईपीसी की धारा 120 बी के तहत भी मुकदमे की कार्रवाई शुरू हुई। लेकिन, इसके बाद विष्णु हरि डालमिया की मौत हो गई।

इसके साथ ही महंत नृत्य गोपाल दास, महंत राम विलास वेदांती, बैकुंठ लाल शर्मा उर्फ प्रेमजी, चंपत राय बंसल, धर्मदास और डॉ. सतीश प्रधान पर भी आईपीसी की धारा 147, 149, 153ए, 153बी, 295, 295ए व 505 (1)बी के साथ ही धारा 120 बी के तहत भी आरोप तय हुआ। इससे पहले सभी अभियुक्तों की डिस्चार्ज अर्जी खारिज हो गई थी।

इसके बाद 27 सितंबर, 2019 को कल्याण सिंह पर भी आईपीसी की धारा 120बी, 153ए, 153बी, 295, 295ए व 505 के तहत आरोप तय हुआ। इस तरह 49 में कुल 32 अभियुक्तों के मुकदमे की कार्यवाही शुरु हो गई। क्योंकि तब तक 17 अभियुक्तों की मौत हो चुकी थी।

साल 2017 ने मामले ने तेजी पकड़ी

31 मई 2017: इस मामले में अभियोजन की गवाही शुरु।
13 मार्च 2020: सीबीआई की गवाही की प्रक्रिया व बचाव पक्ष की जिरह भी पूरी, 351 गवाह व 600 दस्तावेजी साक्ष्य पेश।
04 जून 2020: अभियुक्तों का सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज होना शुरू।
28 जुलाई 2020: 32 में से 31 अभियुक्तों का सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज होने की कार्यवाही पूरी। जबकि, एक अभियुक्त ओम प्रकाश पांडेय फरार घोषित, इसकी पत्रावली अलग। शेष अभियुक्तों को सफाई साक्ष्य पेश करने का आदेश।
13 अगस्त 2020: अभियुक्त ओम प्रकाश पांडेय का आत्मसमर्पण, जमानत पर रिहा, बयान दर्ज। इधर, कल्याण सिंह का सफाई साक्ष्य दाखिल।
14 अगस्त 2020: सफाई साक्ष्य की प्रक्रिया पूरी मानते हुए विशेष अदालत ने सीबीआई को लिखित बहस दाखिल करने का दिया आदेश।
18 अगस्त 2020: सीबीआई ने 400 पन्नों की लिखित बहस दाखिल की। बहस की प्रति बचाव पक्ष को भी मुहैया कराई गई।
24 अगस्त 2020: अभियोजन के दो गवाह हाजी महबूब अहमद व सैयद अखलाक ने लिखित बहस दाखिल करने की अर्जी दी।
25 अगस्त 2020: अर्जी खारिज।
26 अगस्त 2020: बचाव पक्ष को लिखित बहस दाखिल करने का अंतिम मौका
31 अगस्त 2020: सभी अभियुक्तों की ओर से लिखित बहस दाखिल। बहस की प्रति अभियोजन को भी मुहैया कराई गई।
01 सितंबर 2020: दोनों पक्षों की मौखिक बहस भी पूरी।

बाबरी मस्जिद केस में ये हैं अभियुक्त
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धमेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ व धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।

कहानी रामलला के पुजारी की:सत्येंद्र दास कहते हैं, जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था, सुबह 11 बज रहे थे, हम रामलला को उठाकर अलग चले गए, ताकि वो सुरक्षित रहें

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी हैं सत्येंद्र दास। कहते हैं “सबसे बड़ी बात है कि राममंदिर बन रहा है। 28 साल से मैं पुजारी के रूप में रामलला की सेवा कर रहा हूं। मन मे एक टीस थी कि रामलला टेंट में हैं, लेकिन ठाकुर जी की कृपा से सब सही हो गया। अब हमारे आराध्य श्री राम टाट से निकल कर ठाट में आ गए हैं।

चूंकि, अब ट्रस्ट बन गया है मंदिर बनने के बाद मैं आगे पुजारी रहूंगा या नहीं, यह नहीं कह सकता हूं। क्योंकि बीच मे मेरे रिश्ते विहिप से खराब हो गए थे। साल 2000 में अशोक सिंघल समेत कई बड़े विहिप के नेता जबरदस्ती जन्मस्थान में घुस आए थे। उनके पीछे मीडिया भी थी।

तत्कालीन डीएम भगवती प्रसाद मामले को रफा-दफा करना चाह रहे थे। लेकिन, मीडिया में खबर चलने के बाद यह संभव नही हो सका। बाद में पत्रकारों ने हमसे भी पूछा तो हमने भी नाम बता दिया। इसके बाद विहिप वाले हमसे नाराज हो गए।

हालांकि, हमने संबंध बनाए रखा, लेकिन सही बात यह है कि अब वो बात नहीं है। 80 साल उम्र हो चुकी है। रामलला की सेवा में 28 साल बिता दिए हैं। अगर मौका मिलेगा तो बाकी जिंदगी भी उन्हीं की सेवा में बिताना चाहता हूं।’

अभी तक हम सभी उन्हें एक पुजारी के रूप में जानते आए हैं। आज हम आपको उनकी पिछली जिंदगी में ले चलते हैं।

1958 में घर छोड़ चले आए थे अयोध्या
सत्येंद्र दास बताते हैं कि मैं संत कबीरनगर का रहने वाला हूं। अपने पिताजी के साथ बचपन से अयोध्या आता रहता था। उस समय आसपास का माहौल भी बहुत धार्मिक रहता था। पिता जी अभिराम दास जी के पास आया करते थे। अभिराम दास वही हैं जिन्होंने राम जन्मभूमि में 1949 में गर्भगृह में मूर्तियां रखीं थी। उनसे भी मैं प्रभावित था।

साथ ही पढ़ने की इच्छा थी, तो 8 फरवरी 1958 को मैं अयोध्या आ गया। मेरे परिवार में हम दो भाई और एक बहन थी। जब पिताजी को पता चला कि मैं संन्यासी बनना चाहता हूं तो उन्हें बड़ी खुशी हुई। उन्होंने कहा कि एक भाई घर पर रहेगा और एक भगवान की सेवा में जाएगा। फिर मैं चला आया। अब परिवार में भाई है। कभी-कभी आता-जाता रहता है। त्योहार, उत्सव, पूजा इत्यादि पर मैं भी घर जाता रहता हूं। बहन की मृत्यु हो चुकी है।

राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास दो भाई हैं। उनका एक भाई घर पर है। उनकी बहन का निधन हो चुका है।
राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास दो भाई हैं। उनका एक भाई घर पर है। उनकी बहन का निधन हो चुका है।

1976 में मिली सहायक अध्यापक की नौकरी
सत्येंद्र दास बताते हैं कि यहां मैंने संस्कृत विद्यालय से आचार्य 1975 में पास किया। 1976 में फिर अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभाग में सहायक अध्यापक की नौकरी मिल गई। उस समय 75 रुपए तनख्वाह थी। इस दौरान मैं राम जन्मभूमि भी आया जाया करता था। श्री अभिराम दास हमारे गुरु थे। इस दौरान मैं कथा, पूजा इत्यादि भी करने जाया करता था। नवरात्रों में जन्मभूमि में कलश स्थापना का कार्य भी करता था। तब कभी नहीं सोचा था कि कभी यहां का मुख्य पुजारी बनूंगा।

1 मार्च 1992 को को मिला रामलला की सेवा का मौका
सत्येंद्र दास कहते हैं कि सब कुछ जीवन में सामान्य चल रहा था। 1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे। उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी। उस समय जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे। उनकी फरवरी 1992 में मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया। तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई।

उस समय मैं तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार विहिप के नेताओं और कई संत जो विहिप नेताओं के संपर्क में थे, उनसे मेरा घनिष्ठ संबंध था। सबने मेरे नाम का निर्णय किया। तत्कालीन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल की भी सहमति मिल चुकी थी। जिला प्रशासन को सबने अवगत कराया और इस तरह 1 मार्च 1992 को मेरी नियुक्ति हो गई। मुझे अधिकार दिया गया कि मैं अपने 4 सहायक पुजारी भी रख सकता हूं। तब मैंने 4 सहायक पुजारियों को रखा।

सत्येंद्र दास 28 साल से रामलला की सेवा कर रहे हैं।
सत्येंद्र दास 28 साल से रामलला की सेवा कर रहे हैं।

मंदिर से स्कूल और स्कूल से मंदिर यही दिनचर्या थी
सत्येंद्र दास बताते हैं कि उस समय स्कूल और मंदिर में सामंजस्य बिठाना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन सहायक पुजारियों की वजह से सब आसान हो गया था। सुबह तड़के से 10 बजे तक मंदिर में रहता, फिर 10 बजे से 4 बजे तक स्कूल में रहता। फिर 4 बजे के बाद से शाम तक मंदिर में। इस तरह पूजा का काम भी चल रहा था और स्कूल का भी चल रहा था।

100 रुपए पारिश्रमिक बतौर पुजारी मिलता था
सत्येंद्र दास बताते हैं कि मैं चूंकि सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ाता था, तो मुझे वहां से भी तनख्वाह मिलती थी। ऐसे में मंदिर में मुझे बतौर पुजारी सिर्फ 100 रुपए पारिश्रमिक मिलता था। जब 30 जून 2007 को मैं अध्यापक के पद से रिटायर हुआ, तो मुझे फिर यहां 13 हजार रुपए तनख्वाह मिलने लगी। मेरे सहायक पुजारियों को अभी 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है।

28 साल से रामलला टेंट में विराजमान थे। अब उनका मंदिर बनने जा रहा है।
28 साल से रामलला टेंट में विराजमान थे। अब उनका मंदिर बनने जा रहा है।

जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं रामलला को बचाने में लगा था
सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब बाबरी विध्वंस हुआ तो मैं वहीं था। सुबह 11 बज रहे थे। मंच लगा हुआ था। लाउड स्पीकर लगा था। नेताओं ने कहा पुजारी जी रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। मैंने भोग लगाकर पर्दा लगा दिया। एक दिन पहले ही कारसेवकों से कहा गया था कि आप लोग सरयू से जल ले आएं। वहां एक चबूतरा बनाया गया था।

ऐलान किया गया कि सभी लोग चबूतरे पर पानी छोड़ें और धोएं, लेकिन जो नवयुवक थे उन्होंने कहा हम यहां पानी से धोने नही आए हैं। हम लोग यह कारसेवा नही करेंगे। उसके बाद नारे लगने लगे। सारे नवयुवक उत्साहित थे। वे बैरिकेडिंग तोड़ कर विवादित ढांचे पर पहुंच गए और तोड़ना शुरू कर दिया। इस बीच हम रामलला को बचाने में लग गए कि उन्हें कोई नुकसान न हो। हम रामलला को उठाकर अलग चले गए। जहां उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

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