बठिंडा. आईपीएल-2020 शुरू होते ही शहर में सट्टेबाजी का गौरखधंधा भी शुरू हो गया है। इसमें बेशक हर गली मुहल्ले, होटलों व बाजारों में दुकाने व मकान किराये पर लेकर सट्टेबाज सांय 6 बजे से लेकर देर रात 12 बजे तक इस गौरखधंधे को अंजाम में करोड़ों का गैरकानूनी व्यपार कर रहे हैं। इस तरह के क मामले में जिला पुलिस ने सट्टेबाजों के एक ग्रुप पर नकेल कसने में सफलता हासिल की है। बठिंडा शहर के बीचों-बीच बनी गोलडिग्गी मार्किट में सट्टा खिलवाते व क्रिक्रेट मैच में सट्टा लगाते 13 लोगों के खिलाफ के मामला दर्ज किया है।
इसमें हालांकि पुलिस ने अभी किसी कि गिरफ्तारी नहीं दिकाई है लेकिन कई लोगों को हिरासत में जरूर लिया है। कोतवाली पुलिस के एसआई कौर सिंह ने बताया कि शहर के बीचों बीच माल रोड के पास स्थित गोलडिग्गी में आईपीएल के क्रिक्रेट मैच में सट्टा लगाने का काम जोली वासी मलोट, हैप्पी वासी अबोहर, विपन गर्ग वासी अबोहर, काकू वासी अमृतसर साहिब, राजू, वरुण वासी जिरकपुर, रवि कुमार, पंकज कुमार वासी जिरकपुर, राकेश कुमार वासी भुच्चो मंडी, निखिल वासी बठिंडा, कालू वासी मानसा, अशोक कुमार वासी डबवाली, मोहन लाल, विनोद कुमार वासी पिलिया बंगा राजस्थान आईपीएल मैचों के शुरू होते ही बठिंडा शहर व आसपास के कस्बों में लोगों को गुमराह कर सट्टे लगाने का काम करते थे। इसमें बेशक लाइव मैच पर गेम खेली जाती थी लेकिन उक्त लोगों ने दुबई, मुबंई जैसे बड़े सट्टेबाजों की फेक आईडी नकली ट्रमिनल के माध्यम से बना रखी थी व इसमें ट्रमिंनल लाइसेंस भी किसी के पास नहीं था।
इस तरह से उक्त लोग प्रतिदिन हर मैच पर करोड़ों की गेम खेलते थे। कानूनन सट्टे का धंधा गैरकानूनी है लेकिन इसके बावजूद शहर के कई नामी व्यापारी भी इन लोगों के झांसे में आकर जमा पुंजी गवाने में लगे हैं। पुलिस ने सूचना के आधार पर आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है लेकिन इसमें अभी किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जा सकी है।
क्या है स्पाट फिक्सिंग?
पहले पूरे के पूरे मैच यानी नतीजे फिक्स किए जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब स्पाट और फैंसी फिक्सिंग से ही काम चल जाता है। बठिंडा के एक बुकी के अनुसार, अब मैच फिक्स करने की जरूरत नहीं, स्पॉट फिक्सिंग से ही भरपूर कमाई हो जाती है। स्पॉट फिक्सिंग का अर्थ है मैच के किसी खास हिस्से को फिक्स कर देना। वहीं पंजाब में फैंसी फिक्सिंग काफी लोकप्रिय है। इसमें मैच की एक-एक गेंद पर कितने रन बनेंगे, कौन सा बैट्समैन कितने रन बनाएगा, पूरी पारी में कितने रन बनेंगे, इन सब पर सट्टा लगता है।
कैसे चलता है सट्टेबाजी का धंधा
संचार के नए साधनों के आने के साथ ही सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग इतना बड़ा धंधा हो गया है कि सोचा नहीं जा सकता. इसका नेटवर्क बुहत ही व्यापक है। कराची, जोहानसबर्ग और लंदन जैसे शहर इसके प्रमुख गढ़ हैं. 80 और 90 के दशक में जब वन-डे क्रिकेट के आयोजन शारजाह में शुरू हुए तो इसे और पंख लगे।
रेट कैसे तय होते हैं
भारत में क्रिकेट की जो सट्टेबाजी होती है, वो अवैध है। इसके रेट दुबई या पाकिस्तान में तय होते हैं। वहां से रेट की जानकारी भारतीय उपमहाद्वीप के सटोरियों और अन्य जगहों पर धंधे से जुड़े लोगों को पहुंचाई जाती है। ये रेट सबसे पहले मुंबई पहुंचते हैं, फिर वहां से बड़े बुकिज़ और फिर वहां से छोटे बुकिज़ के पास पहुंचते हैं। अगर किसी टीम को फेवरेट मानकर उसका रेट 80-83 आता है, तो इसका मतलब यह है कि फेवरेट टीम पर 80 लगाने पर एक लाख रुपए मिलेंगे। दूसरी टीम पर 83 हजार लगाने पर एक लाख जीत सकते हैं। लेकिन जिस टीम पर सट्टा लगाया है, वो अगर हार गई तो लगाया गया पूरा पैसा डूब जाएगा। मैच आगे बढ़ने के साथ टीमों के रेट भी बदलते रहते हैं।
कैसे चलता है ये ‘खेल‘
सट्टे पर पैसे लगाने वाले को पंटर कहते हैं। वहीं सट्टे के स्थानीय संचालक को बुकी कहा जाता है। सट्टे के खेल में कोड वर्ड का इस्तेमाल होता है। सट्टा लगाने वाले पंटर दो शब्दों खाया और लगाया का इस्तेमाल करते हैं। यानी किसी टीम को फेवरेट माना जाता है तो उस पर लगे दांव को लगाया कहते हैं। ऐसे में दूसरी टीम पर दांव लगाना हो तो उसे खाना कहते हैं।
क्या होता है सट्टेबाजी का डिब्बा
जिस इंस्ट्रूमेंट में ये रेट आते हैं, उसे सट्टेबाजी की दुनिया में डिब्बा कहा जाता है। ये दरअसल संचार का ही एक उपकरण होता है। जो टेलीफोन लाइन या मोबाइल के जरिए चलता है। इस डिब्बे पर सट्टेबाजी के रेट आते हैं। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में लाइन का ही करोड़ों, अरबों का व्यवसाय है। ये डिब्बा आमतौर पर सटोरियों और मुख्य सटोरियों के पास होता है लेकिन पंटर भी ये कनेक्शन ले सकते हैं। वर्तमान में कई लोग अपना ही ट्रिमनल बना लेते हैं व लोगों को गुमराह कर मिलने वाली राशि अपने पास ही रखकर करोड़ों का मुनाफा कमाते हैं। इसके बदले उन्हें इसका कनेक्शन और किराया बच जाता है। डिब्बे का कनेक्शन एक खास नंबर से होता है, जिसे डायल करते ही उस नंबर पर कमेंट्री शुरू हो जाती है।
क्या होता रेट का कोड वर्ड
मैच की पहली गेंद से लेकर टीम की जीत तक भाव चढ़ते-उतरते हैं। एक लाख को एक पैसा, 50 हजार को अठन्नी, 25 हजार को चवन्नी कहा जाता है। जीत तक भाव चढ़ते उतरते हैं, एक लाख को एक पैसा, 50 हजार को अठन्नी, 25 हजार को चवन्नी कहा जाता है। अगर किसी ने दांव लगा दिया और वह कम करना चाहता है तो फोन कर एजेंट को ‘मैंने चवन्नी खा ली कहना होता है।
कहां तय होते हैं कोड वर्ड
करोड़ों के सट्टे में बुकीज कोड वर्ड के जरिए हर गेंद पर दांव चलते हैं। हैरानी की बात है कि ये कोड नेम हिंदुस्तान से नहीं बल्कि जहां से सट्टे की लाइन शुरू होती है, वहीं इन कोड नेम का नामकरण किया जाता है। जी हां, ये कोड दुबई और कराची में रखे जाते हैं। कोड वर्ड का ये सारा खेल पुलिस की क्राइम ब्रांच से बचने के लिए किया जाता है।