मांस से अलग हो गया नाखून.., दर्द दोनों को होगा, शिअद और भाजपा के संबंध में रहे कई आयाम

पंजाब में 24 साल पुराना शिराेमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूट गया है। शिअद ने कृषि विधयकों के विरोध में यह फैसला किया है। शिअद ने केंद्र सकरार के क‍ृषि विधेयकों को पारित करोन के खिलाफ राजग से बाहर होने का फैसला किया है।

चंडीगढ़। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के नेता दोनाें दलों के संबंध को सियासी से अधिक मांस और नाखून जैसा बताते थे। लेकिन, दोनों दलों का गठबंधन टूटने से मांस से नाखून अलग हो गया है। इससे दोनों को दर्द होगा। यह पीड़ा सियासी और आपसी सद्भाव दोनों पहलुओं पर होगी। 24 साल पुराना यह रिश्‍ता टूटने से दोनाें दलों को पंजाब की राजनीति में चोट देगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पंजाब के पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल। (फाइल फोटो)

भाजपा और शिअद का सियासी गठजोड़ राजग के गठन से पहले का है। दोनों दलों का गठबंधन 1997 में हुआ था। इसके बाद साल 1998 में लोकसभा चुनाव चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का गठन किया गया। राजग के गठन से पहले अटल बिहारी वाजपेयी (दिवंगत प्रधानमंत्री) विभिन्न पार्टियों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे तो कई पार्टियों ने भाजपा के साथ आने से मना कर दिया। उस समय पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पूरी तरह अटल बिहारी वाजपेयी के साथ डटे रहे।

PM Narendra Modi Touches Ally Parkash Singh Badal's Feet, Wins Praise On  Twitter

1997 में विधानसभा चुनाव में हुआ शिअद और भाजपा गठबंधन, 1998 में पहली बार साथ लड़े लोकसभा चुनाव

पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन 1997 में में ही हो गया था और दोनों दलों ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़कर सरकार बनाई। इसके बाद पहली बार दोनों दलों ने 1998 में एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ा। पंजाब में लोकसभा की छह सीटें जीतने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने वाजपेयी सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया। उस दौरान वाजपेयी सरकार बनाने में जरूर कामयाब हुए लेकिन यह सरकार मात्र 13 महीने ही चली। लेकिन शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जो रिश्ता बना, उसे प्रकाश सिंह बादल  नाखून और मांस का रिश्ता कहते रहे।

अकाली दल ने जीती थीं छह सीटें, केंद्र में वाजपेयी सरकार को दिया था बिना शर्त समर्थन

अब गठबंधन के 24 वें साल में कृषि विधेयकों ने नाखून को मांस से अलग कर दिया है, जो दोनों दलों को दर्द जरूर देगा। शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का रिश्ता राजनीतिक नहीं था। यह रिश्ता उस समय बना जब पंजाब 15 साल के आतंकवाद के काले दौर से बाहर आया। पंजाब में हिंदू और सिखों के बीच बना हुआ सामाजिक ताना बाना बुरी तरह से टूट चुका था। दोनों पार्टियों के एकजुट होने से जहां हिंदू और सिखों के बीच की दूरियां समाप्त हुईं वहीं पंजाब में एक बार फि से सौहार्द का माहौल बना।

दोनों पार्टियों ने पहले भी 1978 में मिलकर सरकार बनाई थी। उसमें वामपंथी भी शामिल थे लेकिन शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच पहली सरकार 1997 में बनी। 1997 में शिरोमणि अकाली दल ने 75 सीटें और भाजपा ने 18 सीटें जीतकर मजबूत दावा खड़ा कर दिया। दोनों पार्टियों के बीच दोस्ती का मजबूत आधार थे प्रकाश सिंह बादल और भाजपा नेता बलराम जी दास टंडन।

1998 में जब प्रकाश सिंह बादल ने अटल बिहारी वाजपेयी को समर्थन दिया और एनडीए का गठन हुुआ तो उसमें बादल भी संरक्षक की भूमिका रहे। 1999 में वाजपेयी सरकार मजबूती से उभरकर आए और 2004 तक उन्होंने अपनी सरकार चलाई। इधर, अकाली दल ने भाजपा के साथ मिलकर 2007-12 और 2012-17 में लगातार दो बार सरकार बनाई।

कई बार हुआ मनमुटाव, लेकिन रिश्‍ते रहे कायम

दोनों पार्टियों में अक्सर सरकार चलाने के समय कई फैसलों को लेकर मनमुटाव हुुआ, लेकिन रिश्‍ते कायम रहे। 2007 में पंजाब में उप मुख्यमंत्री बनाने को लेकर, शहरी क्षेत्रों की बिजली दरों में बढ़ोतरी, चुंगी समाप्त करने के मुद्दों पर दोनों दलों में मनमुटाव चलते रहे। परंतु प्रकाश सिंह बादल ने कभी इस गठबंधन को टूटने नहीं दिया। वह अक्सर कहा करते कि नाखून से मांस अलग नहीं हो सकता और कम से कम मेरे जीते जी तो यह नहीं हो सकता।

फिलहाल केंद्र सरकार के संसद में कृषि विधेयकों काे पारित कराने को लेकर पंजाब की राजनीति में बड़ा मोड़ आ गया है। पंजाब में 24 साल पुराना शिअद – भाजपा गठजोड़ टूट गया है। शिेरोमणि अकाली दल के कृषि विधेयकोंं केे मुद्दे पर राजग और भाजपा से नाता तोड़ने का फैसला किया है। पार्टी ने इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से खुद को अलग किया था और हरसिमरत कौर बादल ने कैबिनेट मंत्री के पद से इस्‍तीफा दे दिया था।

BJP woos NDA allies to keep numbers intact - Rediff.com India News

दोनों पाटियों ने तीन बार पंजाब में मिलकर सरकार चलाई, हर बार कार्यकाल पूरा किया

भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का 24 साल पुराना साथ कृषि विधेयकाें के मुद्दे पर टूटा है।    भाजपा के सबसे पुराने साथी शिअद ने भाजपा से अलग होने का फैसला पार्टी की कोर कमेटी में किया। शिवसेना के बाद भाजपा से नाता तोडऩे वाले दलों में शिरोमणि अकाली दल दूसरी पुरानी पार्टी है। ये दोनों ऐसी पार्टियां थीं जो सबसे लंबे समय तक भाजपा के साथ रही हैं।

खासतौर पर शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच रिश्ते काफी सौहार्दपूर्ण थे। दोनों पार्टियों ने मिलकर तीन बार पंजाब में सरकार बनाई और हर बार पूरे पांच पांच साल के कार्यकाल को पूरा किया। अकाली दल और भाजपा के बीच रिश्तों को राजनीतिक से ज्यादा सामाजिक सौहार्द के रूप में देखा जाता रहा है। पंजाब में अकाली – भाजपा का गठबंधन 1997 में ही हो गया था और करीब 22 साल पहले अकाली दल राजग का हिस्सा बना।

सुखबीर बोले, ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं रह सकते जो धक्केशाही से अपने फैसले लागू करे

दरअसल गठबंधन टूटने की बुनियाद उसी दिन पड़ गई थी जब अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने कृषि विधेयकों का विरोध करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल को इस्तीफा देने के लिए कह दिया। हरसिमरत बादल के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद अकाली दल पर लगातार भाजपा और राजग से अलग होने का दबाव बना हुआ था। शनिवार करीब साढे तीन घंटे तक चली कोर कमेटी में यह फैसला ले लिया।

बैठक के बाद पार्टी के प्रधान सुखबीर बादल ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि एनडीए सरकार ने कृषि विधेयक लाकर किसानों को मारने का फैसला लिया है। जिस धक्केशाही केंद्र सरकार ने पहले लोकसभा और बाद में राज्यसभा में इसे पारित करवाया वह सभी ने देखा है। इसलिए हमने केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर आने का फैसला लिया।

सुखबीर ने कहा, सरकार से बाहर आने का फैसला लेते समय मैंने कहा था कि आगे की रणनीति तय करने के लिए हम जनता के पास जाएंगे। कई दिनों तक पार्टी कार्यकर्ताओं, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत करने के बाद फैसला किया गया कि ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बना जा सकता जो धक्केशाही के साथ अपने फैसले लागू कर रहा है।

कृषि विधेयक ही नहीं, जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को दूसरी भाषा का दर्जा देने की मांग भी की दरकिनार

उन्होंने कहा कि केवल कृषि विधेयक ही नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा को दूसरी भाषा का दर्जा देने संबंध में भी अकाली दल ने मांग की थी कि जम्मू में पंजाबी बोलने वाले बहुत से लोग हैं। परंतु सरकार ने हमारी एक नहीं सुनी। यहां तक कि मेरी (सुखबीर) इस मांग का नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूख अब्दुला ने भी समर्थन किया। इसके बावजूद सरकार ने जम्मू कश्मीर की राज भाषाओं में अंग्रेजी को शामिल कर लिया और पंजाबी को बाहर कर दिया। ऐसे में अब हमारे पास राजग से अलग होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।

बता दें कि पंजाब में भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन 22 साल पुराना था। दोनों पार्टियां लोकसभा और विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ती थीं। कृषि विधेयकों मुद्दे पर भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर शिअद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के निशाने पर थी।

भाजपा के पंजाब में कृषि विधेयकों के समर्थन में उतरने और शिअद द्वारा इसका खुलक‍र विरोध करने के बाद राजग के पंजाब में टूटने की संभावना तेज हो गई थी। शिअद और भाजपा का गठबंधन टूटने से अब 2022 में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर पंजाब में सियासी समीकरण में भी बदलाव होगा।

नैतिकता नहीं, मजबूरी में लिया फैसला: कैप्टन

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एनडीए छोडऩे के शिरोमणि अकाली दल के फैसले को राजनीतिक मजबूरी व हताशा में लिया फैसला बताया। उन्होंने कहा कि इस फैसले में कोई नैतिकता नहीं है। अकालियों के सामने कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि भाजपा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कृषि बिधेयक के बारे में किसानों को समझाने में शिअद विफल रहा।

गठबंधन तोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण: अश्वनी शर्मा

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशिवनी शर्मा ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन तोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण है। कृषि विधेयकों पर अकाली दल को एनडीए का सहयोगी दल होने के नाते केंद्र सरकार का साथ देकर किसानों को जागरूक करना चाहिए था। यदि शिअद ने यह फैसला ले लिया है तो पंजाब भाजपा हाईकमान से वार्ता कर आगामी रणनीति अपनाएगी।


” शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी ने सर्वसम्मति से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से बाहर निकलने का फैसला किया है, क्योंकि केंद्र सरकार ने फसलों के एमएसपी और उनकी खरीद के लिए कानूनी गारंटी देने से इन्कार कर दिया था। भाजपा पंजाबी और सिख मुद्दों पर निरंतर असंवेदनशीलता दिखा रही है।  – सुखबीर बादल, अध्यक्ष, शिअद।


” यदि तीन करोड़ पंजाबियों की पीड़ा और विरोध भी कठोर रुख को पिघलाने में विफल रहता है, तो यह वाजपेयी जी और बादल साहब द्वारा परिकल्पित एनडीए नहीं है। एक गठबंधन जो अपने सबसे पुराने सहयोगी की नहीं सुनता और राष्ट्र का पेट भरने वालों की तरफ नहीं देखता, तो यह पंजाब के हित में नहीं है। – हरसिमरत कौर बादल, पूर्व केंद्रीय मंत्री।

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