11 सितंबर : बहुत खराब था जिन्ना के जिंदगी का आखिरी दिन, चेहरे पर भिनभिनाती रहीं मक्खियां

पाकिस्तान (Pakistan) के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) शायद ही सोचा हो कि उनका आखिरी दिन ऐसा होगा कि वो असहाय हालत में सड़क पर फंस जाएंगे. जहां पल पल मुश्किल था, वहां जिन्ना 02 घंटे ऐसी सड़क पर फंसे रहे, जहां उन्हें कोई मदद नहीं मिली

पाकिस्तान। बंटवारे से कुछ महीने पहले जब जिन्ना गुपचुप तरीके से मुंबई में एक पारसी डॉक्टर को खुद को दिखाने पहुंचे तो उन्हें अंदाज था कि वो किसी बीमारी का शिकार हो चुके हैं, जो उन्हें बहुत लंबे समय तक नहीं जिंदा रखने वाली. पाकिस्तान के बंटवारे के तुरंत बाद ये नजर भी आने लगा. जिन्ना का स्वास्थ्य ज्यादातर खराब रहने लगा. तबीयत बिगड़ने लगी. अगस्त 1948 के दौरान उनकी हालत गंभीर हो गई. सिंतबर में वो ब्रेन हेमरेज का शिकार हो गए. 11 सितंबर उनकी जिंदगी का आखिरी दिन था.

दुर्भाग्य की बात ये है कि पाकिस्तान के निर्माता को उस दिन एक ऐसी एंबुलेंस में ले जाया गया, रास्ते में उसका इंजन खराब हो गया. उसके बाद वो दो घंटे तक रुकी रही. अचेतावस्था में जिन्ना बहन के साथ उमस और गर्मी में एंबुलेंस के अंदर बीच रास्ते में फंसे रहे. इसके कुछ घंटों बाद ही उनका निधन हो गया. 01 सितंबर 1948 को वो पाकिस्तान के क्वेटा में थे. तबीयत में कोई सुधार नहीं था. उसी दिन उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ. फिर वो निमोनिया की भी पकड़ में आ गए. आखिरकार उनके डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. तब उन्हें विशेष विमान से कराची लाया गया.

शाम को बीमार जिन्ना को विमान से उतारा गया
क्वेटा से कराची तक की दो घंटे की यात्रा के दौरान जिन्ना बहुत बेचैन रहे. उन्हें बार-बार ऑक्सीजन दी जा रही थी. विमान जिन्ना को लेकर शाम 04.15 बजे मारी पुर एयरपोर्ट पर उतरा तो सरकार कोई बड़ा व्यक्ति उन्हें लेने के लिए वहां नहीं था. हालांकि इसका निर्देश जिन्ना ने ही दिया था. यहां तक कि जिला प्रशासन को भी इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई थी.

एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने वालों में गवर्नर जनरल के मिलिट्री सेक्रेटरी लेफ्टिनेंट कर्नल जैफरी ही थे. उन्हें स्ट्रेचर पर डालकर फौजी एंबुलेंस में लिटाया गया. साथ में उस एंबुलेंस में जिन्ना की बहन फ़ातिमा और नर्स सिस्टर डेल्हम भी साथ बैठे. उनके साथ विमान में साथ आए दोनों डॉक्टर और कर्नल जैफरी अलग कार पर सवार हो गए.

जिन्ना का विमान जब कराची के करीब एयरपोर्ट पर उतरा तो उन्हें लेने के लिए सरकार का कोई बड़ा अफसर मौजूद नहीं था. एक खटारा एबुंलेंस उन्हें लाने के लिए भेजी गई थी, जो बीस रास्ते में खराब हो गई.

खराब रास्ता और खस्ताहाल एंबुलेंस 
एयरपोर्ट से कराची करीब 09 मील दूर था. रास्ता भी बहुत खराब था. एंबुलेंस की हालत भी अच्छी नहीं थी. पेट्रोल भी ज्यादा नहीं था. मतलब साफ था कि पग-पग पर या तो लापरवाही बरती जा रही थी या फिर कोई साजिश रची जा चुकी थी.

04 मील बाद बीच सड़क पर रुक गई एंबुलेंस 
जिन्ना की एंबुलेंस मुश्किल 04 मील चली और फिर उसका इंजन एक झटके से बंद हो गया. एंबुलेंस के पीछे आ रही कैडिलैक कार, सामान वाला ट्रक और दूसरी गाड़ियां भी रुक गई.

मक्खियां जिन्ना के चेहरे पर मंडराती रहीं
ड्राइवर 20 मिनट तक इंजन को ठीक करने की कोशिश करता रहा. फिर फ़ातिमा जिन्ना के कहने पर मिलिट्री सेक्रेटरी अपनी कार में एक और एंबुलेंस लेने के लिए रवाना हो गए. एंबुलेंस में बहुत ही उमस थी. सांस लेना मुश्किल हो रहा था. सैंकड़ों मक्खियां जिन्ना के चेहरे पर मंडरा रही थीं. गत्ते के एक टुकड़े को पंखा बनाकर उन्हें हवा करने की कोशिश की गई. एक-एक पल बहुत मुश्किल से गुजर रहा था.

जिन्ना की जिंदगी का आखिरी दिन शायद उनके लिए सबसे खराब दिन था, जब उन्होंने खुद को सबसे ज्यादा असहाय महसूस किया होगा. जिस देश को उन्होंने बनाया, वहां उनके बारे में सोचने वाला कोई नहीं था.

सड़क पर बुरे हाल में उसी तरह रहे जिन्ना
काफी देर तक दूसरी एंबुलेंस का इंतजाम नहीं हो सका. जिन्ना को एंबुलेंस से कार में शिफ्ट करना भी मुमकिन नहीं था क्योंकि स्ट्रेचर कार में रखा नहीं जा सकता था. जिन्ना इस हाल में थे कि खुद कार में बैठ पाते या लेट पाते. हैरानी की बात ये भी कराची में किसी ने ये जानने की कोशिश तक नहीं कि जिन्ना को एंबुलेंस के साथ पहुंचने में इतनी देर क्यों हो रही है. सभी बेखबर थे.

दो घंटे बाद पहुंची दूसरी एंबुलेंस
करीब दो घंटे बाद दूसरी एंबुलेंस पहुंची. तब जिन्ना को उसमें शिफ्ट किया गया. शाम 06.10 बजे वो गवर्नर जनरल हाऊस पहुंचे.एयरपोर्ट से गवर्नर हाउस तक का 9 मील का रास्ता जो ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट में तय हो जाना चाहिए था वो 02 घंटे से ज्यादा समय में तय हुआ.

04 घंटे बाद उनका निधन हो गया
गवर्नर जनरल हाऊस पहुंचने के बाद जिन्ना केवल 04.15 घंटे जिंदा रहे. इस दौरान वो लगभग बेहोशी में रहे.”

क्यों हिंदू से मुस्लिम बन गए थे जिन्ना के पिता!
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के पिता हिंदू परिवार में पैदा हुए थे. एक नाराजगी के चलते उन्होंने अपना धर्म बदल लिया. वो मुस्लिम बन गए. ताजिंदगी न केवल इसी धर्म के साथ रहे बल्कि उनके बच्चों ने इसी धर्म का पालन किया. बाद में तो मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के आधार पर पाकिस्तान ही बनवा डाला.

जिन्ना का परिवार मुख्य तौर पर गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था. गांधीजी और जिन्ना दोनों की जड़ें इसी जगह से ताल्लुक रखती हैं. उनका ग्रेंडफादर का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था. वो हिंदू थे. वो काठियावाड़ के गांव पनेली के रहने वाले थे. प्रेमजी भाई ने मछली के कारोबार से बहुत पैसा कमाया. वो ऐसे व्यापारी थे, जिनका कारोबार विदेशों में भी था. लेकिन उनके लोहना जाति से ताल्लुक रखने वालों को उनका ये बिजनेस नापसंद था. लोहना कट्टर तौर शाकाहारी थे और धार्मिक तौर पर मांसाहार से सख्त परहेज ही नहीं करते थे बल्कि उससे दूर रहते थे. लोहाना मूल तौर पर वैश्य होते हैं, जो गुजरात, सिंध और कच्छ में होते हैं. कुछ लोहाना राजपूत जाति से भी ताल्लुक रखते हैं.

मछली के कारोबार ने कराया जाति से बहिष्कार
लिहाजा जब प्रेमजी भाई ने मछली का कारोबार शुरू किया और वो इससे पैसा कमाने लगे तो उनके ही जाति से इसका विरोध होना शुरू हो गया. उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने इस बिजनेस से हाथ नहीं खींचे तो उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. प्रेमजी ने बिजनेस जारी रखने के साथ जाति समुदाय में लौटने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी. उनका बहिष्कार जारी रहा. अकबर एस अहमद की किताब जिन्ना, पाकिस्तान एंड इस्लामिक आइडेंटीटी में विस्तार से उनकी जड़ों की जानकारी दी गई है.

JINNAH

इस बहिष्कार के बाद भी प्रेमजी तो लगातार हिंदू बने रहे लेकिन उनके बेटे पुंजालाल ठक्कर को पिता और परिवार का बहिष्कार इतना अपमानजनक लगा कि उन्होंने गुस्से में पत्नी के साथ तक तक हो चुके अपने चारों बेटों का धर्म ही बदल डाला. वो मुस्लिम बन गए. हालांकि प्रेमजी के बाकी बेटे हिंदू धर्म में ही रहे. इसके बाद जिन्ना के पिता पुंजालाल के रास्ते अपने भाइयों और रिश्तेदारों तक से अलग हो गए. वो काठियावाड़ से कराची चले गए. वहां उनका बिजनेस और फला-फूला. वो इतने समृद्ध व्यापारी बन गए कि उनकी कंपनी का आफिस लंदन तक में खुल गया. कहा जाता है कि जिन्ना के बहुत से रिश्तेदार अब भी हिंदू हैं और गुजरात में रहते हैं

जिन्ना की मातृभाषा गुजराती थी
जिन्ना की मातृभाषा गुजराती थी, बाद में उन्होंने कच्छी, सिन्घी और अंग्रेजी भाषा सीखी. काठियावाड़ से मुस्लिम बहुल सिन्ध में बसने के बाद जिन्ना और उनके भाई बहनों का मुस्लिम नामकरण हुआ. जिन्ना की तालीम अलग-अलग स्कूलों में हुई थी. शुरू-शुरू में वे कराची के सिन्ध मदरसा-ऊल-इस्लाम में पढ़े. कुछ समय के लिए गोकुलदास तेज प्राथमिक विद्यालय, बम्बई में भी पढ़े, फिर क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल कराची चले गए. अन्ततोगत्वा उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ही मैट्रिक पास किया.

मैट्रिक पास करने के तुरन्त बाद ग्राह्म शिपिंग एण्ड ट्रेडिंग कम्पनी में उन्हें अप्रैंटिस के रूप में काम करने के लिए बुलावा आया. इंग्लैंड जाने से पहले उन्होंने मां के कहने पर शादी भी कर ली लेकिन वह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली. उनके इंग्लैंड जाने के बाद मां चल बसीं. इंग्लैंड में उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए अप्रैंटिस छोड़ दी. उन्नीस साल की छोटी उम्र में वे वकील बन गए. इसके साथ सियासत में भी उनकी रुचि पैदा हुई. वे दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता के प्रशंसक बन गए. ब्रिटिश संसद में दादाभाई नौरोजी के प्रवेश के लिए उन्होंने छात्रों के साथ प्रचार भी किया. तब तक उन्होंने हिंदुस्तानियों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ संवैधानिक नजरिया अपना लिया था.

शुरू में धार्मिक पहचान से परहेज करते थे जिन्ना
इसके बाद जिन्ना के परिवार के सभी लोग न केवल मुस्लिम हो गए बल्कि इसी धर्म में अपनी पहचान बनाई. हालांकि पिता-मां ने अपने बच्चों की परवरिश खुले धार्मिक माहौल में की. जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों का प्रभाव था. इसलिए जिन्ना शुरुआत में धार्मिक तौर पर काफी ओपन और उदारवादी थे. वो लंबे समय तक लंदन में रहे. मुस्लिम लीग में आने से पहले उनके जीने का अंदाज मुस्लिम धर्म से एकदम अलग था. शुरुआती दौर में वो खुद की पहचान मुस्लिम बताए जाने से भी परहेज करते थे. लेकिन सियासत उन्हें न केवल उन्हें उस मुस्लिम लीग की ओर ले गई, जिसके एक जमाने में वो खुद कट्टर आलोचक थे. बाद में वो धार्मिक आधार पर ही पाकिस्तान के ऐसे पैरोकार बने कि देश के दो टुकड़े ही करा डाले.

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.