जीडीपी घटने से अर्थव्‍यवस्‍था को होगा 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान! आप पर भी होगा सीधा असर

पूर्व केंद्रीय वित्‍त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि वित्‍त वर्ष 2020-21 के दौरान सकल घरेलू उत्‍पाद (GDP) में 11 फीसदी तक की कमी आएगी. इसका सीधा मतलब है कि देश की आमदनी (Income) उतनी ही कमी हो जाएगी. इससे अर्थव्‍यवस्‍था (Indian Economy) के हर हिस्‍से की आय पर असर पड़ेगा.

नई दिल्ली. कोरोना वायरस (Coronavirus) से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को पहली तिमाही में तगड़ा झटका लगा है. अप्रैल-जून 2020 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 24 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है. इसे देखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान जीडीपी में बड़ी गिरावट का अनुमान जताया जा रहा है. आइए पूर्व केंद्रीय वित्‍त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग से समझते हैं कि जीडीपी में इस गिरावट का देश और विभिन्‍न तबकों के लिए क्या मायने हैं.

सवाल: जीडीपी में इस वित्त वर्ष के दौरान संभावित गिरावट के देश, उद्योग धंधों, नौकरीपेशा लोगों और छोटे कारोबारियों के लिए इसके क्या मायने हैं?

जवाब: देश की जीडीपी में चालू वित्त वर्ष के दौरान 10 से 11 फीसदी तक की कमी रह सकती है. इसका सीधा मतलब है कि देश की आय उतनी कम होगी. अर्थव्यवस्था के मुख्य तौर पर तीन हिस्से हैं, जिन्हें विभिन्‍न रूप में आय होती है. इनमें पहला श्रमिक, वेतन भोगी तबका, दूसरा उद्योगपति (छोटे, बड़े मिलाकर) और तीसरा सरकार जो टैक्स लेती है. मान लीजिए तीनों तबकों को मिलाकर 100 रुपये की आय है तो इसमें 60 65 फीसदी श्रमिक, वेतनभोगी तबके को जाता है. वहीं 20 से 25 फीसदी सरकार को और 15 से 20 फीसदी उद्योगपति कमाता है. अगर अर्थव्यवस्था में 10 फीसदी की गिरावट आती है तो इसी अनुपात में सबकी कमाई कम होगी. मौजूदा आंकड़े के हिसाब 10 फीसदी की गिरावट आने पर अर्थव्यवस्था को 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा. आमदनी कम होगी तो खर्च भी कम होगा. उपभोक्‍ता खर्च घटने से तमाम आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ेगा.

सवाल: जुलाई-अगस्त के आंकड़े अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने का इशारा करते हैं. बिजली उपभोग बढ़ा है. इस लिहाज से इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी रहेगी?

जवाब: अभी आ रहे आंकड़े सामान्य नहीं हैं, बल्कि पहले के मुकाबले नीचे ही हैं. पिछले साल के जिन आंकड़ों से इनकी तुलना की जा रही है, वे आंकड़े भी कम थे. बिजली की खपत पिछले साल इस दौरान कम थी और उसके मुकाबले इस साल अभी भी कम ही है. जीएसटी के आंकड़े सामान्य स्तर पर नहीं पहुंचे हैं. सर्विस सेक्‍टर में भी गिरावट है. इस लिहाज से दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में 12 से 15 फीसदी की कमी रहेगी. तीसरी तिमाही में हालात सुधरने के बाद भी चार से पांच फीसदी की गिरावट रह सकती है. चौथी तिमाही में हालात सामान्य हो पाएंगे. इस लिहाज से वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी में 10 से 11 फीसदी की गिरावट रह सकती है.

सवाल: जीडीपी में बड़ी गिरावट की वजह लॉकडाउन को बताया जा रहा है. क्या लॉकडाउन की रणनीति सही नहीं थी?
जवाब: सरकार ने 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लागू कर दिया. लोगों को घरों में बंद कर दिया और अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई. यह रणनीति सही नहीं थी. इससे आर्थिक नुकसान ज्यादा हुआ है. लॉकडाउन से कोरोना वायरस का प्रसार धीमा पड़ा, लेकिन अर्थव्यवस्था को कहीं ज्यादा नुकसान हुआ. अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज किए बिना रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए ताकि वायरस के प्रसार को रोका जा सके.

सवाल : क्या डिजिटल भुगतान बढ़ने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का असर है?
जवाब: नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर अस्थायी असर रहा. अर्थव्यवस्था में असंगठित, अनौपचारिक गतिविधियों का बड़ा हिस्सा था. इसमें ज्यादातर भुगतान नकद में होता रहा है. करीब 25 से 30 फीसदी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का भारी असर पड़ा, लेकिन इसका एक फायदा भी हुआ कि असंगठित क्षेत्र का काफी कारोबार संगठित क्षेत्र में होने लगा. उनमें लेनदेन औपचारिक प्रणाली में तब्‍दील हुआ. इस प्रकार नोटबंदी का असर अस्थायी ही रहा है.

सवाल: सरकार को अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
जवाब: लॉकडाउन और कारोबाद बंद होने से सूक्ष्म, लघु उद्योगों को बड़ा झटका लगा है. देश में करीब 7.5 करोड़ सूक्ष्म, लघु, मझोले उद्यम (MSMEs) हैं. सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए. आत्मनिर्भर भारत के तहत पेश की गईं योजनाओं का लाभ 40-45 लाख लोगों को ही मिल रहा है. एमएसएमई में छूट गए बड़े वर्ग को सीधे अनुदान देना चाहिए. दूसरा वर्ग करीब 10-12 करोड़ कामगारों का है, जिनके पास कोई काम नहीं रहा. सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए. सरकार को पूरी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्‍न ढांचागत क्षेत्रों में पूंजी व्यय बढ़ाना चाहिए. अलग-अलग सेक्‍टर्स में पेश आने वाली नीतिगत समस्याओं को दूर किया जाना चाहिए. पहली तिमाही के दौरान पूंजी निवेश में आई भारी कमी पर ध्यान देना चाहिए.

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