पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नहीं रहे:प्रणब का 84 साल की उम्र में निधन; 21 दिन पहले कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, ब्रेन सर्जरी भी हुई थी

1969 में राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई, विदेश, वित्त, रक्षा मंत्री जैसे बड़े सभी बड़े पोर्टफोलियो संभाले प्रणब मुखर्जी को 2019 में देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था

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नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (84) का सोमवार को अस्पताल में निधन हो गया। 10 अगस्त से वे दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल (आर एंड आर) हॉस्पिटल में भर्ती थे। इसी दिन ब्रेन से क्लॉटिंग हटाने के लिए इमरजेंसी में सर्जरी की गई थी। इसके बाद से उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। प्रणब ने 10 तारीख को ही खुद के कोरोना पॉजिटिव होने की बात भी कही थी।

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पिछले साल मिला था भारत रत्न
प्रणब को पिछले साल भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया था। बेटी शर्मिष्ठा ने ट्वि‍टर पर लिखा कि पिछले साल 8 अगस्त मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था, क्योंकि उस दिन मेरे पिता को भारत रत्न से नवाजा गया था। उसके ठीक एक साल बाद 10 अगस्त को उनकी तबीयत खराब और गंभीर हो गई।

Ex-President Pranab Mukherjee awarded Bharat Ratna | India – Gulf News

क्लर्क रहे, कॉलेज में भी पढ़ाया
प्रणब का जन्म ब्रिटिश दौर की बंगाल प्रेसिडेंसी (अब पश्चिम बंगाल) के मिराती गांव में 11 दिसंबर 1935 को हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस और हिस्ट्री में एमए किया। वे डिप्टी अकाउंट जनरल (पोस्ट एंड टेलीग्राफ) में क्लर्क भी रहे। 1963 में वे कोलकाता के विद्यानगर कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के लेक्चरर भी रहे।

1969 में शुरू हुआ राजनीतिक सफर
प्रणब के पॉलिटिकल करियर की शुरुआत 1969 में हुई। उन्होंने मिदनापुर उपचुनाव में वीके कृष्ण मेनन का कैम्पेन सफलतापूर्वक संभाला था। तब प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया। 1969 में ही प्रणब राज्यसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्यसभा के लिए चुने गए।

मालूम हो कि मस्तिष्क में खून का थक्का बन जाने के कारण उन्हें 10 अगस्त को दोपहर 12.07 बजे गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती किया गया था। सर्जरी से पहले उनकी कोरोना जांच भी कराई गई थी, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। इसके बाद डॉक्टरों ने उनके मस्तिष्क से खून के थक्के को हटाने के लिए सर्जरी की थी। फिर भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ।

प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में  2012 से 2017 तक पद पर रह चुके थे। पूर्व राष्ट्रपति को भारत रत्न से भी नवाजा जा चुका है। हालांकि, इस पद के लिए यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी की पहली पसंद हामिद अंसारी थे। लेकिन कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की पसंद मुखर्जी थे। इससे यह भी पता चला था कि राजनीतिक विभेद के बावजूद प्रणब मुखर्जी की स्वीकार्यता सभी राजनीतिक दलों में थी।

प्रणब दा का राजनीतिक सफर:कैसे 3 बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे प्रणब? यूपीए सरकार में हमेशा ट्रबल शूटर रहे; फिर राष्ट्रपति बने और भारत रत्न से नवाजे गए

प्रणब मुखर्जी। भारतीय राजनीति में उनका नाम विरोधी भी सम्मान से लिया करते हैं। एक क्लर्क और एक टीचर से फिर सियासतदान और राष्ट्रपति बनने का सफर। प्रणब के राजनीतिक करियर में तीन बार ऐसे मौके आए, जब लगा कि प्रधानमंत्री वे ही बनेंगे, लेकिन तीनों बार प्रणब दा प्रधानमंत्री नहीं बन सके। वे कितने काबिल थे, इसका अंदाजा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान से लगा सकते हैं। तीन साल पहले मनमोहन ने कहा था- जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था।

यहां हम आपको प्रणब के सियासी सफर और उन तीन मौकों के बारे में बता रहे हैं, जब प्रणब दा सत्ता के शीर्ष पर यानी प्रधानमंत्री पद तक पहुंच सकते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

1. इंदिरा की कैबिनेट में नंबर-2 रहे, उनके बाद प्रधानमंत्री नहीं बन सके
बात 1969 की है। इंदिरा के आग्रह पर प्रणब दा पहली बार राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे थे। इंदिरा गांधी राजनीतिक मुद्दों पर प्रणब की समझ की कायल थीं। यही वजह थी कि उन्होंने प्रणब दा को कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दिया। यह इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि इसी कैबिनेट में आर. वेंकटरामन, पीवी नरसिम्हाराव, ज्ञानी जैल सिंह, प्रकाश चंद्र सेठी और नारायण दत्त तिवारी जैसे कद्दावर नेता थे।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब का नाम भी चर्चा में था, लेकिन पार्टी ने राजीव गांधी को चुना। दिसंबर 1984 में लोकसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं। कैबिनेट में प्रणब को जगह नहीं मिली। बाद में उन्होंने लिखा- जब मुझे पता लगा कि मैं कैबिनेट का हिस्सा नहीं हूं तो दंग रह गया। लेकिन, फिर भी मैंने खुद को संभाला। पत्नी के साथ टीवी पर शपथ ग्रहण समारोह देखा।

दो साल बाद यानी 1986 में प्रणब ने बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएससी) का गठन किया। तीन साल बाद राजीव से उनका समझौता हुआ और आरएससी का कांग्रेस में विलय हो गया।

2. सात साल बाद दूसरी बार पीएम बनने का मौका हाथ से निकला
बात 1991 की है। राजीव गांधी की हत्या हुई। चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। माना जा रहा था कि इस बार प्रणब के मुकाबले कोई दूसरा चेहरा पीएम पद का दावेदार नहीं है, लेकिन इस बार भी मौका हाथ से निकल गया। नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रणब दा को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री बनाया गया।

3. 2004 में सोनिया ने प्रणब की जगह मनमोहन को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना
फिर साल 2004 आया। कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिलीं, लेकिन इसे भाजपा की ही हार माना गया। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर निर्भर थी। सोनिया गांधी के पास खुद प्रधानमंत्री बनने का मौका था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रणब मुखर्जी का नाम फिर चर्चा में था, लेकिन सोनिया ने जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।

मनमोहन की कैबिनेट में भी नंबर-2 रहे प्रणब
2012 तक मुखर्जी मनमोहन सिंह की कैबिनेट में नंबर-2 रहे। प्रणब दा ने 2004 से 2006 तक रक्षा, 2006 से 2009 तक विदेश, और 2009 से 2012 तक वित्त मंत्रालय संभाला। इस दौरान वे लोकसभा में सदन के नेता भी रहे। यूपीए सरकार में उनकी भूमिका संकटमोचक की रही। 2012 में पीए संगमा को हराकर वे राष्ट्रपति बने। उन्हें कुल वोटों का 70 फीसदी हासिल हुआ। बाद में एक बार प्रणब दा ने कहा था- मुझे प्रधानमंत्री न बन पाने का कोई मलाल नहीं। मनमोहन इस पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति थे।

मनमोहन ने भी माना था- प्रणब ज्यादा क्वालिफाइड थे, लेकिन सोनिया ने मुझे चुना
मनमोहन ने 2017 में कहा था, “जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। प्रणब को प्रधानमंत्री नहीं बनाने का शिकवा करने का पूरा हक है।’’ यह बात मनमोहन ने प्रणब की ऑटोबायोग्राफी के विमोचन के मौके पर कही थी। समारोह में सोनिया और राहुल गांधी भी थे। मनमोहन की बात सुनकर मां-बेटे मुस्करा दिए थे।

राजनीति में आने से पहले क्लर्क, टीचर थे
प्रणब दा को भारतीय राजनीति में एक विद्वान चरित्र के रूप में सम्मान हासिल रहा। उनके पास इतिहास, राजनीतिक शास्त्र और कानून की डिग्रियां थीं। क्लर्क, पत्रकार और टीचर के तौर पर काम किया। फिर 1969 में पिता के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए राजनीति में आ गए। 2008 में उन्हें पद्म विभूषण और 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मोदी ने कहा था- हमने प्रणब दा को उनके काम के लिए भारत रत्न दिया
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल संसद में प्रणब दा के लिए कहा था, “उनकी (कांग्रेस की) सरकारों में नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह को भारत रत्न नहीं मिला। परिवार से बाहर किसी को नहीं मिला। प्रणब दा ने देश के लिए जीवन खपाया। हमने उन्हें भारत रत्न उनके काम के लिए दिया। अब जब हम सवा सौ करोड़ देशवासियों की बात करते हैं तो उसमें सभी आते हैं।”

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हमारे बीच नहीं रहे। उनका 84 साल की उम्र में निधन हो गया। वे 2012 में राष्ट्रपति बने थे और 2017 तक इस पद पर रहे। भले ही प्रणब का नाता कांग्रेस से था, लेकिन वे भाजपा के दो नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी से काफी प्रभावित थे। इसका जिक्र उन्होंने एक कार्यक्रम में किया था।

अटलजी को प्रणब सबसे असरदार, तो मोदी को सबसे तेजी से सीखने वाला पीएम मानते थे। यहीं नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने भी प्रणब मुखर्जी की तारीफ में कहा था कि जब मैं दिल्ली आया था, तब प्रणब दा ने ही उंगली पकड़कर सिखाया। 2017 में जब राष्ट्रपति पद पर प्रणब मुखर्जी का आखिरी दिन था, तो मोदी ने उनके नाम चिट्‌ठी में लिखा था- राष्ट्रपति जी, आपके प्रधानमंत्री के रूप में आपके साथ काम करना सम्मान की बात रही।

इस चिट्‌ठी में मोदी ने जिक्र किया था कि प्रणब हमेशा मोदी से यह पूछते थे कि वे अपनी सेहत का ध्यान रख रहे हैं या नहीं? इस चिट्‌ठी को प्रणब ने ट्वीट किया था और कहा था कि इसे पढ़कर मैं भावुक हो गया।

प्रणब ने अटलजी से जुड़ा किस्सा सुनाया था
प्रणब ने मार्च 2017 में एक कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा एक किस्सा सुनाया था। उन्होंने कहा था कि मैं राज्यसभा में था। मैंने अचानक देखा कि प्रधानमंत्री मेरी सीट की तरफ आ रहे हैं। मैंने शर्मिंदगी महसूस की। मैंने कहा- अटलजी आपने मेरे पास आने की क्यों तकलीफ की? आप किसी को मुझे बुलाने के लिए भेज देते। अटलजी ने कहा कि कोई बात नहीं। हम दोस्त हैं। इसके बाद अटलजी ने मुझसे एक बात की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि जॉर्ज फर्नांडीज काफी मेहनती और काबिल मंत्री हैं। उनके लिए ज्यादा तल्ख न हों। उस वक्त जॉर्ज डिफेंस मिनिस्टर हुआ करते थे। मैंने अटलजी से कहा कि मैं इस बात की तारीफ करता हूं। मैं इस बात के लिए आपको सलाम करता हूं कि आप अपने कलीग की कितनी फिक्र करते हैं। ये एक ऐसी घटना है, जो बताती है कि अटलजी किस तरह काम करते थे।”

प्रणब ने मोदी की भी तारीफ की थी
प्रणब ने कहा था कि मोदी के काम करने का अपना तरीका है। हमें इसके लिए उन्हें क्रेडिट देना चाहिए कि उन्होंने किस तरह से चीजों को जल्दी सीखा है। चरण सिंह से लेकर चंद्रशेखर तक प्रधानमंत्रियों को काफी कम वक्त काम करने का मौका मिला। इन लोगों के पास पार्लियामेंट का अच्छा-खासा एक्सपीरियंस था, लेकिन एक शख्स सीधे स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन से आता है और यहां आकर केंद्र सरकार का हेड बन जाता है। इसके बाद वह दूसरे देशों से रिश्तों और एक्सटर्नल इकोनॉमी में महारत हासिल करता है।

प्रणब ने कहा था कि 2008 की आर्थिक मंदी के बाद एक ताकतवर ऑर्गनाइजेशन जी-20 के रूप में उभरा। हर साल और कभी-कभी साल में दो बार जी-20 की समिट होती है। वह बड़े मसलों से निपटता है। किसी भी प्रधानमंत्री को इसकी इनडेप्थ नॉलेज हासिल करनी होती है। मोदी ने यह किया। मोदी चीजों को बहुत अच्छी तरह ऑब्जर्व करते हैं। मुझे उनकी वह बात अच्छी लगी, जब उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के लिए आपको बहुमत चाहिए होता है, लेकिन सरकार चलाने के सभी का मत चाहिए होता है।

मोदी ने कहा था- प्रणब ने एक गार्जियन की तरह उंगली पकड़कर चीजें सिखाईं
जुलाई 2016 में राष्ट्रपति भवन म्यूजियम के सेकंड फेज के इनॉगरेशन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के लिए कहा था कि जब मैं दिल्ली में नया-नया आया था, तब राष्ट्रपति ने एक गार्जियन की तरह मुझे उंगली पकड़कर चीजें सिखाई थीं। जो मौका मुझे मिला, वो बहुत कम लोगों को मिलता है।

मोदी ने कहा था कि सबसे अहम बात ये है कि उनका पॉलिटिकल बैकग्राउंड अलग है और मेरा अलग, लेकिन उनके साथ मैंने सीखा कि कैसे अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा होने के बावजूद लोकतंत्र में एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर काम किया जा सकता है।

पिछले साल भारत रत्न से नवाजे गए थे
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पिछले साल भारत रत्न सम्मान नवाजा गया था। उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह सम्मान दिया था। मुखर्जी यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले पांचवें राष्ट्रपति थे। इससे पहले राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. जाकिर हुसैन और वीवी गिरि को मिल यह सम्मान मिल चुका है।

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