कोटे में कोटा पर SC का बड़ा फैसला- अब SC/ST को कैटेगरी के आधार पर भी आरक्षण दे सकते हैं राज्य

Quota Within Quota: 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान बेंच (Constitution Bench) ने फैसला दिया था कि किसी वर्ग को प्राप्त कोटे के भीतर कोटे की अनुमति नहीं है, लिहाज़ा कोर्ट ने ये मामला आगे विचार के लिए 7 जजों की बेंच को भेजा है.

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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान बेंच ने गुरुवार को अहम फैसला देते हुए कहा है कि राज्य आरक्षण (Reservation) के लिए SC/ST समुदाय में भी केटेगरी बना सकते हैं. कोर्ट ने ये फैसला इसलिए लिया है, ताकि SC /ST में आने वाली कुछ जातियों को बाकी के मुकाबले आरक्षण केलिए प्राथमिकता दी जा सके. चूंकि इससे पहले 2004 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच (Constitution Bench) ने फैसला दिया था कि किसी वर्ग को प्राप्त कोटे के भीतर कोटे की अनुमति नहीं है, लिहाज़ा कोर्ट ने ये मामला आगे विचार के लिए 7 जजों की बेंच को भेजा है.

शीर्ष अदालत ने संविधान बेंच को SC/ST के भीतर क्रीमी लेयर की अवधारणा पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है. अदालत ने अपने आदेश में राज्यों को ऐसे समूहों को कोटे का लाभ देने के लिए अधिकृत किया है, जो आरक्षण का लाभ प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे.

गुरुवार को बेंच ने कहा, ‘इस तरह के वर्गीकरण से संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के आदेश के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी.’ जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, ‘राज्य के पास आरक्षण देने की शक्ति है, तो यह उन उप-जातियों को इसका लाभ दे सकती है, जो पहले इसका फायदा नहीं उठा पा रहे थे.’

इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एम आर शाह और अनिरुद्ध बोस वाली बेंच ने कहा कि 2004 के फैसले को सही ढंग से तय नहीं किया गया था और राज्य एससी/एसटी के भीतर जाति को उपवर्गीकृत करने के लिए कानून बना सकते हैं.

अभी 5 जजों की राय ये है कि 2004 के फैसले को फिर से पुर्नविचार की ज़रूरत है. चूंकि दोनों मामलो में आज फैसला देने वाली और ई वी चिन्नय्या मामले में फैसला देने वाली संविधान बेंच में जजों की सख्यां 5 है. लिहाजा आज संविधान बेंच ने अपनी राय रखते हुए माना है कि पुराने फैसले में दी गई व्यवस्था पर फिर से विचार की ज़रूरत है. इसलिए मामला आगे बड़ी बेंच यानी 7 जजों की बेंच को भेजने की बात कही गई है.

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के बाद ये अपील दायर की गई थीं. इस फैसले में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवा में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4 (5) को रद्द कर दिया गया था. जिसके तहत प्रत्यक्ष भर्ती में अनुसूचित जाति के लिए आर‌क्षित रिक्तियों का 50 प्रतिशत, अगर उपलब्ध हो, तो पहली वरीयता के रूप में बाल्मीकि और मजहबी सिखों को देने का प्रावधान था. इस प्रावधान को असंवैधानिक ठहराते हुए, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ईवी च‌िन्नैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश (2005) 1 SCC 394, पर भरोसा किया.

इसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 341 (1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश में सभी जातियां सजातीय समूह के एक वर्ग का गठन करती हैं, और उन्हें आगे विभाजित नहीं किया जा सकता है. इसके बाद यह भी कहा गया था कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 41 या सूची III के प्रविष्टि 25 के संदर्भ में ऐसा कोई भी कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा.

 

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