काशी मथुरा बाकी है:लोहे के बैरिकेड और कदम-कदम पर तैनात हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी यहां के माहौल में घुले हुए तनाव की गवाही देती है
सीआरपीएफ, पीएसी, ब्लैक कैट कमांडो, बम निरोधक दस्ते और उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों की लगभग पूरी फौज ही अब चौबीस घंटे मंदिर परिसर में तैनात रहती है। आने वाले हर श्रद्धालु को तीन-तीन बार सुरक्षा जांच से पार होने के बाद ही परिसर में दाखिल होने दिया जाता है। लोहे के बैरिकेड और कदम-कदम पर तैनात हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी यहां के माहौल में घुले हुए तनाव की गवाही देते हैं।
- कॉरिडोर का विरोध इसीलिए कम हुआ क्योंकि भाजपा और उससे जुड़े लोगों ने स्थानीय लोगों को यह विश्वास दिलाया कि कॉरिडोर के बहाने ज्ञानवापी को गिरा देने की योजना है
- कॉरिडोर निर्माण का काम जब शुरू हुआ और मस्जिद साफ दिखने लगी तो हमने देखा कि यह तो पूरी तरह मंदिर के ऊपर बनाई गई है
- मस्जिद वहां सालों से थी लेकिन पहले वह भवनों के पीछे छिपी हुई थी, अब तो मंदिर में प्रवेश करते हुए सबसे पहले मस्जिद के ही दर्शन होते हैं और यह दृश्य किसी टीस की तरह से चुभता है
काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर 4 के बाहर सोनू की एक छोटी-सी दुकान है। मुश्किल से तीन बाई तीन फीट की इस दुकान में सोनू पूजा सामग्री बेचते हैं। पास के अन्य दुकानों की तरह ही इस दुकान पर छोटे-छोटे कई लॉकर बने हुए हैं। जो भी श्रद्धालु इन दुकानों से पूजा सामग्री ख़रीदते हैं, वे मंदिर जाते हुए अपना मोबाइल, कैमरा, बेल्ट, घड़ी आदि सामान इन्हीं लॉकरों में सुरक्षित रख जाते हैं। वह इसलिए कि मंदिर परिसर में कुछ भी ले जाने की अनुमति नहीं है।
90 के दशक से पहले हालात ऐसे नहीं थे। काशी विश्वनाथ के दर्शन तब सहज ही हो जाया करते थे। लेकिन जब राम मंदिर आंदोलन उग्र हुआ और अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई तो काशी में भी हालात बदलने लगे। विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच लोहे की ऊंची-ऊंची बैरिकेड खड़ी कर दी गई, हर आने वाले की ज़बरदस्त तलाशी होने लगी और पूरे परिसर को सुरक्षाबलों की तैनाती से पाट दिया गया। यही स्थिति आज तक बरकरार है।
सीआरपीएफ, पीएसी, ब्लैक कैट कमांडो, बम निरोधक दस्ते और उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों की लगभग पूरी फौज ही अब चौबीस घंटे मंदिर परिसर में तैनात रहती है। आने वाले हर श्रद्धालु को तीन-तीन बार सुरक्षा जांच से पार होने के बाद ही परिसर में दाखिल होने दिया जाता है। लोहे के बैरिकेड और कदम-कदम पर तैनात हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी यहां के माहौल में घुले हुए तनाव की गवाही देते हैं।
इस पूरे परिसर में विश्वनाथ मंदिर के शिखर और ज्ञानवापी मस्जिद की मीनारों से भी ऊंचा अगर कुछ है तो वह सुरक्षाबलों का वॉच टॉवर ही है। इस पर तैनात सुरक्षाकर्मी यहां होने वाली हर गतिविधि पर बारीक नजर बनाए रखते हैं। बीते तीस सालों से लागू यह व्यवस्था स्थानीय लोगों को अब सामान्य लगने लगी थी लेकिन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना ने परिस्थितियों को एक बार फिर से बदल दिया है।
‘काशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन’ चलाने वाले सुधीर सिंह कहते हैं, ‘कॉरिडोर निर्माण का काम जब शुरू हुआ और मस्जिद साफ दिखने लगी तो हमने देखा कि यह तो पूरी तरह है मंदिर के ऊपर बनाई गई है। मस्जिद के पिछले हिस्से में मौजूद वो दीवार अब दूर से ही देखी जा सकती है जिस पर आज भी मंदिर के निशान मौजूद है। यह देखकर ही हमने मन बनाया कि अब विश्वनाथ बाबा को मुक्त करा कर ही मानेंगे।’
लगभग ऐसी ही उत्तेजना काशी के कई अन्य लोगों में भी कॉरिडोर निर्माण के बाद से देखी जा सकती है। विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा कहते हैं, ‘मस्जिद वहां सालों से थी लेकिन पहले वह भवनों के पीछे छिपी हुई थी। अब तो मंदिर में प्रवेश करते हुए सबसे पहले मस्जिद के ही दर्शन होते हैं और यह दृश्य किसी टीस की तरह से चुभता है। हमें ही नहीं, किसी भी हिंदू को यह दृश्य चुभेगा। उस ढांचे को वहां से जल्द से जल्द हटा देना चाहिए।’
कॉरिडोर निर्माण का जब काम शुरू हुआ तो यह बात भी तेजी से फैली कि यहां अयोध्या का दोहराव करने की रणनीति तैयार हो रही है। विश्वनाथ मंदिर के आस-पास पहले इतनी संकरी गलियां हुआ करती थीं कि मंदिर में सीमित लोग ही एक बार में दाखिल हो सकते थे। लेकिन कॉरिडोर निर्माण के चलते जब आस-पास के सभी भवन तोड़ डाले गए तो वहां लाखों लोगों के एक साथ जमा होने की जगह बन गई।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद तो यहां तक कहते हैं कि कॉरिडोर का विरोध इसीलिए कम हुआ क्योंकि भाजपा और उससे जुड़े लोगों ने स्थानीय लोगों को यह विश्वास दिलाया कि कॉरिडोर के बहाने ज्ञानवापी को गिरा देने की योजना है। वे कहते हैं, ‘भाजपा और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग उस दौरान हमारे पास भी आए। उन्होंने हमसे कहा कि आप कॉरिडोर का विरोध मत कीजिए क्योंकि असल में यह योजना विश्वनाथ बाबा को ज्ञानवापी से मुक्त कराने का एक तरीका है।’
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आगे कहते हैं, ‘कॉरिडोर के नाम पर भारी पाप इस सरकार ने किया है। काशी के इतिहास में कभी इतना बड़ा हमला नहीं हुआ जितना कॉरिडोर की आड़ में इस सरकार ने किया है। औरंगजेब ने तो यहां एक मंदिर तोड़ा था लेकिन कॉरिडोर के लिए सैकड़ों मंदिर और हजारों मूर्तियां तोड़ डाली गई। जो देवता विश्वनाथ मंदिर में मौजूद शिवलिंग में बस्ते हैं वही देवता उन तमाम शिवलिंगों में भी बस्ते हैं जिन्हें इन लोगों ने उखाड़ कर फेंक दिया। काशी के इस ऐतिहासिक स्वरूप का जिक्र स्कन्द पुराण के काशीखण्ड तक में मिलता है और इन लोगों उस पौराणिक स्वरूप को बदलने का दुस्साहस किया है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर कांग्रेस के नजदीकी होने और भाजपा की हर नीति का विरोध करने का आरोप लगता रहा है। लेकिन कॉरिडोर के मामले में वे विरोध करने वाले अकेले व्यक्ति नहीं थे। स्वयं भाजपा और आरएसएस से जुड़े कई लोग भी इस परियोजना का यह कहते हुए विरोध करते रहे हैं कि इससे काशी का मूल स्वरूप, उसकी पौराणिक पहचान हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
बनारस पत्रकार संघ के अध्यक्ष राजनाथ तिवारी बताते हैं, ‘कॉरिडोर का बहुत जमकर विरोध हुआ लेकिन सरकार ने बहुत ही नियोजित तरीके से इस पर काम किया। राष्ट्रीय मीडिया तो पहले ही नतमस्तक है लेकिन तमाम संवैधानिक संस्थाएं भी सरकार के हाथों की कठपुतली बन गई। जिस अदालत से लोगों को उम्मीद बंधती है उस अदालत तक से हमें निराशा ही हाथ लगी। आखिरकार लोगों को अपने घर छोड़ने को मजबूर कर दिया गया।’
कॉरिडोर निर्माण के लिए जो घर अधिग्रहित किए गए उनमें राकेश यादव का घर भी शामिल है। राकेश बताते हैं, ‘मैं उन लोगों में से था जो सबसे आख़िर तक लड़े। हमें हमारे नेताओं ने भी धोखे में रखा। यहां के विधायक नीलकंठ तिवारी, जो प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं, उन्होंने हमें विश्वास दिलाया कि कोई घर या मंदिर नहीं टूटेगा।
उन्होंने कहा था कि सिर्फ गलियों के चौड़ीकरण के लिए थोड़ी-थोड़ी ज़मीन ली जाएगी। लेकिन बाद में इस सरकार ने हम पर ये भी आरोप लगाए कि हमने मंदिरों पर क़ब्जा किया हुआ था। पूरा आईटी सेल लगा दिया गया और उल्टा हमारे ही खिलाफ माहौल बना दिया गया। हम सुप्रीम कोर्ट तक गए लेकिन जब कहीं से मदद नहीं मिली तो मजबूरन हमें अपना पुश्तैनी घर छोड़ना पड़ा।’
काशी में कॉरिडोर को लेकर दो बातें बेहद प्रचलित हो चली हैं। एक तो ये कि कॉरिडोर के लिए जितने भी घर अधिग्रहित किए गए हैं उनके एवज में कई गुना भुगतान किया गया है लिहाजा लोग इससे खुश हैं। दूसरी बात ये कि कॉरिडोर बनने के बाद ज्ञानवापी के हटने की राह भी आसान होने वाली है। लेकिन इन दोनों ही बातों से वो लोग इत्तेफाक नहीं रखते जो कॉरिडोर से सीधा प्रभावित हुए हैं।
राकेश यादव कहते हैं, ‘ बाजार के दाम से दोगुना भुगतान जरूर किया गया है लेकिन उस पैसे में उतने लोग कहीं और घर नहीं खरीद सकते जितने लोग इन घरों में रह रहे थे। ऊपर से कई गुना भुगतान होने की अफवाह के चलते यहां आस-पास प्रॉपर्टी के दाम बढ़ गए जिसके चलते हम यहां घर नहीं खरीद सके। हम लोग जो पीढ़ियों से शहर का दिल कहे जाने वाले पक्का महाल में रहते थे और व्यापार करते थे, अब शहर के बाहरी इलाकों में रहने को मजबूर हैं। और व्यापार का जो नुक़सान हुआ उसे तो कहीं गिना तक नहीं जा रहा।’
कॉरिडोर बनने से ज्ञानवापी मस्जिद को कोई खतरा होने की बात पर मस्जिद के प्रवक्ता एसएम यासीन कहते हैं, ‘यहां दो घटनाएं ऐसी हुई जिनसे लगा कि आगे कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है। एक तो कॉरिडोर निर्माण के दौरान मस्जिद का एक चबूतरा तोड़ दिया गया था। लेकिन उसी वक्त यह खबर सब जगह फैल गई और वहां भीड़ जमा हो गई तो प्रशासन ने रातों-रात उसे वापस बनवा दिया। दूसरी घटना कुछ लोगों द्वारा मूर्ति स्थापित करने की हुई। ये लोग मस्जिद की दीवार के पास मूर्ति गाड़ने की कोशिश कर रहे थे लेकिन रंगे हाथों पकड़े गए।
एसएम यासीन आगे कहते हैं, ‘इन घटनाओं ने मुस्लिम समुदाय में एक आशंका पैदा कर दी थी लेकिन अब हमें लगता है कि कॉरिडोर बन जाने से जब पूरा परिसर सरकारी कब्जे में होगा और वहां सरकारी सुरक्षा मुस्तैद रहेगी तो किसी हिंसक घटना की गुंजाइश नहीं होगी। कॉरिडोर के नक्शे में भी ज्ञानवापी मस्जिद अपनी जगह बनी हुई है लिहाज़ा हमें यक़ीन है यहां अयोध्या जैसा कुछ नहीं होगा।’
काशी के कुछ उत्साही युवाओं और उग्र हिंदू संगठनों को छोड़ दें तो अधिकतर काशीवासी भी पूरे विश्वास से ये कहते हैं कि यहां अयोध्या जैसी कोई हिंसक घटना नहीं होगी। लेकिन इसके साथ ही अधिकतर काशीवासी इस बात के प्रति आश्वस्त भी दिखते हैं कि आने वाले समय में ज्ञानवापी मस्जिद की जगह मंदिर परिसर ले चुका होगा। सड़क किनारे चाय बेचने वाले राजू यादव हों, अस्सी घाट पर नाव चलाने वाले विक्रम हों, दशाश्वमेध घाट के पास रहने वाले शुभम महरोत्रा हों, विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा हों या कपड़ों का शोरूम चलाने वाले राधे श्याम शुक्ला हों ये सभी लोग पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि आज नहीं तो कल ज्ञानवापी मस्जिद वाली जगह हिंदुओं को मिल चुकी होगी।
इस आत्मविश्वास का कारण पूछने पर कोई कहता है कि मोदी सरकार क़ानून लाकर ऐसा कर देगी, कोई कहता है कि मुस्लिम पक्ष को ही इसके लिए तैयार कर लिया जाएगा और कोई मानता है कि न्यायालय के फ़ैसले से ऐसा हो जाएगा क्योंकि न्यायपालिका का रुख़ इस सरकार के रुख़ से अक्सर मिलता हुआ नजर आने लगा है। लेकिन इन तमाम लोगों से इतर काशी में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके घर की दीवारों पर कवि ज्ञानेंद्रपति की लिखी ये पंक्तियां दर्ज मिल जाती हैं
‘वे कहते हैं, अयोध्या के बाद काशी की बारी है
धर्म-संसद में पारित हुआ है प्रस्ताव
मंदिर के धड़ पर रखा है जो मस्जिद का माथा
उसे कलम करने की तैयारी है
लेकिन क्यों?
इतिहास की भूल सुधारने में
भूल का इतिहास रचना क्यों जरूरी हो?’