पुण्यतिथि : सवाल का जबाव-क्या नेहरू के पार्थिव शरीर के पास नेता जी सुभाष चंद्र बोस थे

कौन था वो शख्स जो नेहरू के शव (Near dead body of Nehru) के पास था. लंबे समय तक माना जाता रहा है कि तीनमूर्ति भवन (Teenmurti Bhawan) में नेहरू के शव के पास जो भिक्षु नजर आ रहा है, वो कोई और नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) हैं. क्या वो वाकई सुभाष थे या कोई और...जानते हैं..

नई दिल्ली। 18 अगस्त 1945 के दिन माना जाता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन ताइहोकु हवाई एयरपोर्ट पर हवाई हादसे में हो गया. उनके प्लेन ने जैसे ही इस एयरपोर्ट से उड़ान भरी, उसके कुछ ही सेकेंड बाद वो हवा में डगमगाता हुआ नीचे आ गिरा. नेताजी इसमें बुरी तरह घायल हुए और कुछ घंटों बाद मिलिट्री अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांसें लीं. लेकिन आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि नेताजी का निधन इस हादसे में नहीं हुआ.

नेताजी के निधन के रहस्य की गुत्थी को सुलझाने के लिए तीन जांच आयोग गठित किए गए. पहले दो आयोग ने कहा कि सुभाष की मृत्यु हवाई हादसे में हुई थी तो तीसरे जस्टिस मनोज मुखर्जी आयोग ने इसको सिरे से नकार दिया. उसका कहना था कि बेशक नेताजी की मृत्यु हुई लेकिन हवाई हादसे में कम से कम उस दिन तो नहीं. आयोग ने ये निष्कर्ष ताइवान सरकार के उस पत्र के बाद निकाला, जिसमें उन्होंने बताया था कि 18 अगस्त क्या उससे एक महीने आगे-पीछे भी वहां कोई हवाी हादसा नहीं हुआ था.

Importance Of Hindi : Netaji Subhash Chandra Bose Told The ...

हालांकि देश में 60 और 70 के दशक में नेताजी को जगह-जगह जिंदा देने जाने की चर्चाएं जोर पकड़ रही थीं. ये मामला तब और गर्मा गया, जबकि नेहरू जी के देहावसान के बाद उन्हें श्रृद्धासुमन अर्पित करने आए लोगों में एक बौद्ध मिक्षु भी था, जो एकदम सुभाष की तरह ही दिखता था. क्या वो वाकई सुभाष ही थे.

दूसरे एंगल से ली गई फोटो, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पार्थिव शरीर तीनमूर्ति भवन में दर्शनार्थ रखा गया था. ये माना जाता रहा कि समीप खड़े ये शख्स सुभाष चंद्र बोस ही हैं. उनके अलावा कोई और नहीं.

नेहरू के पार्थिव शव के पास वो भिक्षु
दरअसल ये मामला तब गर्मा गया जब ऐसी एक तस्वीर सामने आई, जो उस मौके पर भारत सरकार के फिल्म प्रभाग द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म से ली गई थी. इस तस्वीर ने कई सालों तक देशभर में सनसनी मचाई. लोग मानने लगे कि वो सुभाष ही थे, जो निश्चित रूप से जीवित हैं.

वैसा ही चेहरा, वैसा चश्मा..क्या वो सुभाष थे
ये बात 24 मई 1964 की है. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर नई दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में जनता के दर्शनों के लिए रखा था. देश-विदेश के लोग बड़ी संख्या में कतार लगाकर उनके अंतिम दर्शन कर रहा था. हर कोई गमगीन था और उन्हें श्रृदांजलि दे रहा था. इसी दौरान एक भिक्षु भी उन्हें श्रृद्धांजलि देने आया. उसे लेकर दावा किया जाने लगा कि वो कोई और नहीं बल्कि नेताजी ही थे.

वो तस्वीर जो देखता हैरत में पड़ जाता
ये बात दशकों तक अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों में छाई रही. इस तस्वीर को प्रकाशित करके ये दावा किया जाता रहा कि वो नेताजी ही थे, जो नेहरू को श्रद्धांजलि देने आए थे और चुपचाप वहां से फिर गायब हो गए. सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार के बाद वहां भी ये तस्वीर वायरल होने लगी.

हू-ब-हू सुभाष सरीखे
इस घटना पर कुछ लोग हैरान थे तो कुछ ने वाकई मान लिया कि हो ना हो वो नेताजी ही थे. इस फोटोग्राफ ने उस समय सियासी भूचाल की स्थिति भी पैदा कर दी थी. दरअसल तस्वीर में नजर आ रहा शख्स हू-ब-हू सुभाष से मिलता जुलता था-वैसा ही चेहरा, वैसा ही ऐनक.

वियतनाम के बौद्ध भिक्षु भंते धर्मवारा की तस्वीर, जिनका चेहरा काफी हद तक सुभाष से मिलता है.बाद में वो खोसला आयोग के सामने पेश भी हुए

वो सुभाष नहीं बल्कि ये शख्स थे
दरअसल सुभाष की दिखने वाले वो भिक्षु भारत में रह रहे कंबोडियाई बौद्ध भिक्षु भंते समदश वीरा धर्मवारा बेलोंग महाथेरा थे. वो फिर खोसला आयोग के विशेष अनुरोध पर उनके सामने भी आए. उन्होंने बताया, उस दिन वो नेताजी के पार्थिव शरीर को श्रृद्धा सुमन पेश करके कुछ देर वहीं खड़े रहे. इतनी ही देर में उनका चेहरा शायद भारत सरकार के फिल्म प्रभाग के लोगों द्वारा उस अवसर की बनाई जा रही डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए शूट कर लिया गया.

वो बौद्ध भिक्षु खोसला आयोग के सामने भी पेश हुए
सुभाष चंद्र बोस पर लिखी किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा में इसका विस्तार से वर्णन है. बाद में जब जस्टिस खोसला आयोग के सामने भिक्षु धर्मवारा की गवाही हुई तो उनके साथ जाने-माने स्कॉलर डॉ. लोकेश चंद्रा भी वहां मौजूद थे. लोकेश बाद में राज्यसभा सदस्य भी हुए. भिक्षु की गवाही से डॉ. सत्यनारायण सिन्हा, एसएम गोस्वामी जैसे लोगों की ये बात गलत साबित हुई, जो दावे के साथ ये कह रहे थे कि वो सुभाष ही थे.

भंते धर्मवारा का 110 साल की उम्र में कैलिफोर्निया में निधन हो गया. हालांकि अब भी हर साल दिल्ली में उनका जन्मदिन मनाया जाता है

हालांकि तीन मूर्ति भवन में जिसने भी गोल चश्मा लगाए भिक्षु की तस्वीर नेहरू के पार्थिव शरीर के पास देखी, उन्हें यही लगा कि कहीं ये बोस तो नहीं. अब भी ज्यादातर लोग इस तस्वीर को लेकर यही तर्क करते हैं कि ये तस्वीर एकदम असली है और इससे कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है तो ये सुभाष ही हैं. लेकिन हकीकत यही है कि कंबोडियाई भिक्षु धर्मवारा हैं. अगर डॉ. लोकेश चंद्रा उन भिक्षु को आयोग के सामने नहीं लाते तो यही माना जाता रहता कि बोस कितने रहस्यमय तरीके से वहां पहुंचे और वहां से गायब हो गए.

अब जानिए कि कौन थे वो बौद्ध भिक्षु
अब बात उस बौद्ध भिक्षु की हो जाए, जो लंबे समय तक सुभाष के रूप में चर्चा का विषय बने रहे. उनका पूरा नाम क्या था, ये हम ऊपर बता चुके हैं. वो लंबे समय तक दिल्ली में रहे थे. यहां उन्होंने द अशोका मिशन की स्थापना की थी. वो कंबोडिया के एक धनी परिवार में पैदा हुए. वो उच्च शिक्षित थे. वो वकील से लेकर जज बने. फिर कंबोडिया में डिस्ट्रिक गर्वनर बने. फिर उन्होंने बौद्धिज्म का अध्ययन शुरू किया. 30 साल की उम्र के आसपास वो भिक्षु बन गए. उन्होंने जंगल में तपस्या भी की. फिर वो बर्मा और भारत आए.

फिर अमेरिका में बस गए
इन दोनों देशों में उन्होंने अपनी जिंदगी का लंबा समय गुजारा. वो जाने-माने नेचुरल हीलर भी थे. कई भाषाओं के जानकार थे. इसके बाद वो कई कार्यक्रमों में अमेरिका आमंत्रित किये जाने लगे. इसके अलावा हीलिंग के लिए ग्रुप्स को सिखाने के लिए दुनियाभर में यात्राएं करते रहते थे. बाद में वो स्थायी तौर पर अमेरिका में बस गए. वाशिंगटन डीसी में उन्होंने पहला बुद्धिस्ट मंदिर बनाया.

अब भी उनके जन्मदिन पर दिल्ली में होता है समारोह
110 साल की उम्र में भंते धर्मवारा का कैलिफोर्निया में निधन हो गया. उनकी अस्थियां दिल्ली के अशोक मिशन विहार में भी रखी हैं. हर साल 12 फरवरी को उनके जन्मदिन पर दिल्ली में भी समारोह भी होता है.

 

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