राजस्थान में सियासी तूफान थमने के बाद क्या कांग्रेस में अब साफ होगी राहुल गांधी की भूमिका?

राजस्थान संकट (Rajasthan political Crisis) ने कांग्रेस में एक नया संदेश भी दिया है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अंतिम और संभावित नियुक्ति हो सकती है, जिसकी अब तक कोई निश्चित समय सीमा नहीं है. राहुल ने इससे पहले पार्टी अध्यक्ष के रूप में कई काम किए, लेकिन उन्हें लेकर एक बड़ी आलोचना यह थी कि वे उन सलाहकारों से घिरे नहीं थे, जो संकट का समाधान करने के लिए उचित सलाह देते.

नई दिल्ली. राजस्थान (Rajasthan political Crisis) में बीते एक महीने से चल रहा सियासी घमासान भले ही अब थम गया हो. हालात अब शांत दिखाई दे रहे हैं, लेकिन ये शांति बेचैनी भी पैदा करती है. राजस्थान में सियासी तूफान ने भले ही अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की सरकार को नुकसान न पहुंचाया हो, लेकिन इसने कांग्रेस में आने वाले दिनों में एक नए तूफान की आंशका को जरूर प्रबल कर दिया है और जिससे इनकार नहीं किया जा सकता.

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सियासी घमासान के पीछे के कारणों और घटकों का पता लगाने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, ताकि आने वाले दिनों में ऐसी बगावत को बड़ा होने से पहले ही सुलझा लिया जा सके. समिति के गठन से एक महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं कि शीर्ष नेतृत्व सचिन पायलट और उनके विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं पर गहनता से विचार करना चाहती है.

इसमें सबसे पहला पॉइंट परिवर्तन है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले अविनाश पांडे का पार्टी में अब रोल बदल दिया गया है. राहुल गांधी के करीबी कहे जाने वाले अजय माकन को पांडे की जगह दे दी गई है. इसके साथ ही सचिन पायलट खेमे की एक मांग भी समिति ने पूरी कर दी. पायलट खेमे ने मांग की थी कि अविनाश पांडे की जगह अब किसी और को जिम्मेदारी देना चाहिए. समिति के अन्य सदस्य केसी वेणुगोपाल भी राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. हाल ही में उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया था, क्योंकि राहुल गांधी चाहते थे कि संसद में वेणुगोपाल उनके साथ हों.

इन सबके बीच राजस्थान संकट ने कांग्रेस में एक नया संदेश भी दिया है कि राहुल गांधी की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अंतिम और संभावित नियुक्ति हो सकती है, जिसकी अब तक कोई निश्चित समय सीमा नहीं है. राहुल ने इससे पहले पार्टी अध्यक्ष के रूप में कई काम किए, लेकिन उन्हें लेकर एक बड़ी आलोचना यह थी कि वे उन सलाहकारों से घिरे नहीं थे, जो संकट का समाधान करने के लिए उचित सलाह देते. राजस्थान संकट के दौरान इन्हीं पुराने वरिष्ठ साथियों ने स्थिति को संभाला और आखिरकार राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बची.

समिति के जिन सदस्यों को राजस्थान में सियासी संकट का समाधान खोजने को भेजा गया था, वो एक महीने तक जयपुर में ही रहे और जमीनी स्तर पर इस मामले को सुलझाने की कोशिश की. समिति के तीनों सदस्य सोनिया गांधी और राहुल गांधी के करीबी हैं, और खासकर राहुल के साथ उनकी ट्यूनिंग अच्छी है.

समिति के सबसे सीनियर सदस्य केसी वेणुगोपाल केरल में राहुल गांधी के सहयोगी हैं. मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला को राहुल की आंख और कान कहा जाता है. राहुल जींद से सुरजेवाला को चुनाव लड़वाना चाहते थे. सुरजेवाला अच्छी तरह से जानते थे कि वह इस सीट से चुनाव निश्चित तौर पर हारेंगे, फिर भी राहुल की वजह से वह चुनाव लड़ने के लिए तैयार भी हो गए थे. अब तीसरे सदस्य अजय माकन की बात करते हैं. माकन इन तीनों में से अकेले सदस्य हैं, जो यूपीए की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. उन्हें अब राजस्थान का प्रभार दिया गया है.

हालांकि, राजस्थान संकट को सुलझाने में अहमद पटेल और अशोक गहलोत के योगदान को भी छोटा करके नहीं देखना चाहिए. लेकिन, वेणुगोपाल, अजय माकन और सुरजेवाला ही संकट प्रबंधन के प्रमुख चेहरे थे. सूत्रों का कहना है कि भविष्य में भी उनकी बड़ी भूमिका तय होगी. मीडिया को संबोधित करने और विधायकों की कानूनी रणनीति के लिए ये तीनों नेता टीम का आधार बन सकते हैं. लेकिन, कई अन्य लोग भी हैं जो अब राहुल गांधी के लिए एक टीम के रूप में तैयार हो रहे हैं.

मनिकम टैगोर, अजय लल्लू, श्रीनिवास और डीके शिवकुमार को आने वाले दिनों में पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका मिलने की उम्मीद है. सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी सीनियर सदस्यों को पूरी तरह से ब्रेक देना नहीं चाहते. पार्टी में अनुभव और जोश का तालेमल बनाए रखना चाहते हैं. जल्द ही संगठनात्मक ढांचे में बड़ी फेरबदल देखने को मिल सकती है.

इनमें सबसे बड़ी बात ये ही कि पार्टी में प्रियंका गांधी वाड्रा अब एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी. अब देखना ये है कि क्या नया बदलाव पार्टी को और मजबूत कर सकता है या उसके कुछ और परिणाम होंगे.

 

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