सहजन की खेती:लाभदायक सहजन : चूर्ण और चटनी बनाकर हर माह की जा सकती है लाखाें रुपए की आमदनी

इसकी चटनी गर्भवतियों और बुजुर्गों को बचाती है कई बीमारियों से

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने प्रदेश के किसानों से सहजन यानि मोरिंगा काे लगाने का आह्वान किया है। कहा कि सहजन की खेती कर चूर्ण से लेकर अन्य प्राेडक्ट बेचकर हर माह लाखाें रुपए कमाए जा सकते हैं। यहीं नहीं गर्भवती महिलाओं से लेकर बुजुर्ग इसकी बनी चटनी का सेवन कर आंखाें की बीमारियाें से लेकर खून की कमी काे भी दूर कर सकते है।

कुलपति ने बताया कि सहजन का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलेइफेरा है। एचएयू के अनुसंधान निदेशक डाॅ. एस. के सहरावत ने बताया कि दक्षिण भारत में सहजन के फूल, पत्ती का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में पूरे सालभर करते हैं। कोराना महामारी के चलते प्रोफेसर समर सिंह ने बताया कि चमत्कारी वृक्ष सहजन की चटनी और आचार कई बीमारियों से निजात दिला सकती है।

संरक्षण की आवश्यकता
बालसमंद शोध फार्म के इंचार्ज डाॅ. विरेन्द्र दलाल ने बताया कि दो दशक पूर्व तक सहजन का पौधा प्रायः आसानी से मिल जाता था, लेकिन आज इसके संरक्षण की आवश्यकता को अनुभव किया जा रहा है। इस पौधे के विरल होते जाने का कारण यह है कि इस पर भुली नामक एक कीट रहता है, जिससे अत्यंत ही खतरनाक त्वचा एलर्जी होती है।
जलवायु : जलवायु की बात करें तो यह उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है। उन स्थानों में इसकी खेती सबसे अच्छी होती है।
पौषक तत्त्वों से भरपूर
सहजन के फूल, फली व पत्तों में इतने पोषक हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मार्ग दर्शन में दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में कुपोषण पीड़ित लोगों के आहार के रूप में देने की सलाह दी गई है। शरीर के विभिन्न अंगाें में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़, अजवायन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढा पैरों में दर्द, जोड़ों में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पत्थरी आदि में लाभकारी है।

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