आपके साथ कोई आपराधिक घटना हो गई तो आप जिस भी थाने में पहुंचेंगे, वहां पुलिस को जीरो एफआइआर दर्ज करनी होगी। वहां की पुलिस किसी दूसरे थाने के इलाके का मामला बता इससे इन्कार नहीं कर सकती। खासकर, महिलाओं व बच्चों से जुड़े अपराध में इसे सख्ती से लागू किया जाए।
यह सर्कुलर डीजीपी दिनकर गुप्ता ने पुलिस कमिश्नर व एसएसपी को भेजा है। अगर कोई इन हिदायतों का पालन नहीं करता तो उस पुलिस वाले के खिलाफ धारा 166ए आइपीसी के अधीन कार्रवाई की जाए। इसमें उच्च अधिकारी का आदेश न मानने पर छह माह से दो साल तक कैद व जुर्माने का प्रावधान है। इसके साथ ही ऐसे पुलिस कर्मियों व अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जाएगी।
डीजीपी के सर्कुलर में स्पष्ट तौर पर पुलिस वालों की लापरवाही बताई गई है कि कई बार पुलिस कर्मी पेट्रोलिंग ड्यूटी पर या अपने थाने में होते हैं और उनके पास कोई पीड़ित जुर्म की सूचना लेकर आता है तो उसे यह कहकर मोड़ दिया जाता है कि यह इलाका उनके अधीन नहीं आता। आगे से इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पुलिस कमिश्नरेट के एक उच्च अधिकारी ने कहा कि इस बारे में दफ्तर से लेकर पुलिस थाने व चौकी में तैनात स्टाफ को सतर्क किया जा रहा है, ताकि इस आदेश को गंभीरता से लागू किया जा सके।
सीआरपीसी की धारा 154 के तहत पुलिस को जीरो एफआइआर दर्ज करने का अधिकार है। इसके मुताबिक अगर कोई व्यक्ति या पीडि़त किसी थाने में जुर्म की शिकायत या सूचना देता है, लेकिन वह इलाका उस थाने के अधीन नहीं आता तो वह एफआइआर दर्ज कर सकता है। इसे जीरो एफआइआर कहते हैं।
जीरो एफआइआर के बाद देनी है मदद
अगर किसी थाने में जीरो एफआइआर दर्ज कर ली है तो उसके बाद थाने की पुलिस को पीडि़त को सुरक्षा, मेडिकल सहूलियत या जांच, आरोपितों की गिरफ्तारी व मौके से जरूरी सुबूत एकत्रित करना होता है। इसके बाद ही एफआइआर उस इलाके की पुलिस को भेजी जा सकती है।
इन केसों में बरतें गंभीरता
डीजीपी ने यह स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में जुर्म महिलाओं के शोषण या बच्चों के खिलाफ हो, उसमें पुलिस अफसर तुरंत जीरो एफआइआर दर्ज करें। फिर पीडि़त को डॉक्टरी मदद, मुआयना करवा उसका बयान दर्ज करें। मौके पर सुबूत व गवाही जुटाने व आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद ही संबंधित इलाके के थाने को एफआइआर तब्दील करें।