बासमती की जीआई टैगिंग पर विवाद:मध्य प्रदेश और पंजाब में कैसा और क्यों है विवाद?, कैप्टन अमरिंदर ने प्रधानमंत्री को ऐसा क्या लिखा पत्र में, जिससे शिवराज को गुस्सा आया

हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, पश्चिमी यूपी और जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्र में पैदा होने वाले बासमती की ही जीआई टैगिंग की जाती है बासमती की जीआई टैगिंग करवाने के मध्य प्रदेश के दावे का कड़ा विरोध किया जा रहा है, पंजाब के मुख्यमंत्री ने पीएम को पत्र लिखा है

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मध्य प्रदेश के बासमती चावल की जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैगिंग देने पर नाराजगी जताई है। बुधवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उन्होंने इस पर रोक लगाने की मांग की है। कैप्टन का कहना है कि जीआई टैगिंग से कृषि उत्पादों को उनकी भौगोलिक पहचान दी जाती है। भारत से हर साल 33 हजार करोड़ के बासमती चावल का निर्यात होता है। अगर जीआई टैगिंग व्यवस्था से छेड़छाड़ हुई तो इससे भारतीय बासमती के बाजार को नुकसान हो सकता है और इसका सीधा-सीधा फायदा पाकिस्तान को मिल सकता है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी इस संबंध में गुरुवार को प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा है। इससे पहले शिवराज ने कैप्टन के कदम को राजनीति से प्रेरित बताया था। उन्होंने यह भी पूछा था कि कैप्टन की मध्य प्रदेश के किसानों से क्या दुश्मनी है?

दरअसल, भारत में हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के कुछ क्षेत्र में पैदा होने वाले बासमती की ही जीआई टैगिंग की जाती है। इन दिनों मध्य प्रदेश में पैदा हुए बासमती चावल को जीआई टैगिंग दिए जाने का मसला चर्चा में है। बासमती की जीआई टैगिंग करवाने के मध्य प्रदेश के दावे का कड़ा विरोध किया जा रहा है। न सिर्फ ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर एसोसिएशन इसके विरोध में है, बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है।

कैप्टन ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, कहा- जीआई टैगिंग की व्यवस्था में छेड़छाड़ करने से रोकें

इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र के माध्यम से कैप्टन ने कहा है कि भारत में बासमती की खेती करने वाले किसानों और निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए वह अधिकारियों को जीआई टैगिंग की व्यवस्था में छेड़छाड़ करने से रोकें। जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 के तहत जीआई टैग उन कृषि उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष में विशेष गुणवत्ता और विशेषताओं के साथ उत्पन्न होती है। भारत में जीआई टैगिंग वाले बासमती को उसकी गुणवत्ता, स्वाद और खुशबू के लिए दी जाती है। हिमालय की तलहटी में बसे क्षेत्रों में इंडो-गेंजेटिक क्षेत्र में पैदा होने वाली बासमती का स्वाद और खुशबू की पहचान सारे विश्व में विख्यात है।

कैप्टन ने कहा मप्र को जीआई टैग देना, एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन होगा

उन्‍होंने कहा है कि मध्य प्रदेश, बासमती का उत्पादन करने वाले इस इस विशेष क्षेत्र में नहीं आता, इसीलिए इसे पहले ही बासमती की जीआई टैगिंग के लिए शामिल नहीं किया गया था। मध्य प्रदेश को जीआई टैगिंग में शामिल करना न सिर्फ जीआई टैगिंग एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन होगा, बल्कि यह जीआई टैगिंग के उद्देश्य को ही बर्बाद कर देगा।

पहले भी हो चुका मध्य प्रदेश का दावा खारिज
पंजाब मुख्यमंत्री ने हवाला दिया कि इससे पहले 2017-18 में भी मध्य प्रदेश ने जीआई टैगिंग हासिल करने का प्रयास किया था, लेकिन तब रजिस्ट्रार ने मध्य प्रदेश के दावे को इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी अपीलेंट बोर्ड ने भी खारिज कर दिया था। मद्रास हाईकोर्ट से भी मध्य प्रदेश को राहत नहीं मिली थी। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि मध्य प्रदेश के इस दावे पर भारत सरकार द्वारा गठित की गई कृषि विज्ञानियों की समिति ने भी इस दावे को खारिज कर दिया था।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि जीआई टैगिंग मध्य प्रदेश के किसानों के लिए गर्व की बात है और यह उनकी वर्षों की मेहनत को मान्यता देता है।

मध्य प्रदेश की दलील
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया, ‘इसे पंजाब बनाम मध्य प्रदेश का मामला नहीं बनाया जाना चाहिए। जीआई टैगिंग मिलने से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बासमती की कीमतों में स्थिरता आएगी और हमारा निर्यात बढ़ेगा।’ उन्होंने कहा कि यह एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी का मामला है और इसका पाकिस्तान से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के 13 जिलों में 1908 से बासमती की खेती हो रही है।

मुख्यमंत्री शिवराज ने आंकड़ों के साथ कैप्टन अमरिंदर को जवाब दिया कि मध्यप्रदेश के 13 ज़िलों में वर्ष 1908  से बासमती चावल का उत्पादन हो रहा है, इसका लिखित इतिहास भी है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राईस रिसर्च, हैदराबाद ने अपनी ‘उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण रिपोर्ट’ में दर्ज किया है कि मध्यप्रदेश में पिछले 25 वर्ष से बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है, पंजाब और हरियाणा के बासमती निर्यातक मध्यप्रदेश से चावल खरीद रहे हैं.  भारत सरकार के निर्यात के आंकड़ें इस बात की पुष्टि करते हैं. भारत सरकार साल 1999 से मध्यप्रदेश को बासमती चावल के ब्रीडर बीज की आपूर्ति कर रही है. पाकिस्तान के साथ APEDA के मामले का मध्यप्रदेश के दावों से कोई संबंध नहीं है क्योंकि यह भारत के GI Act के तहत आता है और इसका बासमती चावल के अंतर्देशीय दावों से इसका कोई जुड़ाव नहीं है.

सिंधिया स्टेट’ के रिकॉर्ड में दर्ज है
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि तत्कालीन ‘सिंधिया स्टेट’ के रिकॉर्ड में अंकित है कि वर्ष 1944 में प्रदेश के किसानों को बीज की आपूर्ति की गई थी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च, हैदराबाद ने अपनी ‘उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण रिपोर्ट’ में दर्ज किया है कि मध्यप्रदेश में पिछले 25 वर्ष से बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है। मध्यप्रदेश को मिलने वाले जीआई टैगिंग से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत के बासमती चावल की कीमतों को स्थिरता मिलेगी और देश के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार के दौरान ही 5 मार्च 2018 को जीआई रजिस्ट्री ने मध्यप्रदेश को बासमती उत्पादक राज्य मानने से इंकार किया।

कमलनाथ ने कहा- जो कुछ हुआ केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकार के समय हुआ

हमने हमारी 15 माह की सरकार में इस लड़ाई को दमदारी से लड़ा। अगस्त 2019 में इस प्रकरण में हमारी सरकार के समय हुईं सुनवाई में हमने दृढ़ता से शासन की ओर से अपना पक्ष रखा था। पंजाब के मुख्यमंत्री वहां के किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं। बासमती चावल को जी.आई.टैग मिले, इसकी शुरुआत ऐपिडा ने नवम्बर 2008 में की थी। उसके बाद 10 वर्षों तक प्रदेश में भाजपा की सरकार रही। जिसने इस लड़ाई को ठीक ढंग से नहीं लड़ा। जिसके कारण हम इस मामले मे पिछड़े। मैं प्रदेश के किसानों के साथ खड़ा हूं, सदैव उनकी लड़ाई को लड़ूंगा। इसमें कांग्रेस-भाजपा वाली कुछ बात नहीं है।

इन राज्यों को मिला है बासमती का जीआई टैग
पंजाब के अलावा हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर के कुछ जिलों को बासमती के लिए जीआई टैगिंग हासिल है। अमरिंदर ने पीएमओ को लिखे पत्र में कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने 2017-18 में भी ऐसी कोशिश की थी लेकिन तब उसके दावे को खारिज कर दिया गया था।

क्या होता है जीआई टैग

जीआई टैग ऐसे उत्पादों को दिया जाता है जिसमें किसी क्षेत्र विशेष की खूबियां होती हैं। अगर किसी दूसरी इसका उत्पादन होता है तो उसे इसके नाम का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होती है। दार्जिलिंग चाय, सेलम फैब्रिक, चंदेरी साड़ियां और मैसूर सिल्क इसका उदाहरण हैं। अमरिंदर सिंह ने 5 अगस्त को प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखकर कहा कि भारत हर साल 33000 करोड़ रुपये की बासमती का निर्यात करता है और इसके रजिस्ट्रेशन को कमजोर करने से पाकिस्तान को फायदा मिल सकता है।

आपको बता दें कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मध्य प्रदेश के बासमती चावल की जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैगिंग देने पर नाराजगी जताई है. बुधवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उन्होंने इस पर रोक लगाने की मांग की है. कैप्टन का कहना है कि जीआई टैगिंग से कृषि उत्पादों को उनकी भौगोलिक पहचान दी जाती है.  भारत से हर साल 33 हजार करोड़ की बासमती चावल का निर्यात होता है.  अगर जीआई टैगिंग व्यवस्था से छेड़छाड़ हुई तो इससे भारतीय बासमती के बाजार को नुकसान हो सकता है और इसका सीधा-सीधा फायदा पाकिस्तान को मिल सकता है.

क्या होता है जियोग्राफिकल इंडिकेशन
भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है.  जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है. भारत में अब तक लगभग 361 प्रोडक्ट्स को GI टैग मिल चुका है.

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