राम मंदिर भूमि पूजन: हमेशा याद किए जाएंगे अयोध्या कांड के ये किरदार
जिनके जिक्र के बिना अधूरा है राम मंदिर आंदोलन, उन गुमनाम और चर्चित चेहरों के बारे में जानिए कि उन्होंने मंदिर के लिए क्या किया
नई दिल्ली. करीब पांच सौ साल बाद 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन (Ram Mandir Bhoomi Pujan) की शुभ घड़ी आ रही है. इस यात्रा में कई लोगों ने अपनी जिंदगी खपाई है. इससे जुड़ा जिक्र जब भी होगा इसके प्रमुख किरदारों को याद किया जाएगा. इनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, विनय कटियार, साध्वी ऋतम्भरा, महंत अवैद्यनाथ, सुरेश बघेल, कोठारी बंधु और प्रवीण तोगड़िया जैसे लोग शामिल हैं. जिनकी इस बदौलत यह सफर निर्माण तक पहुंचा है. ये तो चर्चित नाम हैं लेकिन कुछ गुमनाम भी हैं जिनके जिक्र के बिना यह आंदोलन अधूरा माना जाएगा. जैसे महंत रघुबर दास, गोपाल सिंह विशारद, केके नायर और सुरेश बघेल आदि.
महंत रघुबर दास: साल 1853 में अयोध्या (Ayodhya) में मंदिर और मस्जिद को लेकर फसाद हुआ था. तब अयोध्या, अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासन में आती थी. उस वक़्त हिंदू धर्म को मानने वाले निर्मोही पंथ के लोगों ने दावा किया था कि मंदिर को तोड़कर यहां पर बाबर के समय मस्जिद बनवाई गई थी. 1859 में अंग्रेज़ी हुकूमत ने मस्जिद के आसपास तार लगवा दिए और दोनों समुदायों के पूजा स्थल को अलग-अलग कर दिया. मुस्लिमों को अंदर की जगह दी गई, हिंदुओं को बाहर की. मगर इस झगड़े के बाद पहली बार 1885 में मामला अदालत पहुंचा. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर के निर्माण की इजाज़त के लिए अपील दायर की.
वर्षों के आंदोलन और अदालती कार्रवाई के बाद राम मंदिर निर्माण शुरू हो रहा है (File Photo)
गोपाल सिंह विशारद: आजादी के बाद पहला मुकदमा (नियमित वाद क्रमांक 2/1950) एक दर्शनार्थी भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 ई. को सिविल जज, फ़ैज़ाबाद की अदालत में दायर किया था. वे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ज़िला गोंडा, वर्तमान ज़िला बलरामपुर के निवासी और हिंदू महासभा, गोंडा के ज़िलाध्यक्ष थे. गोपाल सिंह विशारद 14 जनवरी, 1950 को जब भगवान के दर्शन करने श्रीराम जन्मभूमि जा रहे थे, तब पुलिस ने उनको रोका. पुलिस अन्य दर्शनार्थियों को भी रोक रही थी.
गोपाल सिंह विशारद ने ज़िला अदालत से प्रार्थना की कि-‘‘प्रतिवादीगणों के विरुद्ध स्थायी व सतत निषेधात्मक आदेश जारी किया जाए ताकि प्रतिवादी स्थान जन्मभूमि से भगवान रामचन्द्र आदि की विराजमान मूर्तियों को उस स्थान से जहां वे हैं, कभी न हटावें तथा उसके प्रवेशद्वार व अन्य आने-जाने के मार्ग बंद न करें और पूजा-दर्शन में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न डालें.’’
केके नायर: केरल के अलप्पी के रहने वाले केके नायर (K. K. Nayar) भी राम मंदिर की यात्रा के गुमनाम नायक हैं. नायर 1930 बैच के आईसीएस अफ़सर थे. नायर 1 जून 1949 को फ़ैज़ाबाद के कलेक्टर बने. 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में स्थापित हुईं तो उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के दो बार कहने के बावजूद उन्होंने आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई. यहां तक कहा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए.
हिंदुत्व के प्रतीक बने थे केके नायर
सुरेश बघेल: 30 साल पहले 1990 में राम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने की पहली और मजबूत कोशिश करने वाले वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही आज किसी को याद है. उन्होंने मंदिर के लिए कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल, धमकियां, मुफलिसी और परिवार से दूरी सबकुछ झेला है. इस वक्त वो एक निजी कंपनी में 6000 रुपये प्रतिमाह पर काम करके गुजर-बसर कर रहे हैं. उन्होंने मंदिर आंदोलन में अपने योगदान को कभी सियासी तौर पर नहीं भुनाया. न तो किसी पार्टी के सामने हाथ फैलाया.
1990 में बाबरी ढांचा गिराने पहुंचे अयोध्या राम मंदिर के हीरो सुरेश बघेल
चर्चा में रहने वाले किरदार
महंत दिग्विजय नाथ: गोरक्षनाथ मठ के महंत दिग्विजय नाथ उन चंद शख्सियतों में थे जिन्होंने बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) को मंदिर में बदलने की कल्पना की थी. उन्हीं की अगुवाई में 22 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे के भीतर भगवान राम की प्रतिमा रखवाई गई थी. तब हिंदू महासभा के विनायक दामोदर सावरकर के साथ दिग्विजय नाथ ही थे, जिनके हाथ में इस आंदोलन की कमान थी. हिंदू महासभा के सदस्यों ने तब अयोध्या में इस काम को अंजाम दिया था.
एलके आडवाणी: जून 1989 में बीजेपी (BJP) ने वीएचपी (VHP) को औपचारिक समर्थन देना शुरू किया. इससे मंदिर आंदोलन को नया जीवन मिला. तब बीजेपी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से राम रथयात्रा शुरू की. आडवाणी को 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में लालू प्रसाद यादव ने गिरफ़्तार करवा दिया. सीबीआई की मूल चार्जशीट में विवादित ढांचा गिराने के ‘षड्यंत्र’ के वो मुख्य सूत्रधार रहे हैं.
कल्याण सिंह:1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. सीबीआई की मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने के ‘षड्यंत्र’ में शामिल. तकनीकी कारणों से मुक़दमे से बाहर हो गए. छह दिसंबर 1992 को वही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उन पर आरोप है कि उनकी पुलिस और प्रशासन ने जान बूझकर कारसेवकों को नहीं रोका.
अशोक सिंघल: विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंघल रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के प्रमुख. कारसेवकों से नारा लगवाया “राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे. एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो.” कई लोगों की नजरों में वह राम मंदिर आंदोलन के ‘चीफ़ आर्किटेक्ट’ थे. वह 2011 तक वीएचपी के अध्यक्ष रहे. 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया.
महंत अवैद्यनाथ: महंत अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे. वह श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष थे. माना जाता है कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने का प्लान उनकी देखरेख में बनाया गया था. मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने इलाहाबाद में जिस धर्म संसद (साल 1989 में) का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया.
मंदिर आंदोलन के सबसे चर्चित किरदार
विनय कटियार: विश्व हिंदू परिषद के सहयोगी संगठन बजरंग दल के नेता. चार्जशीट के मुताबिक़ कटियार ने 6 दिसंबर को भाषण में कहा, “हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नहीं तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा.” छह दिसंबर के बाद कटियार का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ा. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव भी बने. कटियार फैजाबाद लोकसभा सीट से तीन बार सांसद चुने गए.
मुरली मनोहर जोशी: 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय मुरली मनोहर जोशी आडवाणी के बाद बीजेपी के दूसरे बड़े नेता थे. छह दिसंबर 1992 को घटना के समय वह विवादित परिसर में मौजूद थे. गुंबद गिरने पर उमा भारती उनसे गले मिली थीं.
साध्वी ऋतंभरा: वो एक समय हिंदुत्व की फायरब्रांड नेता थीं. बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उनके विरुद्ध आपराधिक साजिश के आरोप तय किए गए थे. उनके उग्र भाषणों के ऑडियो कैसेट पूरे देश में बंटे थे, जिसमें वे विरोधियों को ‘बाबर की आलौद’ कहकर ललकारती थीं. इस वक्त वृंदावन में रहती हैं.
यूपी के वरिष्ठ पत्रकार टीपी शाही कहते हैं कि इन किरदारों के साथ-साथ वे लोग भी याद रखे जाएंगे जिन्होंने इसके खिलाफ मुकदमा लड़ा और जिन्होंने इसमें सियासी रोड़े अटकाए. खासतौर पर लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव. दोनों नेताओं ने मंदिर आंदोलन के विरोध की सियासी फसल भी काटी.