क्या है कन्फ्यूशियस संस्थान, जो भारत में चीन का एजेंट बना हुआ है

चीन का कन्फ्यूशियस संस्थान (Confucius Institute of China) देश के ख्यात कॉलेजों में सेंध लगा चुका है. अब शिक्षा मंत्रालय (Education Ministry of India) इसकी जांच करने जा रहा है.

लद्दाख में चीनी घुसपैठ की कोशिश के बाद से भारत किसी भी तरह से चीन को बख्शने के मूड में नहीं दिख रहा. चीन की सरकार को आर्थिक और सैन्य से लेकर कूटनीतिक और सांस्कृतिक मोर्चे पर भी घेरा जा रहा है. चीनी ऐप्स बैन के बाद सरकार की नजर उन यूनिवर्सिटीज पर हैं, जो चीन की एक खास विचारधारा से प्रेरित हैं. इन्हें कन्फ्यूशियस संस्थान कहते हैं. ये चीनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देते हुए किसी खास राज्य या देश में पैठ बना लेते हैं. यही वजह है कि सरकार देश में ऐसे संस्थानों की समीक्षा करने वाली है.
कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट ...

क्या है मामला
कहा जा रहा है कि खुफिया एजेंसियों ने सरकार को चीन की इस चालाकी के बारे में आगाह किया. इसके बाद से उच्च शिक्षा विभाग हरकत में आया हुआ है. एजुकेशन मिनिस्ट्री इसके तहत सात कॉलेज और विश्वविद्यालयों की समीक्षा करने वाली है. माना जा रहा है कि चीन उन कॉलेजों को फंडिंग के जरिए अपनी भाषा और संस्कृति सिखाता है ताकि स्टूडेंट चीन के प्रभाव में आ जाएं. ये एक तरह से वैसा ही पैंतरा है, जैसा नेपाल में घुसपैठ के लिए चीन ने आजमाया था.

ये चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के नाम पर आधारित हैं (Photo-needpix)

नेपाल के हाल

क्या है संस्थान
ये चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के नाम पर आधारित हैं. वैसे तो पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस दार्शनिक की आलोचना किया करती थी लेकिन बाद में उसे दुनिया के दूसरे देशों से जुड़ने का यही सबसे सीधा जरिया लगा. असल में कन्फ्यूशियस का दर्शन दूसरे देशों के लिए काफी जाना-पहचाना है और चीन की सरकार को लगा कि उनका नाम ब्रांड इमेज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी तरह से कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूशन की शुरुआत हुई.

पहला इंस्टीट्यूट साउथ कोरिया में साल 2004 में खुला. इसके बाद से दुनिया के बहुत से विकसित और मध्यआय वाले देशों में ये संस्थान पहुंच चुका है. एक अनुमान के मुताबिक साल 2019 में दुनियाभर के देशों में 530 कन्फ्यूशियस संस्थान बन चुके थे.

किस तरह काम करता है

कन्फ्यूशियस संस्थान चीन की सरकार से सीधे फंडिंग पाते हैं. इस फंडिंग के आधार पर ये दूसरे देशों के कॉलेज या यूनिवर्सिटीज से संपर्क करते हैं और वहां पर चीनी भाषा सिखाने या चीनी संस्कृति सिखाने की बात करते हैं. इसके लिए Chinese Ministry of Education से भारी पैसे मिलते हैं. पहले कनफ्यूशियस संस्थानों की तुलना कई सारे विदेशी संस्थानों जैसे ब्रिटिश काउंसिल, अलायंस फ्रेंचाइस जैसों से होती रही लेकिन जल्दी ही लोगों को समझ आने लगा कि चीन से आए इन संस्थानों का इरादा केवल भाषा और संस्कृति के बारे में बोलना-बताना नहीं, बल्कि युवाओं को अपने प्रभाव में लाना भी है.

लगा रहे सेंध
वैसे तो ये सांस्कृतिक लेनदेन की बात करते हैं लेकिन धीरे-धीरे ये होस्ट यूनिवर्सिटी की पढ़ाई-लिखाई में सीधा दखल देने लगते हैं. चूंकि ये काफी पैसे देते हैं इसलिए संस्थान इन्हें अलग भी नहीं कर पाते हैं. हालांकि बीते कई सालों से ये अपनी पॉलिसी और तौर-तरीकों को लेकर विवादों में रहे.

देश लगा रहे इनपर बैन
अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों ने इसपर चीनी संस्कृति के जबरिया प्रचार का आरोप लगाया. साल 2013 में कनाडा ने अपने यहां कनफ्यूशियस संस्थान को बंद करवा दिया. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने भी कनफ्यूशियस संस्थानों की जांच और आरोपों के सही पाए जाने पर उन्हें बंद करने का आदेश दिया था. कनफ्यूशियस संस्थानों की हायरिंग का तरीका भी काफी भेदभाव वाला माना जाता है. ये अपने यहां एक खास समुदाय फालुन गोंग से जुड़े लोगों को अपॉइंट नहीं करते हैं, चाहे वो कितने ही काबिल क्यों न हों.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अब भारत में भी शिक्षा मंत्रालय लगभग 54 MoUs का रिव्यू करेगा, जो भारतीय यूनिवर्सिटीज और चीन के कन्फ्यूशियस संस्थान के बीच हुए. इनमें कई बड़े विश्वविद्यालय जैसे आईआईटी, बीएचयू, जेएनयू, एनआईटी और यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई भी शामिल हैं.

 

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