गर्भ तक पहुंचा कोरोना:गर्भवती महिला के पेट में पल रहे बच्चे तक पहुंचा संक्रमण, वर्टिकल ट्रांसमिशन का पहला मामला; अब मां और बेटी स्वस्थ
ससून हॉस्पिटल मुताबिक, बच्चे को प्लेसेंटा के माध्यम से कोरोनावायरस का संक्रमण हुआ है प्लेसेंटा गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में विकसित होता है, इसके जरिए ही बच्चे को ऑक्सीजन और दूसरे जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं
पुणे के ससून जनरल अस्पताल ने दावा किया है कि गर्भ में पल रहे बच्चे तक कोरोनावायरस पहुंच सकता है। पुणे के बीजे मेडिकल कॉलेज के अंडर आने वाले ससून अस्पताल में भर्ती एक गर्भवती महिला को डिलीवरी से एक महीने पहले बुखार आया था। डिलीवरी के बाद बच्ची कोरोना पॉजिटिव पाई गई। मेडिकल टर्म में इसे वर्टिकल ट्रांसमिशन कहा जाता है। इलाज के बाद मां-बेटी दोनों स्वस्थ हैं। उन्हें डिस्चार्ज किया जा चुका है। मामला कुछ हफ्ते पुराना है।
वर्टिकल ट्रांसमिशन का पहला मामला
हॉस्पिटल के मुताबिक, बच्चे को प्लेसेंटा के जरिए संक्रमण हुआ। यह वर्टिकल ट्रांसमिशन का देश का पहला मामला है। डॉक्टर्स के मुताबिक, जब शिशु गर्भाशय में होता है और इस दौरान वह संक्रमित हो जाता है तो इसे वर्टिकल ट्रांसमिशन कहते हैं। यदि मां संक्रमित है तो वायरस का प्रसार गर्भनाल से प्लेसेंटा तक पहुंच जाता है। प्लेसेंटा गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में विकसित होता है। यह बच्चे को ऑक्सीजन और दूसरे पोषक तत्व (न्यूट्रीएंट्स) पहुंचाता है।
डॉक्टर क्या कहते हैं…
इस हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट की हेड डॉ. आरती किणिकर के मुताबिक- जब किसी व्यक्ति को संक्रमण होता है तो यह मुख्य रूप से फोमाइट्स के साथ कुछ संपर्क के कारण होता है। यदि मां संक्रमित है, तो फीडिंग या किसी अन्य संपर्क के कारण बच्चा जन्म के बाद संक्रमित हो सकता है। फोमाइट्स उन चीजों को कहते हैं जिनके जरिए इन्फेक्शन होने की आशंका होती। जैसे कपड़े, बर्तन या फर्नीचर।
आसान तरीके से समझें
डॉक्टर आरती के मुताबिक- बच्चे को जन्म के समय संक्रमण नहीं होता। लेकिन, तीन से चार दिनों में वह संक्रमित हो सकता है। वर्टिकल ट्रांसमिशन में जब बच्चा गर्भाशय में होता है और मां को संक्रमण होता है, तो वह गर्भनाल के जरिए बच्चे तक पहुंच जाता है। संक्रमण सिमटोमैटिक या एसिमटोमैटिक हो सकता है। यानी संक्रमण के लक्षण दिख भी सकते हैं और नहीं भी।
बच्ची को था गंभीर संक्रमण
डॉ. किणिकर ने कहा- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने जब से सभी गर्भवती महिलाओं का परीक्षण करना अनिवार्य किया है, तब से यहां की हर गर्भवती महिला का परीक्षण किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि बच्ची के जन्म के बाद बच्चे की नाक और गर्भनाल किया गया। रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
मां और बेटी अब स्वस्थ
डॉक्टर आरती के मुताबिक- जन्म के दो तीन बाद तक बच्ची को बुखार था। उसे स्पेशल वॉर्ड में मां से अलग रखा गया। अब दोनों स्वस्थ हैं। दो हफ्ते बाद उन्हें डिस्चार्ज किया गया। जांच के दौरान यह पुष्टि की गई कि यह वर्टिकल ट्रांसमिशन का मामला था। तीन हफ्ते तक हमने एंटीबॉडी रिएक्शन और ब्लड टेस्ट किए। दोनों में एंटीबॉडी बन चुकी थीं।