कोरोना वायरस की चपेट में आसानी से कैसे जा जाते हैं कुछ लोग, शोधकर्ताओं ने लगाया पता

टीम ने इस पद्धति का इस्तेमाल आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के तिरुपति में इलाज करा रहे मरीजों पर किया ताकि इलाज के लिए अस्पताल में रूकने की अवधि और कोरोना वायरस जांच निगेटिव आने के समय का पता लगाया जा सके.

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चेन्नई. क्या कभी आपने सोचा है कि कुछ लोग कोरोना वायरस (Coronavirus) से आसानी से कैसे संक्रमित हो जाते हैं और कुछ लोग क्यों जल्दी तेजी से इससे उबर जाते हैं. आयुष मंत्रालय (Ministry of AYUSH) के तहत आने वाले केंद्रीय सिद्ध अनुसंधान परिषद के तहत कार्य करने वाले केंद्रीय सिद्ध अनुसंधान संस्थान, सिद्ध साहित्य की समीक्षा और अनुसंधान के बाद इन्हीं चिंताओं और शंकाओं के निवारण के लिए याक्काई इलाक्कनम (यी) पद्धति लेकर आया है. इसका लक्ष्य एक ठोस समाधान के साथ आने के अलावा, शंकाओं और चिंताओं को दूर करना है.

इसमें मानव शरीर के तीन खंडों का जिक्र है. प्रत्येक खंड में शारीरिक, मानसिक और शरीर के काम करने की प्रक्रिया है. यी पद्धति 33 सवालों की प्रश्नावली है जिसे सिद्ध साहित्य के करीब 260 सवालों से निकाला गया है. केंद्रीय सिद्ध अनुसंधान संस्थान (CSRI) के प्रभारी निदेशक डॉक्टर पी सत्यराजेश्वरन ने कहा, ‘यी दरअसल याक्काई इलाक्कनम है जिसका मतलब शरीर संघटन होता है. यह नैदानिक पद्धति सिद्ध अवधारणा पर आधारित है. और हमने पाया कि यी पद्धति और कोविड-19 के बीच संबंध है.’

कोरोना में कौनसा पोषक आहार करेगा काम

उन्होंने कहा कि इससे कोविड-19 के समय मरीज की हालत को समझने में बेहतर जानकारी मिलती है. मौजूदा समय में इस प्रश्नावली को सिद्ध डॉक्टरों के पास भेजा जा रहा है और 10 जिलों में काम कर रहे डॉक्टरों ने इसे मांगा और हासिल किया. डॉक्टरों ने मरीजों/स्वयंसेवकों से मिले जवाबों को लिखा है. केंद्रीय सिद्ध अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉक्टर के कनाकावल्ली ने कहा कि इस पद्धति से डॉक्टरों को मरीजों को उचित इलाज देने के निर्णय में सहायता मिलती है और उन्हें इसमें भी आसानी होती है कि संक्रमित व्यक्ति को कौन सा पोषक आहार दिया जाए जिससे वह तेजी से स्वस्थ होगा. शरीर संघटन की अवधारणा सिद्ध चिकित्सा प्रणाली में ‘मुथ थाडहू’ यानी तीन जीवन कारकों वाथम, पीथम और काबम पर आधारित है.

36 लोगों पर किया गया अध्ययन

उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति अलग होती है और सभी में प्रतिरक्षा दर भी एक जैसा नहीं होता है. उन्होंने बताया कि इस पद्धति का इस्तेमाल वैसे 36 लोगों पर किया गया जो कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति के पहले संपर्क वाले व्यक्ति थे और राज्य के तीरुपट्टूर में पृथकवास में थे. उन्होंने कहा, ‘ ये सभी स्वस्थ स्वयंसेवक थे और इस पद्धति का इस्तेमाल करते हुए यह पाया गया कि जो वाथम श्रेणी में आए उनमें प्रतिरक्षा की कमी है, जो प्रथम श्रेणी में आए उनमें मध्यम प्रतिरक्षा स्तर 75 फीसदी है और जो काबम में आए उनमें 100 फीसदी प्रतिरक्षा दर है.’’

टीम ने इस पद्धति का इस्तेमाल आंध्र प्रदेश के तिरुपति में इलाज करा रहे मरीजों पर किया ताकि इलाज के लिए अस्पताल में रूकने की अवधि और कोरोना वायरस जांच निगेटिव आने के समय का पता लगाया जा सके. टीम ने पाया कि वाथम श्रेणी में आने वाले लोगो को स्वस्थ होने में 7.5 दिन, पीथम में आने वालों को एक सप्ताह जबकि काबम में आने वाले औसतन छह दिन में ठीक हो गए.

 

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