राजस्थान में कांग्रेस पर संकट गहराया / प्रदेश कांग्रेस, युवा कांग्रेस और सेवा दल के अध्यक्ष बगावत की राह पर, राज्य में इस तरह की स्थिति पहली बार बनी

युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश भाखर और सेवा दल के प्रदेश अध्यक्ष राकेश पारीक भी पायलट के सुर में सुर मिला रहे प्रदेश कांग्रेस के तीन बड़े संगठनाें के बड़े चेहरे बगावत की राह पर चल पड़े हैं, जिनका अब पीछे लाैटना मुश्किल

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जयपुर. राजस्थान के सियायत में उठापटक के बीच कई नए अध्याय भी लिखे जा रहे हैं। यदि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने पार्टी काे अलविदा कह दिया ताे राज्य में ऐसा पहली बार हाेगा कि किसी दल का अध्यक्ष ही छाेड़कर चला गया हाे। वे फिलहाल अपने करीबी विधायकों के साथ हरियाणा के होटल में हैं।

दिलचस्प यह है कि युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मुकेश भाखर और सेवा दल के प्रदेश अध्यक्ष राकेश पारीक भी पायलट के सुर में सुर मिला रहे हैं। मुकेश भाकर ने सोमवार को कहा, ‘‘जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है, उसूलों पर आंच आए तो टकराना जरूरी है। कांग्रेस में निष्ठा का मतलब है अशोक गहलोत की गुलामी। वो हमें मंजूर नहीं।’’ इससे उनकी बगावत जग जाहिर हो गई है। वहीं सेवा दल के प्रदेश अध्यक्ष राकेश पारीक के पायलट के साथ दिल्ली में होने की सूचना है।

प्रदेश कांग्रेस के तीन बड़े संगठनाें के बड़े चेहरे बगावत की राह पर चल पड़े हैं, जिन्हें अब पीछे लाैटना मुश्किल लग रहा है। यह राज्य कांग्रेस के लिहाज से बड़ा झटका माना जा रहा है, जिससे उबरना लंबे समय तक के लिए मुश्किल हाेगा।

कांग्रेस के तीन संगठनाें के अध्यक्ष राज्य पार्टी एक साथ पार्टी से बगावती सुर अपनाए हुए हैं। जानकारों का कहना है कि प्रदेश की राजनीति में संभवतया पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी प्रदेशाध्यक्ष द्वारा अपनी सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ इस तरह से बगावत की जा रही है।

पायलट ने तो हालांकि अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। ना ही उनकी तरफ से कोई बयान जारी किया जा रहा है। इसी तरह से पारीक भी पायलट के साथ लगातार बने हुए हैं। ये तीनों अग्रिम संगठन माने जाते है जिनकी जड़ें जमीन तक जुड़ी हुई है। यहीं से पार्टी के जनाधार के कमजोर और मजबूत होने का आंकलन किया जाता है।

66 साल पहले जयनारायण व्यास के खिलाफ मोहनलाल सुखाड़िया ने की थी बगावत

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, प्रदेश में यह कोई पहला मौका नहीं है जब मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। 66 साल पहले 1954 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ कांग्रेस में बगावत हो गई।

तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अपने सबसे खास व्यास की कुर्सी को नहीं बचा पाए थे। इसके बाद उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद व्यास ने एक तांगे में सामान भरवाया था और मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिया था। व्यास 1952 में दो जगह से हार कर भी मुख्यमंत्री बने थे। दो साल के भीतर ही कांग्रेस के अंदर फूट हो गई। 38 साल के युवा नेता मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत कर दी।

तब पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूरी कोशिश की व्यास की सरकार बचाने की, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। कांग्रेस ने पार्टी के तब महासचिव रहे बलवंत राय मेहता को जयपुर भेजा। पार्टी विधायकों ने मतदान के माध्यम से नेता चुनने का फैसला लिया। इसके बाद विधायकों ने मतदान किया। इसमें सुखाड़िया विजयी रहे।

कांग्रेस कार्यालय में नतीजा आते ही व्यास एक तांगे में बैठ मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। तब तक सुखाड़िया माणिक्य लाल वर्मा और मथुरादास माथुर को लेकर उनके घर आशीर्वाद लेने पहुंच गए। एक दौर में वर्मा और माथुर को व्यास का सबसे खास माना जाता था, लेकिन तब उन्होंने पाला बदल लिया था।

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