राजस्थान की रार: दिल्ली पहुंचे सचिन पायलट, मिलने के मूड में नहीं पार्टी आलाकमान

SOG का नोटिस मिलने से डिप्टी सीएम सचिन पायलट गहलोत से नाराजगहलोत ने पार्टी आलाकमान को बताया-बीजेपी के संपर्क में पायलटसचिन पायलट ने पार्टी नेतृत्व से मिलने का नहीं मांगा समय, सचिन पायलट कुछ विधायकों के साथ दिल्ली में हैं. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट से फिलहाल मिलने के मूड में नहीं है.

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राजस्थान में कांग्रेस सरकार को लेकर संकट के बीच डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपने कुछ विधायकों के साथ दिल्ली में हैं. बताया जा रहा है पायलट खेमे के कुछ विधायक दिल्ली पहुंच गए हैं, जिनकी संख्या 12 के आसपास बताई जा रही है. हालांकि सचिन पायलट ने पार्टी आलाकमान से मिलने के लिए समय नहीं मांगा है.

कांग्रेस पार्टी के राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे ने इंडिया टुडे को बताया कि सचिन पायलट ने अभी पार्टी हाईकमान से मिलने के लिए समय नहीं मांगा है. लेकिन कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान में कांग्रेस को लेकर हर अपडेट से परिचित है.

वहीं सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट से फिलहाल मिलने के मूड में नहीं है. क्योंकि अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान को बता रहे हैं कि पायलट बीजेपी के नेताओं के संपर्क में हैं.

बताया जा रहा है कि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के नोटिस मिलने के बाद सचिन पायलट, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बेहद नाराज हैं. स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले में सचिन पायलट को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है. सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट खेमे को डिप्टी सीएम से पूछताछ के लिए एसओजी का नोटिस स्वीकार्य नहीं है.

बता दें कि विधायकों को खरीद फरोख्त मामले में पूछताछ के लिए एसओजी की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को नोटिस भेजा गया है, और अब 20 से ज्यादा मंत्रियों और विधायकों को भी नोटिस भेजा गया है. शनिवार को अशोक गहलोत ने कहा था कि एसओजी ने उन्हें भी बुलाया है और पूछताछ के लिए जाएंगे.

बहरहाल, शेखावटी के दो विधायक बृजेंद्र ओला और राजेंद्र गुढ़ा के मोबाइल बंद होने से गहलोत खेमा परेशान है. दोनों विधायक शनिवार तक अशोक गहलोत के संपर्क में थे. मगर रविवार सुबह से दोनों गहलोत के संपर्क में नहीं हैं.

कपिल सिब्बल बोले- पार्टी के लिए चिंतित हूं

राजस्थान में जारी सियासी घमासान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल चिंतित नजर आए. कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, ‘अपनी पार्टी के लिए चिंतित हूं, क्या घोड़ों के अस्तबल से निकलने के बाद ही हम जागेंगे?’ कपिल सिब्बल ने हालांकि इस ट्वीट में राजस्थान का जिक्र तो नहीं किया है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपनी बात जाहिर की उससे साफ लगा कि उनकी चिंता राजस्थान को लेकर है.

गौरतलब है कि दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायक में ठहरे हुए हैं. बताया जा रहा है कि सचिन पायलट पार्टी अध्यक्ष से मिलना चाहते हैं.

राज्यसभा चुनाव के बाद सुरक्षित दिख रही राजस्थान की कांग्रेस सरकार फिर संकट में घिरती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा पर अपनी सरकार गिराने की कोशिशों का आरोप लगाया है। विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए कांग्रेस विधायकों को 25 करोड़ रुपए देने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया है। लेकिन, इसके तुरंत बाद उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की नाराजगी और समर्थक विधायकों के साथ सोनिया गांधी से मुलाकात की भी खबर आ गई।

इन सारे तारों को जोड़ने के बाद साफ है कि गहलोत सरकार पर खतरे के बादल हैं। इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या कांग्रेस के असंतुष्ट गुट के साथ मिलकर भाजपा मध्य प्रदेश और कर्नाटक की कहानी राजस्थान में भी दोहरा सकती है?

युवा चेहरों को दोनों राज्यों में बनाया था चुनावी चेहरा
मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने युवा चेहरों यानी मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट को चेहरा बनाया था। लेकिन, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद दोनों युवा नेताओं की उपेक्षा और नाराजगी की खबरें आईं।

सिंधिया को न तो मुख्यमंत्री पद मिला और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद। राजस्थान में पायलट को उपमुख्यमंत्री तो बनाया गया, लेकिन अक्सर गहलोत से उनकी खटपट की खबरें मीडिया में आती रहती हैं।

दोनों युवा नेताओं के बीच है गहरी दोस्ती
ज्योतिरादित्य और सचिन पायलट के बीच अच्छी दोस्ती रही है। इस साल जब मार्च में ज्योतिरादित्य ने भाजपा में शामिल होकर सभी को चौंका दिया था। तक सोशल मीडिया में अचानक सचिन पायलट ट्रेंड करने लगे थे।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर गहलोत पर सरकार पर सियासी सर्जिकल स्ट्राइक होती है तो उसमें ज्योतिरादित्य की भूमिका को भी इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि, कमोबेश जो स्थिति कमलनाथ सरकार में ज्योतिरादित्य की थी। कुछ वैसी ही गहलोत सरकार में सचिन पायलट की है। बार-बार मुख्यमंत्री के साथ टकराव या अनबन की खबरें आती हैं।
फिलहाल आंकड़ों का गणित क्या कहता है
राजस्थान की विधानसभा में दलीय स्थिति को देखें तो कांग्रेस के पास 107 विधायकों का समर्थन है। इसके अलावा सरकार को 13 निर्दलीय और एक राष्ट्रीय लोकदल के विधायक का भी समर्थन है यानी गहलोत सरकार के पास 121 विधायकों का समर्थन है।

राज्यसभा चुनाव के समय इस बात की तस्दीक भी हुई थी। 200 विधायकों वाली विधानसभा में फिलहाल कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिखती है। भाजपा के पास इस समय 72 विधायक हैं और उसे मौजूदा स्थिति में बहुमत जुटाने के लिए कम से कम 29 विधायक चाहिए।

सिर्फ निर्दलीयों से नहीं बनेगी बात
अगर यह मान भी लिया जाए कि फिलहाल जो 13 विधायक गहलोत सरकार के साथ हैं, वह टूटकर भाजपा के साथ आ जाए तो भी आंकड़ा 85 तक ही पहुंचता है। इक्का-दुक्का और विधायकों को भी अपनी ओर करने के बाद भाजपा बहुमत के 101 के आंकड़े से दूर दिखती है। कांग्रेस के पास अपने दम पर बहुमत है। निर्दलीयों के अलग होने पर उस पर तुरंत कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता।

फिर भाजपा के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस में टूट हो। कांग्रेस के पास 101 विधायक है और पार्टी में टूट के लिए दो तिहाई विधायक चाहिए। यानी दलबदल कानून के हिसाब से कांग्रेस में टूट के लिए 71 विधायक चाहिए जो संभव नहीं लगता। कांग्रेस के असंतुष्ट गुट के पास इतने विधायक नहीं हैं।

तो क्या हो सकता है गहलोत सरकार गिराने का गेम प्लान
फिर संख्या बल में मजबूत दिख रही गहलोत सरकार कैसे गिर सकती है? कांग्रेस के दो तिहाई विधायक टूटना संभव नहीं दिखते और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बात नहीं बनती दिखती। अब गहलोत सरकार गिराने का वही तरीका दिखता है, जो मध्य प्रदेश में इस्तेमाल किया गया था।

मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सियासत में समानता भी है। वहां ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ सरकार से असंतुष्ट थे। राजस्थान में सचिन पायलट और गहलोत में तनातनी की खबरें आती रहती हैं।

सचिन पायलट समर्थक 24 विधायक खिला सकते हैं गुल
अगर मध्य प्रदेश की तर्ज पर कांग्रेस के कुछ विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देते हैं और निर्दलीय भी कांग्रेस के बजाय भाजपा का समर्थन कर दें तो गहलोत सरकार अल्पमत में आ सकती है। चर्चा है कि सचिन पायलट के समर्थक 24 विधायक हैं। इनमें कुछ गुड़गांव-मानेसर के होटल में हैं। अगर मान लिया जाए कि सचिन पायलट की नाराजगी दूर नहीं होती है और उनके समर्थक सभी 24 विधायक इस्तीफा दे देते हैं।

इससे कांग्रेस के विधायकों की संख्या 83 रह जाएगी। अब भी अगर कांग्रेस का समर्थन कर रहे निर्दलीय विधायक गहलोत के साथ बने रहते हैं तो उनकी सरकार बच सकती है। लेकिन, निर्दलीय विधायक आमतौर पर उसी के साथ जाते हैं, जिसकी सरकार बनती दिखती है। ऐसे में निर्दलीयों का साथ छोड़ने पर कांग्रेस सरकार सदन में बहुमत खो देगी।

ऐसे बन सकती है भाजपा की सरकार
अगर कांग्रेस के 24 विधायक इस्तीफा दे देते हैं तो सदन में विधायकों की कुल संख्या 176 रह जाएगी और बहुमत साबित करने का आंकड़ा 101 से कम होकर 89 रह जाएगा। भाजपा के पास इस समय 72 विधायक हैं। अगर उसे 13 निर्दलीयों का भी समर्थन मिल जाए तो उसके समर्थक विधायकों की संख्या 85 तक पहुंच जाती है।

आरएलडी और एकाध और विधायक का समर्थन जुटाकर भाजपा सरकार बनाने के करीब पहुंच जाएगी। हालांकि, इसमें विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल की महती भूमिका होगी। मध्य प्रदेश और कर्नाटक में इसी फार्मूले पर काम कर भाजपा कांग्रेस की सरकारें उलट चुकी है।

दिल्ली में फिलहाल 15 विधायक

दिल्ली में फिलहाल सचिन पायलट के साथ 13 से 15 विधायक मौजूद हैं। जिसमें कुछ निर्दलीय भी शामिल बताए जा रहे हैं। अगर ये भी इस्तीफा देते हैं तो विधायकों की कुल संख्या 185 हो जाएगी। वहीं, बहुमत की संख्या 93 हो जाएगी। भाजपा के पास 72 और आरएलपी के 3 विधायक हैं। जिसके बाद बहुमत के लिए 18 विधायकों की जरूरत पड़ेगी।

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