नेपाल का सियासी संकट / 6 लगातार मुलाकातों के बावजूद मुख्य विरोधी प्रचंड को नहीं मना सके प्रधानमंत्री ओली, अब समर्थकों को सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतारा
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के नेता भी मानने लगे हैं कि पार्टी और सरकार में संकट गहराने लगा है ओली ने अब प्रचंड पर दबाव बनाने के लिए अपने समर्थकों को सड़कों पर प्रदर्शन करने को कहा
नेपाल में जारी सियासी घमासान थमता नहीं दिख रहा। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपनी पार्टी एनसीपी में अकेले पड़ गए हैं लेकिन इस्तीफे को तैयार नहीं हैं। वहीं, उनके मुख्य विरोधी पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ओली के इस्तीफे से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं। दोनों नेताओं के बीच 6 दौर की बातचीत हो चुकी है। हालांकि, मसला सुलझने के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे।
बुधवार को ओली ने एक और चाल चली। अपने समर्थकों को सड़कों पर प्रचंड के खिलाफ प्रदर्शन करने को कहा। हालांकि, वे स्टैंडिंग कमेटी की मीटिंग बुलाने से बच रहे हैं।
2 घंटे बातचीत बेनतीजा
बुधवार को ओली और प्रचंड के बीच लगातार छठवें दिन 2 घंटे बातचीत हुई। बैठक के बाद पार्टी नेताओं ने साफ तौर पर माना कि ओली और प्रचंड में कोई समझौता नहीं हो सका। ओली कुर्सी नहीं छोड़ने तैयार नहीं हैं और प्रचंड इसी मांग पर अड़े हुए हैं। इसका असर सरकार के कामकाज पर पड़ रहा है। पार्टी प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठा ने कहा- दोनों नेताओं के बीच बातचीत जारी रहेगी। फिलहाल, वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं।
पार्टी को भरोसे में नहीं लेते ओली
ओली के विरोधियों का आरोप है कि वे हर मोर्चे पर नाकाम साबित हुए हैं। कोविड-19 पर सरकार काबू नहीं कर सकी। बाहर से लौटे नागरिकों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। भारत और चीन के हालिया विवाद में उनका रवैया गलत था। भारत पर सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाकर उन्होंने दो बातें साफ कर दीं। पहली की वे चीन की तरफ झुक रहे हैं। दूसरी- कुर्सी बचाने के लिए वे गलतबयानी कर रहे हैं।
अब नया दांव
ओली ने जब यह समझ लिया कि पार्टी में उनका विरोध बढ़ रहा है तो बुधवार को उन्होंने एक नई चाल चली। अपने समर्थकों से कहा कि वो प्रचंड के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन करें। कुछ समर्थक उतरे भी। हालांकि, उनका यह दांव इसलिए ज्यादा कामयाब नहीं हो सकेगा क्योंकि स्टैंडिंग कमेटी के 40 में से 30 से ज्यादा नेता उनका विरोध कर रहे हैं। इनमें माधव कुमार नेपाल, झालानाथ खनाल और बामदेव गौतम जैसे बड़े नेता शामिल हैं। इनके मुकाबले ओली के समर्थकों की संख्या बेहद कम है।