भारत-चीन विवाद पर वर्ल्ड मीडिया / सीएनएन ने कहा- मोदी पर जवाब देने का दबाव बढ़ा; गार्डियन ने लिखा- ऐसी झड़पें बढ़ने की आशंका, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलेगा

भारत और चीन के सैनिकों के बीच सोमवार रात हिंसक झड़प हुई थी, भारत के 20 जवान शहीद हुए रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के भी 43 सैनिक मारे गए या घायल हुए, वर्ल्ड मीडिया ने झड़प पर चिंता जताई

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वॉशिंगटन/लंदन.  भारत और चीन के सैनिकों के बीच सोमवार रात लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई। हमारे 20 जवान शहीद हुए। चीन के 43 सैनिकों के मारे जाने या घायल होने की खबर है। वर्ल्ड मीडिया ने भी इस घटना पर नजरिया पेश किया। सीएनएन के मुताबिक, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चीन को जवाब देने का दबाव बढ़ेगा। वहीं, ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने आशंका जताई है कि भविष्य में इस तरह की झड़पें बढ़ सकती हैं।

सीएनएन : मुश्किल वक्त 
सीएनएन के मुताबिक, भारत के 20 सैनिकों की जान गई। दोनों देशों की कोशिश है कि तनाव कम किया जाए। लेकिन, भारत में कुछ लोग चीन को दमदार जवाब देने की मांग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बढ़ रहा है। भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया की विशेषज्ञ एलिसा एयर्स ने कहा, “कुल मिलाकर यह मुश्किल वक्त है। भारत आर्थिक तौर पर दबाव में था। लॉकडाउन से दिक्कत ज्यादा बढ़ गई। इसी दौरान भारत का तीन देशों पाकिस्तान, चीन और नेपाल से सीमा विवाद जारी है।” मोदी और जिनपिंग दोनों राष्ट्रवाद और देश को महान बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए। दोनों देशों के लोगों का रुख आक्रामक है, उन्हें जवाब चाहिए।

द गार्डियन : तनाव बढ़ने की आशंका
ब्रिटिश अखबार द गार्डियन के मुताबिक, हिमालय क्षेत्र में 1975 के बाद दोनों देशों का टकराव हुआ। 1967 के बाद यह सबसे हिंसक झड़प है। अब दोनों देशों के लोग भी एकजुट हो जाएंगे। वहां पहले ही राष्ट्रवाद के जुनूनी नारे बुलंद थे। एक चीज तो साफ है कि इस तरह की और झड़पों की आशंका है। इनकी दिशा भी साफ नहीं है। दोनों देश अपनी-अपनी तरह से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) तय करना चाहेंगे। एक बात तो साफ है कि भारतीय इस घटना के बाद सदमे और बेहद गुस्से में हैं।

वॉशिंगटन पोस्ट : चीन का रवैया बदल गया
अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, चीन की घुसपैठ का जवाब देने के लिए भारत के पास सीमित विकल्प हैं। मामूली झड़प बड़ी जंग में तब्दील हो सकती है। भारत की कोशिश है कि बातचीत के जरिए चीन को पीछे हटाया जाए और भविष्य में ऐसी किसी घटना से बचा जाए।

चीन से कई देश चिंतित
वॉशिंगटन पोस्ट आगे लिखता है- इसी महीने चीन सेना ने एक ड्रिल की थी। इसका प्रोपेगंडा भी किया था। चीन यह मैसेज देना चाहता था कि भारतीय सीमा पर वह तेजी से फौज तैनात कर सकता है। और उसकी सेना कम तापमान और कम ऑक्सीजन वाले हालात में भी लड़ सकती है। भारतीय विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन आक्रामक तेवर दिखा रहा है। वहां राजदूत रह चुकीं निरूपमा राव कहती हैं- चीन का यह नया रवैया है। वो दुनिया में अपने हित साधने के लिए आक्रामक तरीके अपना रहा है। यह कई देशों के लिए चिंता की बात है।

न्यूयॉर्क पोस्ट : जंग की आशंका नहीं
न्यूयॉर्क पोस्ट में दक्षिण एशियाई विशेषज्ञ माइकल कुग्लीमैन ने लिखा- दोनों देशों के बीच जंग मुश्किल है। दोनों ही इसका भार सहन करने के लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन, एक बात साफ है- यह तनाव किसी जादू से और जल्द खत्म नहीं होगा। क्योंकि, दोनों देशों को काफी नुकसान हुआ है।
भारत के पूर्व डिप्लोमैट विवेक काटजू ने कहा- 40 साल से चली आ रही स्थिति और हालात अचानक हिंसा में बदल गए। झड़पें पहले भी होतीं थीं। लेकिन, किसी की जान नहीं जाती थी। सरकार और सेना को भविष्य के बारे में बेहद गंभीरता से विचार करना होगा।

आक्रामक होता चीन
न्यूयॉर्क पोस्ट ने आगे लिखा- गलवान वैली में जो कुछ हुआ, वो बताता है कि चीन क्या और किन तरीकों से हासिल करना चाहता है। ये आप गलवान की घटना के जरिए भी देख सकते हैं और दक्षिण चीन सागर में भी। एलएसी पर चीन कई दशकों से तैयारी कर रहा है। उसने वहां बंकर और सड़कें बनाईं। कुछ साल से भारत भी एक्टिव हुआ। उसने भी बराबरी की तैयारी शुरू की। दौलत बेग ओल्डी (डीओबी) तक सड़क बनाई। चीन हर हाल में भारत को रोकना चाहता है।

वॉशिंगटन एग्जामिनर : चीन ने भारत को उकसाया है 
वॉशिंगटन एग्जामिनर के जर्नलिस्ट टॉम रोगन ने लिखा- चीनी सेना ने भारत के राष्ट्रवादी शेर को उकसा दिया है। भारत के 20 सैनिक मारे गए हैं। चीन लद्दाख की पुरानी स्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है। अब मोदी पर दवाब होगा कि वो चीन को वैसा ही जवाब दें, जो उन्होंने फरवरी 2019 में पाकिस्तान को दिया था।

अल जजीरा : अमेरिकी समर्थन चाहेंगे मोदी
अल जजीरा के मुताबिक, हालात एक खतरनाक मंजर की तरफ इशारा कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी अमेरिका से मदद और समर्थन चाहेंगे। चीन और अमेरिकी रिश्ते बुरे दौर से गुजर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्रम्प के रूप में मोदी के पास ताकतवर मददगार मौजूद है। अगर दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच अगले कदम पर कोई बातचीत हुई है तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। चीन की इस हरकत के खिलाफ भारतीय अपने प्रधानमंत्री के साथ खड़े हो जाएंगे। मीडिया भी इसका समर्थन करेगी। अगर भारत पर हमला होता है तो इसका जवाब दिया जाएगा। वो छोड़ने वाले नहीं हैं।

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