लॉकडाउन में पूरी सैलरी का मामला / सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कंपनियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, राज्यों के श्रम विभाग कर्मचारियों और कंपनियों के बीच मध्यस्थता करेंगे

कोर्ट का सुझाव- कंपनियों और मजदूरों को एक-दूसरे की जरूरत, पेमेंट विवाद सुलझाने की कोशिश करें गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को कहा था कि लॉकडाउन में कर्मचारियों की सैलरी नहीं काटी जाए कंपनियों ने कहा था- लॉकडाउन में प्रोडक्शन बंद होने की वजह से आर्थिक दिक्कतें हैं

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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को प्राइवेट कंपनियों की याचिकाओं पर फैसला सुनाया। जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हमने पिछली बार आदेश दिया था कि कंपनियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाए। ये आदेश जारी रहेगा। राज्य सरकारों के श्रम विभाग कर्मचारियों और कंपनियों के बीच मध्यस्थता करेंगे। अगली सुनवाई जुलाई के आखिरी हफ्ते में होगी, तारीख तय नहीं है।

गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को कहा था कि कर्मचारियों को लॉकडाउन पीरियड की पूरी सैलरी दी जाए। कुछ प्राइवेट कंपनियों ने इस आदेश को कोर्ट में चैलेंज किया था। उनका कहना था कि लॉकडाउन में काम बंद होने की वजह से आर्थिक दिक्कतें हैं।

सुप्रीम कोर्ट के 3 आदेश
1. कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को लॉकडाउन पीरियड का पूरा पेमेंट नहीं कर पाए तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाए।
2. राज्य सरकारें कंपनियों और कर्मचारियों के बीच मध्यस्थता करें और श्रम आयुक्त को रिपोर्ट सौंपें।
3. केंद्र सरकार 4 हफ्ते में एफिडेविट पेश कर 29 मार्च के सर्कुलर की वैधता (लीगलिटी) के बारे में बताए।

कोर्ट ने दो टिप्पणी भी कीं

  • ‘‘कंपनियों और मजदूरों को एक-दूसरे की जरूरत होती है। पेमेंट विवाद को सुलझाने की कोशिश की जानी चाहिए।’’
  • ‘‘जो कर्मचारी काम पर लौटना चाहें उन्हें परमिशन मिलनी चाहिए, भले ही सैलरी को लेकर विवाद चल रहा हो।’’

कोर्ट ने पहले कहा था- सैलरी का 50% दिया जा सकता था
जस्टिस भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम आर शाह की बेंच ने इस केस की सुनवाई की। बेंच ने 4 जून को फैसला रिजर्व रख लिया था। तब कहा था कि कर्मचारियों को बिना सैलरी दिए नहीं छोड़ना चाहिए। कंपनियों के पास पैसे नहीं हैं तो सरकार मध्यस्थ बन सकती है। सैलरी का 50% पेमेंट भी किया जा सकता था।

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