नई दिल्ली. कोरोना की मार झेल रहे लोगों को अब मंहगाई का सामना भी कर पड़ सकता है. जिसका असर आने वाले दिनों में आपकी रसोई पर देखा जा सकता है जिसके कारण रसोई का बजट बिगड़ सकता है. केंद्र सरकार खाद्य तेल पर आयात शुल्क बढ़ाने पर विचार कर रही है. होटल, रेस्तरां और कैंटीन खुलने के बाद ऐसे उम्मीद जताई जा रही है कि फलों और सब्जियों की कीमतों इजाफा हो सकता है. कुछ समय पहले नोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत की घोषणा कर उसे बढ़ाने पर जोर दिया था. सरकार का मकसद आयात शुल्क में बढ़ोतरी कर देश में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देना है.
सरकार देश को खाने के तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाना चाहती है. क्योकिं इससे किसानों की आय बढ़ेगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे साथ ही दूसरा देश के इंपोर्ट बिल में भी कमी आएगी.
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के मैनिजिंग डायरेक्टर बी वी मेहता ने मीडिया को बताया कि सरकार ने खाद्य तेल के आयात पर अंकुश लगाने के और देश में तलहन उद्योग को बढ़ाने के लिए सलाह मांगी है. हमने तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए कई सुझाव भी हैं.
ये है सरकार का प्लान
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक देश मलेशिया से पाम का तेल आयात करता है, यदि सरकार टैक्स बढ़ाती है तो मूल्य में वृद्धि होने के कारण उसका आयात घट जाएगा. जिससे सरसों, सोयाबीन और मूंगफली तलहन की मांग बढ़ेगी, मांग बढ़ने के साथ इसके उत्पादन में वृद्धि होगी. सरकार का कहना है कि टैक्स से आने वाले पैसे का इस्तेमाल देश में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा. एक अन्य सरकारी अधिकारी और उद्योग के एक सूत्र ने कहा कि टैक्स में 5 फीसदी की बढ़ोतरी की जा सकती है.
भारत हर तेलों के आयात पर खर्च करता है इतने अरब डॉलर
सरकार का कहना है कि कुछ सालों से देश में खाद्य तेलों का आयात बढ़ गया है. कुल खपत के करीब 70 फीसदी खाने का तेल आयात किया जाता है. जिस पर सालाना लगभग 10 अरब डॉलर खर्च किया जाता है. वहीं अगर टैक्स की बात की जाए तो भारत में कच्चे सरसों तेल, सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी के तेल पर 35 फीसदी आयात शुल्क लगता है. वहीं रिफाइंड पाम ऑयल पर 37.5 फीसदी और रिफाइंड ऑयल पर 45 फीसदी का आयात शुल्क लगता है.