अमेरिका में प्रदर्शन / व्हाइट हाउस और रक्षा विभाग के बीच तनाव; ट्रम्प सेना के इस्तेमाल के मामले में अकेले पड़े, रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भी विरोध में

डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में यह दूसरा मौका है, जब व्हाइट हाउस और पेंटागन के बीच तनाव हुआ प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई से दुखी रक्षा विभाग के सलाहकार जेम्‍स जूनियर मिलर ने इस्‍तीफा दिया

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वॉशिंगटन. अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लायड की मौत के बाद शुरू हुआ प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रदर्शनकारियों पर सैन्य कार्रवाई की धमकी दी थी, इसके बाद व्हाइट हाउस और रक्षा विभाग पेंटागन के बीच तनातनी की खबरें हैं। ट्रम्प के बयान के खिलाफ खिलाफ पेंटागन के सलाहकार जेम्‍स जूनियर मिलर ने इस्‍तीफा दे दिया। रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भी ट्रम्प के विरोध में खड़े हो गए हैं।

हाल ही में व्हाइट हाउस के बाहर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर रबर की गोलियां और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। कार्रवाई का मकसद व्हाइट हाउस के सामने से प्रदर्शनकारियों को हटाना था, ताकि ट्रम्प चर्च जाकर फोटो खिंचा सकें। इससे दुखी जेम्‍स जूनियर मिलर ने इस्तीफा देते हुए एक पत्र में ट्रम्प और एस्‍पर का भी विरोध किया था। इसके बाद से पेंटागन और व्‍हाइट हाउस के बीच मतभेद और गहरा गया है।

एस्पर ने ट्रम्प से असहमति जताई
इस घटना के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भी ट्रम्प के विरोध में आ गए। उन्होंने पेंटागन में पत्रकार वार्ता के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ विद्रोही कानून लागू करने से असहमति जताई। इस कानून के लागू होने पर ट्रम्प प्रदर्शन को कुचलने के लिए सेना का इस्तेमाल कर पाते।

सेना के राजनीतिक हथियार बनने का खतरा 
ट्रम्प के अपने ही नागरिकों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल की धमकी पर बहस छिड़ गई है। लोगों में राष्ट्रपति के इस नजरिए पर नाराजगी और बेचैनी है। आलोचकों का कहना है कि सेना को मजबूत बनाने में देशवासियों का बड़ा योगदान है। लोगों की सेना के प्रति आस्था है, इसलिए इसका राजनीतिक इस्तेमाल चिंता की बात है।

वहीं, मिलिट्री अफसरों का मानना है कि सैनिकों को केवल सबसे बुरी स्थितियों में कानून लागू करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए। हाल ही में रिटायर हुए फोर स्टार जनरल विन्सेंट के ब्रूक्स कहते हैं कि ट्रम्प की धमकी से लोगों का सेना पर विश्वास खत्म होगा।

पहले भी रक्षा मंत्री ट्रम्प से असहमत होकर इस्तीफा दे चुके हैं
ट्रम्प के कार्यकाल में यह दूसरा मौका है, जब पेंटागन और व्‍हाइट हाउस के बीच खींचतान दिखाई दी। 2018 में रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने ट्रम्प से असहमत होकर इस्तीफा दे दिया था। वे सीरिया में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती घटाए जाने से नाराज थे। उन्होंने ट्रम्प को लिखे पत्र में कहा था, “क्योंकि आपको (ट्रम्प) अपने विचारों से मेल खाने वाले किसी व्यक्ति को रक्षा मंत्री रखने का अधिकार है, इसलिए मुझे यह पद छोड़ देना चाहिए।”

श्वेत अफसर के दबोचने से अश्वेत फ्लॉयड की मौत का वीडियो दुनिया ने देखा; घटना से कई अमेरिकी डरे, वहां ऐसी घटनाएं होती रही हैं

मिनियापोलिस. पुलिस अफसर डेरेक चॉविन ने अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन को 8 मिनट 46 सैंकेंड तक घुटने से दबाए रखा। आखिरी दो मिनट में फ्लॉयड की मौत हो चुकी थी। इस घटना के वीडियो को दुनियाभर में लाखों लोग देख चुके हैं। कई अमेरिकियों के लिए ये घटना डरावनी भी थी और वे ऐसी घटनाओं से वाकिफ भी थे।

अफ्रीकन मूल के लोगों से अमेरिका में ज्यादती होती रही है
ये घटना डरावनी इसलिए थी, क्योंकि फ्लॉयड जिंदगी की गुहार लगा रहा था। वह कह रहा था कि सांस नहीं ले पा रहा है। वह अपनी मां को पुकार रहा था। लेकिन चॉविन इससे बेअसर था, मानो उसे फ्लॉयड के दर्द का अहसास ही नहीं हो। ये घटना जानी-पहचानी इसलिए थी, क्योंकि अमेरिका में गोरे पुलिस अफसरों की ज्यादती से अफ्रीकन मूल के लोगों की मौत के मामले लगातार सामने आते रहे हैं।

पिछले साल अफ्रीकियों से ज्यादती के 259 केस हुए
मैपिंग पुलिस वायलेंस प्रोजेक्ट के मुताबिक अमेरिका में 2013 से 2019 के बीच पुलिस की ज्यादती से 1,945 अफ्रीकन-अमेरिकन मारे गए। 2019 में ऐसे 259 मामले हुए। मिनियापोलिस शहर की आबादी में अफ्रीकन-अमेरिकन की संख्या सिर्फ 19% है, लेकिन वहां के लोगों के खिलाफ पुलिस की ज्यादती के 58% मामलों में अफ्रीकन-अमेरिकन ही पीड़ित होते हैं। अमेरिका के ज्यादातर शहरों में भी ऐसा ही देखा जाता है।

अफ्रीकियों से नफरत सदियों से चली आ रही
एक्सपर्ट का मानना है कि रंगभेद अमेरिका के संस्थानों और वहां की संस्कृति का हिस्सा रहा है। ये वाकई सही बात है, ऐसा नहीं है कि रंगभेद का वायरस अचानक आ गया हो। अफ्रीकियों से नफरत सदियों से चली आ रही है, यूरोपियन और अफ्रीकन के बीच हुए संघर्ष इसका उदाहरण हैं। यूरोपियन काले अफ्रीकियों को नीचा दिखाने और अमानवीय वर्ताब करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे ताकि उन्हें गुलामों की तरह रख सकें।

अमेरिका में अफ्रीकियों से हर क्षेत्र में भेदभाव
गुलामी का दौर खत्म होने के बाद भी कई गोरे लोग अफ्रीकियों को कमतर समझते हैं। वे मानते हैं कि अफ्रीकन-अमेरिकन दिमाग और व्यवहार में जन्मजात कमजोर होते हैं। वे ज्यादा आक्रामक, हिंसक और आपराधिक व्यवहार वाले भी होते हैं। इस सोच की वजह से अफ्रीकन-अमेरिकन के साथ हाउसिंग, हेल्थकेयर और एजुकेशन तक में भेदभाव होता है। इससे समझ आता है कि वे पुलिस के हाथों क्यों मारे जाते हैं? यदि दुनियाभर में काले लोगों को हीनता की नजर से देखा जाए तो डेरेक चॉविन जैसे लोगों को एक निहत्थे अश्वेत की जान लेने में कोई हर्ज नहीं होगा, भले ही वह जान बख्शने की गुजारिश करता रहे। जैसा कि अमेरिका में हुआ।

पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आक्रामक दिखी
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद मिनियापोलिस समेत अमेरिका के दूसरे शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। पहले शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहे थे, लेकिन बाद में कुछ हिंसक लोग शामिल हो गए। ऐसा कहा गया कि ये लोग पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को गलत ठहराना चाहते थे। कई जगह पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की। रबड़ की गोलियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े। कुछ लोगों को प्रोटेक्शन शील्ड और लाठियों से पीटा गया। कुछ जगह पुलिस की आक्रामकता को देखकर लग रहा था मानो पुलिस दंगे कर रही है।

प्रदर्शनकारियों से निपटने के ट्रम्प के तरीके से 55% लोग नाखुश
पहले से ही तनावपूर्ण हालातों को डोनाल्ड ट्रम्प ने और बिगाड़ दिया। उन्होंने वॉशिंगटन में प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए मिलिट्री को लगाने की धमकी दी और ऐसा किया भी। लेकिन ट्रम्प के तरीकों को ज्यादातर लोगों ने गलत बताया। फ्लॉयड की मौत के एक हफ्ते बाद रॉयटर्स के पोल में 55% लोगों ने ट्रम्प की कार्रवाई को गलत बताया। सही बताने वाले सिर्फ 33% लोग थे, इनमें ट्रम्प के हार्ड-कोर सपोर्टर शामिल थे। पोल में ये भी सामने आया कि राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प को जो बिडेन से कड़ी टक्कर मिलने वाली है।

कोरोना, रंगभेद के वायरस ट्रम्प को हरा सकते हैं
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में पांच महीने बाकी हैं। इस दौरान राजनीति में काफी बदलाव आ सकते हैं, लेकिन एक बात तय है कि कोरोना महामारी और रंगभेद के वायरस से निपटने के ट्रम्प का तरीके का असर चुनाव के नतीजों पर जरूर दिखेगा। एक बायोलॉजिकल वायरस और एक सोश्यो-कल्चरल वायरस ट्रम्प को हरा सकते हैं और जो बिडेन राष्ट्रपति बन सकते हैं।

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