जानें- कैसे थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने चीन के ‘वॉर-ज़ोन कैम्पेन’ को दी मात

स्कॉलर-वॉरियर जनरण नरवणे ड्रेगन के वॉर-जोन कैम्पेन पर रिसर्च पेपर जारी कर चुके हैं. चीन मामलों के माहिर जनरल नरवणे उस वक्त वॉर-कॉलेज में कमांडेंट थे. अब आठ साल बाद जनरल नरवणे ने लद्दाख में वॉर जोन कैम्पेन को पटखनी दे दी है. चीन अब बातचीत से मामले को सुलझाने के लिए तैयार है.

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नई दिल्ली: लद्दाख में सीमा पर भारतीय सेना से चल रही तनातनी के बीच चीन ने कहा है कि पूरे मामले को शांतिपूर्वक सुलझा लिया जाएगा. लेकिन चीन का बयान ऐसे समय में आया है जब चीन को समझ आ चुका है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना उसपर भारी पड़ सकती है. दरअसल, भारतीय सेना पूरी तरह से चीन की चालबाजियों को लेकर तैयार थी. इसके पीछे थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे की चीन मामलों पर मजबूत पकड़ शामिल है. महू स्थित वॉर-कॉलेज में कमांडेंट के तौर पर उन्होनें चीन की उसी वॉर-कैम्पेन ज़ोन नीति पर रिर्सच पेपर जारी किया था जो नीति चीनी सेना लद्दाख में अपनाना चाहती थी. लेकिन जनरल नरवणे ने चीन की चाल को नाकाम कर दिया. कैसे आज हम आपको ये बताने जा रहे हैं.

 

दरअसल, चीन की ‘वॉर-ज़ोन कैम्पेन डॉक्ट्रिन’ में कहा गया है कि भविष्य के युद्ध छोटे होंगे और पीप्लुस लिबेरशन आर्मी को इन ‘लिमिटेड’ वॉर ही लड़ना होगा. ये युद्ध छोटे यानि कम अवधि के तो होंगे लेकिन बहुत तेज होंगे यानि दुश्मन जबतक संभल पाए युद्ध को खत्म भी कर दिया जाए. ये एक छोटे से क्षेत्र यानि ज़ोन में लड़ा जाता है. ये किसी छोटे देश यानि ऐसा देश जो चीन से सैन्य और आर्थिक तौर से कमजोर हो उसके खिलाफ लड़ा जा सकता है. इसमें वॉर-जोन के तहत पीएलए सेना एक ज्वाइंट कमांड हेडक्वार्टर के अंतर्गत युद्ध लड़ती है. यानि थलेसना, वायुसेना और नौसेनाओं को मिलकर लड़ना है.

इस वॉर-जोन कैम्पेन पर जनरल नरवणे ने वर्ष 2012 में एक रिसर्च पेपर लिखा था. उस वक्त नरवणे थलसेना के महू (मध्य-प्रदेश) स्थित वॉर-कॉलेज के हायर कमांड विंग में फैक्लेटी-मेम्बर थे और ब्रिगेडयर के रैंक पर थे. उनका ये लेख दिल्ली स्थित थिंकटैंक, सेंटर वॉर लैंड वॉरफेयर स्टीडिज़ के जर्नल, ‘स्कॉलर-वॉरियर’ में छपा था. इस लेख में नरवणे ने लिखा था कि चीनी सेना इस तरह के वॉर-जोन कैम्पेन के तहत कमजोर देश के खिलाफ तबतक परेशान करती रहेगी जबतक वो कमजोर देश उसके सामने झुक नहीं जाता. इसके लिए ड्रैगन अपनी सेना का इस्तेमाल करेगा.

 

नरवणे ने लिखा कि चीन के इस तरह के कैम्पेन का मकसद राजनैतिक होता है, जिसके तहत किसी कमजोर देश की ऐसी जमीन को हड़पना होता है जिसे कमजोर देश जमीनी तौर पर अपनी सेना या फिर और किसी तरह से इस्तेमाल नहीं करता हो. लेकिन इसका चीन एक चरण-बद्ध तरीके से करता है.

 

उन्होनें ये भी लिखा कि ये ऐसे समय में किया जाता है जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल चल रही हो ताकि स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया जाए. इसका मकसद सिर्फ सैन्य बढ़त लेना नहीं है बल्कि राजनयिक और राजनैतिक भी होता है.

 

पहला चरण है डीसीडी यानि डोमिनेशन-कम-डिटरेंस जिसमें पीएलए सेना अपनी तैनाती उस इलाके में शुरू कर देती है जो खाली होता है. दूसरे चरण में जीआईएसएफ यानि गेनिंग इनिशेयटिव बाय स्ट्राईकिंग फर्स्ट तरीका इस्तेमाल करती है. यानि सैनिकों की तैनाती के बाद दुश्मन पर हमला करने की कोशिश करती है ताकि दुश्मन पर बढ़त मिल जाए. तीसरा और आखिरी चरण है क्विक बैटल, क्विक रेज़ोलेशन (क्यूबीक्यूआर). इसके तहत उस छोटे से इलाके में चीनी सेना अपनी एक पूरी डिवीजन को वहां तैनात कर देगी ताकि वो इलाका हमेशा-हमेशा के लिए उसका हो जाए.

 

इस कैम्पेन के तहत चीन दुश्मन देश को सबक सिखाना चाहता है. इसके लिए बहुत बड़ी जीत की जरूरत नहीं होती है और एक छोटी सी विजय को मीडिया में बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है अपना मकसद पूरा करने के लिए.

 

इस लेख के समाप्ति के दौरान, स्कॉलर-वॉरियर जनरल नरवणे ने लिखा था कि भारत के पास चीन के तीसरे चरण से निपटने की तैयारियों तो हैं लेकिन पहले और दूसरे की नहीं है. यानि डीसीडी और जीआईएसएफ पर ही ड्रैगन को रोकना बेहद जरूरी है. यहां तक की छोटे देशों को तीसरे चरण तक भी स्थिति को ले जाना चाहिए ताकि लड़ाई में चीन को मात दी जा सके.

 

इस लेख के लिखने के करीब आठ साल बाद जनरल नरवणे के सामने चीन की तरफ से ठीक वही वॉर-कैम्पेन जोन का सामना करना पड़ा. लेकिन जनरण नरवणे के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ड्रैगन को पहले ही स्टेज पर पटकनी दे दी. यानि जैसे ही गैलवान घाटी और फिंगर एरिया में डोमिनेशन करनी की हिमाकत की, भारतीय सेना ने वहां मिरर-डिप्लोयमेंट कर दी. इसका नतीजा ये हुआ कि चीनी सेना वहां अपनी हैवी-मशीनरी यानि टैंक इत्यादि स्ट्राईकिंग यूनिट्स नहीं ला पाई और अपने कैंपों में ही बैठी रही. इसका परिणाम ये हुआ कि चीन को एक ही दिन में दो दो बार ये कहना पड़ा कि भारत और चीन बातचीत के जरिए मामले को सुलझा सकते हैं.

 

आपको यहां पर ये भी बता दें कि दुनिया की सबसे बड़ी थलसेना के जनरल नरवणे 28वें सेनाध्यक्ष हैं. चीन मामलों के जानकार माने जाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे इससे पहले वाईस चीफ (सहसेना प्रमुख) के पद पर तैनात थे. आपको बता दें कि ये वहीं सैन्य अधिकारी हैं जिन्होनें सेना की पूर्वी कमान के कमांडिंग इन चीफ (सीइनसी) के पद पर रहते हुए ये कहकर सनसनी फैला दी थी कि अगर ‘चीन हमारी सीमाओं में सौ बार घुसपैठ करता है तो हमारी सेना दो सौ बार करती है.” कोलकता (फोर्ट विलियम) स्थित पूर्वी कमान की जिम्मेदारी उत्तर-पूर्व के सिक्किम, डोकलाम और अरूणाचल प्रदेश में चीन से सटी सीमाओं की रखवाली करना है.

 

वर्ष 1980 में सेना की सिख लाईट (सिखलाई) इंफेंट्री से अपने सेवाएं देश को देने वाले लेफ्टिनेंट जनरल नरवणे सितबंर 2019 में सेना के वाईस चीफ बनाए गए थे. थलसेना प्रमुख बनने के बाद भी वे अपनी सिख रेजीमेंट की परंपराओं को नहीं भूलते हैं और सैनिकों को हमेशा ‘हर मैदान फतह’ करने का नारा जरूर देते हैं.

 

पूर्वी कमान के सीइनसी से पहले वे ट्रेनिंग कमांड के कमांडर भी रह चुके हैं. उन्हें जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व में एंटी-टेरेरिस्ट ऑपरेशन्स में भी खासी महारत हासिल है. वे श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (आईपीकेएफ) का भी हिस्सा थे. डिफेंस‌ एंड मैनेजमेंट में एमफिल कर चुके नरवणे म्यांमार में भारत के डिफेंस अटैचे भी रह चुके हैं.

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