क्या कोरोना से लड़ने में सरकारी तंत्र फेल रहा, समझिए- लॉकडाउन से फायदा या फजीहत?
सरकार ने पहले कहा था कि 16 मई तक कोरोना काफी हद तक खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. अब सरकार के पास कोरोना को रोकने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का दोहरा काम है.
नई दिल्ली: देश में प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें हर दिन आपके सामने आ रही हैं. भूखे-प्यासे अपने घर वापस जाने के लिए निकले लोगों का दर्द पूरा देश समझ रहा है. इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सबसे पहले उंगली सरकार की तरफ ही उठती है. ये बात सही है कि बीमारी किसी के बस में नहीं है, विपदा कोई नोटिस देकर नहीं आती लेकिन जब विपदा आ जाती है तो इससे निपटने का तरीका जरूर लोगों को ही निकालना पड़ता है. जब बात देश के स्तर की हो तो सरकार को इसका हल निकालना पड़ता है. अब धीरे-धीरे ये बात साफ हो रही है सरकार से कहीं न कहीं कोई तो चूक हुई है.
जनवरी में ही दस्तक दे चुका था भारत में कोरोना
30 जनवरी को भारत में चीन के वुहान से आए 3 छात्र कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे. यानी कि भारत में कोरोना जनवरी में ही दस्तक दे चुका था. ऐसा नहीं है कि इससे पहले भारत सरकार को चीन में फैल रहे कोरोना के बारे में जानकारी नहीं थी. देश और दुनिया भर की मीडिया में चीन के वुहान की तस्वीरें दिखाई जा रही थी. साफ है कि भारत में भी विदेश मंत्रालय से लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय और खुफिया एजेंसियां इस पर नजर रख रही होंगी. लेकिन ये महामारी भारत में भी बड़े पैमाने पर फैल सकती है इसे लेकर बहुत ज्यादा गंभीर चर्चा नहीं हुई.
- इतना जरूर हुआ कि 17 जनवरी को भारत ने चीन और हांगकांग से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग में शुरु कर दी. लेकिन कोरोना दुनिया के दूसरें देशों से भी आ सकता है इसे लेकर ज्यादा दूरदर्शिता नहीं दिखाई गई.
- इसके बाद 2 फरवरी में सिंगापुर और थाइलैंड से आनेवाले लोगों की स्क्रीनिंग शुरु हुई.
- 12 फरवरी को जापान और दक्षिण कोरिया से आनेवालों की भी स्क्रीनिंग शुरु हुई.
- जबकि इटली से आनेवाले लोगों की स्क्रीनिंग 26 फरवरी से शुरु हुई. लेकिन यूरोप के बाकी देशों से लोग आते रहे.
- भारत में यूनिवर्सल स्क्रीनिंग यानी की विदेश से आनेवाले सभी लोगों की स्क्रीनिंग 4 मार्च से शुरु की गई.
- 4 मार्च तक दुनिया के 76 देशों में मिलाकर कोरोना के 1 लाख केस आ चुके थे.
- 4 मार्च तक भारत में कोरोना के 44 मरीजों की पुष्टि हो चुकी थी.
कोरोना संक्रमितों की देश में आने की शुरुआत भले ही चीन से हुई थी लेकिन फरवरी और मार्च में आए ज्यादातर संक्रमित लोग यूरोपीय देशों से आए थे. ऐसे में जब तक सभी की स्क्रीनिंग का फैसला लिया गया तब तक में लाखों लोग बिना चेंकिंग के घुस चुके थे. RTI कार्यकर्ता साकेत गोखले के जवाब में सरकार ने जो आंकड़ें दिए हैं उससे आपको सरकार के रिस्पॉन्स का पता चल जाएगा.
– Directorate General of Health Services के मुताबिक 15 जनवरी से 23 मार्च के बीच विदेश से आने वाले 15 लाख 24 हजार 266 यात्रियों की स्क्रीनिंग की गई.
– इस अवधि के दौरान DGCA के मुताबिक देश में कुल 78 लाख 40 हजार लोग विदेश से भारत आए.
– यानी कि विदेश से आनेवाले सिर्फ 19% लोगों की ही स्क्रीनिंग की गई थी.
ठीक से स्क्रीनिंग नहीं हुई?
जानकारों का मानना है कि भारत ने विदेश से आनेवाले यात्रियों की स्क्रीनिंग में बहुत देर की. कई संक्रमित बिना स्क्रीनिंग के ही देश में घुस आए थे. एक्सपर्ट्स के मुताबिक जब भारत में पहला केस आया तभी भारत को अगले 6 महीने के लिए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा बंद कर देनी चाहिए थी. लेकिन सरकार ने ये फैसला लेने में दो महीने का वक्त लगा दिया. सरकार ने 23 मार्च को देश में हर तरीके की हवाई यात्रा को बंद करने का फैसला लिया. यानि की देश में पहला मामला आने के करीब 2 महीने बाद ये फैसला लिया गया.
देश में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च की रात 8 बजे एलान किया कि देश में 25 मार्च से तीन हफ्तों का लॉकडाउन शुरु किया जा रहा है. पीएम का कहना था कि अगर ये नहीं किया जाएगा तो देश को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. जब पीएम मोदी ने ये फैसला किया तो सभी ने इस फैसले का समर्थन किया. कोरोना को रोकने के लिए संक्रमित लोगों की चेन रोकना बहुत जरूरी था. लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा था कि सरकार ने लॉकडाउन का फैसला लेते वक्त देश के करोड़ों मजदूरों की रोजी रोटी के बारे में पूरा प्लान नहीं तैयार किया है.
लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट
इसका नतीजा ये हुआ की देश में लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट आ गया. रातों रात उनके काम धंधे बंद हो गए. लाखों लोग बेरोजगार हो गए. जो लोग हर दिन कमाकर खाते थे उनके पास अब कुछ नहीं बचा था. उनके लिए कोरोना से बड़ा संकट घर से बेघर होना और भुखमरी था. सरकार की तमाम कोशिशें नाकाफी साबित हो रही थीं.
मुश्किल घड़ी में लोगों को अपना घर ही याद आता है. ऐसे में ये लोग दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से यूपी और बिहार जाने के लिए पैदल ही अपने घरों से निकल पड़े. जैसे ही लाखों मजदूर सड़क के रास्ते अपने घर जाने को निकले देश में कोरोना फैलने का खतरा कई गुना बढ़ गया. 29 मार्च को गृह सचिव ने खतरे को भांपते हुए प्रवासी मजदूरों से रुकने की अपील की. फैक्ट्रियों और कंपनियों का मालिकों को भी कहा गया कि किसी को नौकरी से न निकालें और किसी की सैलरी न काटें. पीएम समेत सबको यही डर था कि अगर ये मजदूर कोरोना संक्रमण अपने गांव ले गए तो फिर इस महामारी को संभालना मुश्किल हो जाएगा.
साफ है कि हर प्रवासी मजदूर ने पीएम की इस अपील को नहीं माना. बड़े-बड़े शहरों से यूपी-बिहार के छोटे छोटे गावों तक जाने का पलायन जारी रहा. जब लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर निकल आए तब सरकार के हाथ-पांव फूलने लगे. इस पलायन की समस्या में आग में घी डालने का काम यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार ने किया. योगी ने फैसला किया कि कोटा में पढ़ रहे यूपी के बच्चों को उनके घर पहुंचाया जाएगा. योगी के इस फैसले के बाद देश के दूसरे राज्यों से भी ऐसी ही मांग उठने लगी. सवाल ये उठाया गया कि सिर्फ छात्र ही क्यों बल्कि दूसरे राज्यों के लाखों कामगारों को भी उनके घर पहुंचाना चाहिए.
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने इसका विरोध भी किया था लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था. कोटा से हजारों छात्रों को उनके घर पहुंचाने के लिए बसें चलाई गईं. देश के दूसरे हिस्सों से भी कई छात्रों के लिए बसें चलाई गईं. मजदूरों को भी बसों के जरिए उनके गावों में पहुंचाने का काम शुरु किया गया. कई जगह पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती दिखा. सरकारी अमला इस पूरी स्थिति को हैंडल करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं था.
प्रवासी मजदूरों के पलायन को देखते हुए दबाव में केंद्र सरकार ने एलान किया देश के सभी मजदूरों को उनके राज्यों में पहुंचाया जाएगा. देश में 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत की गई. लेकिन विवाद तब हुआ जब सरकार गरीब मंजदूरों से टिकट के पैसे वसूलने लगी. सरकार के इस फैसले की काफी छीछालेदार हुई.
20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान
सरकार के लिए बार-बार लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला देश के लाखों करोड़ों मजदूरों के लिए चिंता का कारण बन रहा था. कमाई के साधन रुके हुए थे और किसी के हाथों में कोई पैसा नहीं था. पीएम मोदी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान कर उम्मीद जगाई. पीएम मोदी ने भले ही 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान किया लेकिन इसमें सभी मजदूरों के हाथों में सीधा पैसा देने के बारे में साफ-साफ कुछ नहीं कहा गया. ज्यादातर एलान लॉन्ग टर्म को ध्यान में रखकर किए गए लेकिन तत्काल मदद पर ज्यादा जोर नहीं दिखा.
मजदूर काम और पैसों के लिए कितनी कोशिश कर रहे हैं इसका एक उदाहरण मनरेगा के तहत काम के आवेदन से साफ है.
– 1 अप्रैल से 20 मई तक 35 लाख लोगों ने आवेदन किया है.
– इसी अवधि में पिछले साल 1 लाख 80 हजार लोगों ने आवेदन किया था.
– लेकिन सरकार के पास सभी मजदूरों के लिए काम नहीं है.
– हालांकि सरकार ने अब मनरेगा के तहत राशि 40 हजार करोड़ से बढ़ाकर 1 लाख करोड़ करने का एलान किया है.
आर्थिक संकट को देखते हुए सरकार ने लॉकडाउन अब काफी रियायतें दे दी हैं. जो इलाके रेड जोन में है उन्हें छोड़ कर बाकी जगह धीरे धीरे चीजें खुलने लगी हैं. ट्रेनों से लेकर विमान सेवा भी अब शुरू की जा रही है. इन सबके बीच चिंता का कारण ये है कि कोरोना के मामले अभी कम नहीं हो रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठ है कि क्या सरकार इस स्थिति को संभालने के लिए तैयार है.
कोरोना को रोकने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना दोहरी चुनौती
सरकार ने पहले कहा था कि 16 मई तक कोरोना काफी हद तक खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. जब एबीपी न्यूज ने इस बारे में सरकार से पूछा तो कोरोना को लेकर बनी इंपावर्ड कमेटी ने अध्यक्ष वीके पॉल ने माना कि वो अपनी बात सही तरीके से समझा नहीं पाए थे. सरकार के पास कोरोना को रोकने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का दोहरा काम है. मौजूद स्थिति को देखते हुए ये एक बड़ी चुनौती है. कोरोना की कोई वैक्सीन या दवा अभी तक नहीं आई है. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सैनिटाइजर का इस्तेमाल ही इस खतरे से बचने की एक मात्र उम्मीद नजर आ रही है.