कोच्चि. एक बच्चे के तौर पर मुरुगन एस कोच्चि (Kochi) की सड़कों पर रहते थे और अजनबियों से खाना मांगकर खाते थे. उनके पिता शराबी थे और उनकी मां एक मजदूर (Daily Wager), जो मुश्किल से उनके लिये छत या दो समय के खाने का उनके लिए प्रबंध कर पाती थीं. इसलिए उन्होंने अपनी किशोरावस्था के शुरुआती साल कूड़े की टोकरियों से बचा हुआ खाना बीनकर खाने और खाने के लिए ऊलजुलूल काम करने में गुजारे.
फिर एक दिन, पुलिस (Police) ने उसे पकड़ लिया और उसे एक अनाथालय में भेज दिया, जहां उसकी देखभाल कई सालों तक ननों ने की. वहां वह मदर टेरेसा (Mother Teresa) और श्री नारायण गुरु जैसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों के कार्यों से परिचित हुआ. फोन पर बात करते हुये 34 साल के शख्स ने कहा, “उनके आदर्शों और शिक्षाओं ने किसी तरह मेरे दिमाग में जड़ जमा ली. लेकिन मुझे नहीं पता था कि इन पर काम कैसे किया जाए.”
आगे चलकर शुरू किया अपना NGO ‘थेरुवरम’
90% बेघर लोग दूसरे राज्यों से केरल आये हैं
कोविड-19 के समय में, जब बहुसंख्यक भारतीय सामाजिक दूरी (Social Distancing) के पालन के लिए अपने घरों में कैद हैं, मुरुगन और उनकी आठ लोगों की टीम ‘थेरुवोरम’ में केरल की सड़कों पर रह रहे बेघर और निराश्रित लोगों को उठा कर ला रही है और उन्हें सुरक्षित ठिकाना दे रही है. उन्होंने बताया, ऐसे लोगों में से अधिकांश आश्चर्यजनक रूप से, अन्य राज्यों से हैं जो काम के लिए केरल आए थे. उन्होंने कहा, “लगभग 90 फीसदी लोग दूसरे राज्यों से हैं. वे अक्सर 20 और 40 की उम्र के बीच होते हैं. उनमें से कई शराब और ड्रग्स के आदी हो जाते हैं जो अपना जीवन को बर्बाद कर देते हैं. जल्द ही, वे अपना रास्ता खो देते हैं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां उन्हें हो जाती हैं.”