कोलकाता: नस्लभेदी तानों से परेशान होकर 300 नर्सों ने छोड़ी नौकरी, लोग बुलाते थे कोरोना

पूर्वोत्तर राज्य के लोगों के साथ भेदभाव का ये पहला मामला नहीं है. इससे पहले तमिलनाडु में मणिपुर की दो नर्सों पर एक एंबुलेंस ड्राइवर ने नस्लभेदी टिप्पणी (Racial Abuse) की थी और उन्हें चीन जाने को कहा था.

गुवाहाटी. देश में कोरोना वायरस का ग्राफ हर दिन बढ़ता जा रहा है. इस महामारी से जंग लड़ने वाले फ्रंट लाइन कोरोना वॉरियर्स (Corona Warriors) यानी डॉक्टर, नर्स, हेल्थ स्टाफ, सफाईकर्मी और पुलिसकर्मियों के जज्बे को सलाम किया जा रहा है, वहीं, दूसरी ओर इन हालातों में कुछ लोग नफ़रत फैलाने से बाज नहीं आ रहे हैं. देश के कई हिस्सों में पूर्वोत्तर राज्यों से आए लोगों को नस्लीय टिप्पणी (Racial Abuse) और भद्दे कमेंट सुनने की घटनाएं सामने आ रही हैं. ताज़ा मामला पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता का है. यहां नस्लभेदी कमेंट से परेशान होकर 300 से ज्यादा नर्सों को मजबूरन नौकरी छोड़नी पड़ी. ये नर्सें इस्तीफा देकर मणिपुर लौट गई हैं. इनमें से कुछ नर्सों ने अपनी आपबीती सुनाई है.

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट में सोमीचोन (22) बताती हैं, ‘कोलकाता के प्राइवेट हॉस्पिटल में हालात खराब हैं. मैनेजमेंट ध्यान नहीं देते. नस्लीय कमेंट अब आम बात हो गई है. हम जब भी घर से निकलते हैं, तो हमपर फब्तियां कसी जाती हैं. लोग हमे देखते ही ‘कोरोना-कोरोना’ कहकर चिढ़ाते हैं. मुड़कर देखते ही भाग जाते हैं. कई बार इसकी शिकायत की गई, मगर किसी ने कुछ एक्शन नहीं लिया. हर दिन ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही थी. घर से निकलने में डर लग रहा था. इसलिए जॉब छोड़ दिया.’

सोमीचोन आगे बताती हैं, ‘जब ड्यूटी करते समय मुझे कोरोना के लक्षण का अहसास हुआ, तो मैंने हॉस्पिटल मैनेजमेंट को इसकी जानकारी दी, लेकिन हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने इस सामान्य फ्लू करार दिया और मुझे कुछ एंटीबायोटिक्स दे दी गई. उन्होंने मेरी टेस्टिंग करना भी जरूरी नहीं समझा.’ घर लौटने के बाद सोमीचोन अभी इंफाल के जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एडमिट हैं.15 मई को कोलकाता छोड़ने से पहले हुए स्वैब टेस्ट में उनके कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई थी.

हालांकि, सोमीचोन अभी रिकवर कर रही हैं. वह आगे बताती हैं, ‘हॉस्पिटल में नर्सों की सेफ्टी के लिए कुछ नहीं होता था. मेरी आईसीयू में ड्यूटी लगती थी. मैनेजमेंट मुझे सिर्फ ग्ल्व्स देते थे, जो कि सही क्वालिटी का भी नहीं था. ऐसे महामारी के समय में सिर्फ ग्ल्व्स से आप खुद को सेफ नहीं कर सकते. आपको मास्क और PPE किट भी चाहिए. मुझे कोई शक नहीं है कि मैं इसी वजह से वायरस से संक्रमित हुई.’

सिनचिन नाम की एक और नर्स ने बताया, ‘लोग मुझे कोरोना कहते हैं और चीन जाने का ताना देते हैं. यही नहीं कुछ लोग थूक भी देते थे.’ उनका कहना है कि इन ऐसे हालातों में उनके लिए यहां काम करना मुश्किल हो गया था. मणिपुर वापस लौट आईं इन नर्सों को फ़िलहाल क्वॉरन्टीन में रखा गया है.

इन्हीं में से एक नर्स क्रिस्टेला कहती हैं, ‘नौकरी छोड़ कर हम ख़ुश नहीं हैं. हमें वहां होना चाहिए था, लेकिन मांग के बाद भी हमारी परेशानियों को दूर नहीं किया गया. लोग कोरोना कह कर हमें चिढ़ाते थे. इससे परेशान होकर हमने नौकरी छोड़ने का फ़ैसला किया. हम इम्फ़ाल वापस आ गए हैं.’

बता दें कि पूर्वोत्तर राज्य के लोगों के साथ भेदभाव का ये पहला मामला नहीं है. इससे पहले तमिलनाडु में मणिपुर की दो नर्सों पर एक एंबुलेंस ड्राइवर ने नस्लभेदी टिप्पणी की थी और उन्हें चीन जाने को कहा था.

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