कोरोना के इतर / देश में कोरोना से 107 दिनों में ढाई हजार मौत, जबकि टीबी और प्रेग्नेंसी के दौरान हर दिन हजार से ज्यादा मौतें होती हैं, मलेरिया से भी एक दिन में 500 जानें जाती हैं

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 75% से ज्यादा मौतें घरों में होती हैं, महज 22% मौतें ही मेडिकल सर्टिफाइड होती हैं देश और दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें दिल की बीमारियों के कारण होती हैं, एचाईवी जैसी संक्रामक बीमारी से भी दुनियाभर में हर साल 10 लाख मौतें होती हैं

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नई दिल्ली. कोरोना महामारी से बचने के लिए भारत में 25 मार्च से लॉकडाउन है। 52 दिन गुजर चुके हैं लेकिन कोरोना के मामले हर दिन बढ़ते जा रहे हैं। अब तक देश में 80 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और ढाई हजार से ज्यादा मौतें भी हो चुकी हैं। मौतों का यह आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं जिनसे हर साल इससे कहीं ज्यादा मौतें होती हैं।

देश में वर्तमान मृत्यु दर 7.3 है। यानी हर साल प्रति हजार 7 लोगों की मौत होती है। पिछले 10 सालों से यह दर 7.2 से 7.6 के बीच रही है। इस तरह से देखा जाए तो 135 अरब जनसंख्या वाले हमारे देश में हर साल करीब 1 करोड़ लोग मारे जाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा मौतें दिल (16%) और सांस (8.6%) की बीमारियों से होती हैं। इन बीमारियों से मौतों का एक दिन का औसत देखा जाए तो दिल की बीमारियों से एक दिन में 4 हजार और सांस की बीमारियों से एक दिन में 2 हजार से ज्यादा मौतें होती हैं। वहीं टीबी और बच्चे के जन्म से पहले और बाद के कुछ हफ्तों में होने वाले मां और बच्चों की मौतों का एक दिन का आंकड़ा एक हजार से ज्यादा है। मलेरिया से भी हर दिन 500 से ज्यादा मौतें होती हैं।

दुनियाभर में दिल की बीमारियों से ही सबसे ज्यादा मौतें होती हैं
भारत की तरह ही दुनियाभर में भी सबसे ज्यादा मौतें दिल की बीमारियों के कारण होती है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में दिल की बीमारियों और स्ट्रोक के चलते दुनियाभर में 1.52 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। पिछले 20 सालों से दुनियाभर में हुई मौतों का सबसे बड़ा कारण यही बीमारियां रही हैं। इसी के साथ साल 2016 में सांस नली की बीमारियों से 30 लाख, फेफड़ों के कैंसर से 17 लाख और एचआईवी जैसी संक्रामक बीमारियों से 10 लाख मौतें हुईं।

भारत में सिर्फ 22% मौतें मेडिकल सर्टिफाइड होती हैं, यानी 78% मौतों का सही कारण पता लगाना मुश्किल

साल 2019 में ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने भारत में होने वाली मौतों पर डेटा रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक, 2017 में भारत में 70 लाख मौतों का अनुमान लगाया गया। इनमें से महज 14.1 लाख मौतें मेडिकल सर्टिफाइड थीं। यानी भारत में होने वाली 22% मौतें ही मेडिकल सर्टिफाइड थीं। 1990 की तुलना में इस आंकड़े में महज 9% की बढ़ोतरी हुई है। 1990 में कुल मौतों का 12.7% ही मेडिकल सर्टिफाइड होता था।

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ में पब्लिश एक रिपोर्ट में भी यही बताया गया था कि भारत में 75% से ज्यादा मौतें घरों में ही होती हैं, इस कारण इनकी मौतों के कारणों का सही आकलन नहीं लगाया जा सकता। 20 से 25% मामलों में ही मौतें हॉस्पिटल में होती हैं। जो मौतें हॉस्पिटल में होती हैं, वे ही मेडिकल सर्टिफाइड हो पाती हैं। भारत में अन्य देशों के मुकाबले कोरोना से हुई कम मौतों के कारण के पीछे भी यही तर्क दिया जा रहा है कि यहां ज्यादातर मौतें मेडिकल सर्टिफाइड नहीं होती इसलिए कोरोना से मौतों का आंकड़ा यहां कम है।

ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि कुल मेडिकल सर्टिफाइड मौतों का 61.9% हिस्सा पुरुषों का होता है। यानी आखिरी समय में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को हॉस्पिटल ले जाने की दर ज्यादा है। मेडिकल सर्टिफाइड मौतों में दिल से जुड़ी बीमारियों से होने वाली मौतों का हिस्सा 34% से ज्यादा था। इसी तरह 9.2% मौतें सांस से जुड़ी बीमारियों के कारण, 6.4% मौतें कैंसर के कारण और 5.8% मौतें नवजातों की थीं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि गोवा में 100% मौतें मेडिकल सर्टिफाइड होती हैं। दिल्ली का नंबर दूसरा (61.5%) और मणिपुर का नंबर तीसरा (55%) था।

कोरोना के कारण अन्य बीमारियों से होने वाली मौतों में और इजाफा हो सकता है
भारत में टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों से बचाव के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं। प्रसव के पहले और बाद में होने वाली मौतों के लिए भी आंगनबाड़ियों के जरिए कार्यक्रम चलते हैं लेकिन फिलहाल लॉकडाउन के कारण यह सब पिछले 50 दिनों से थमे हुए हैं। वर्तमान में देश के पूरे संसाधन और मशीनरी कोरोना महामारी से लड़ने में लगी हुई है। एक स्टडी में सामने आया है कि भारत में अगर कोरोना के कारण अन्य बीमारियों से ध्यान हटा तो इनसे होने वाली मौतों की संख्या में बड़ा इजाफा होगा। यूएसएआईडी के सपोर्ट से स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के साथ मिलकर इंपीरियल कॉलेज, एवनीर हेल्थ और जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में कहा गया है कि भारत में एक महीने के लॉकडाउन के कारण साल 2020 से 2025 के बीच टीबी से 40 हजार अतिरिक्त मौतें होंगी।

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनियाभर में अगर लॉकडाउन 3 महीने तक चलता है तो टीबी से होने वाली मौतों का आंकड़ा फिर से 2013 से 2016 के बीच पहुंच जाएगा यानी टीबी उन्मूलन के लिए पिछले 7 सालों में चलाए गए मिशनों का नतीजा जीरो हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, 3 महीने के लॉकडाउन से दुनियाभर में 63 लाख टीबी के अतिरिक्त मामले सामने आएंगे और मौतें भी 14 लाख बढ़ जाएंगी।

यह आंकड़ें सिर्फ टीबी के हैं। डब्लूएचओ की एक स्टडी में यह भी बताया गया है कि कोरोना के कारण मलेरिया और एचआईवी उन्मूलन कार्यक्रम में आने वाली रुकावटें और दवाईयों तक पहुंच में आने वाली समस्याओं से इनसे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी आने वाले दिनों में बढ़ेगा। भारत में साल 2017 में मलेरिया से 1.85 लाख और एचआईवी से 69 हजार मौतें हुईं थीं।

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