जानिए क्या है Mw वैक्सीन, जिसका कोरोना वायरस पर हो रहा ट्रायल?
पीजीआई चंडीगढ़ (PGI Chandigarh) में डॉक्टरों ने इस वैक्सीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस (Coronavirus) पीड़ितों पर जब करना शुरु किया तो नतीजे बेहतर मिले. इसे देखते हुए इसे देश के दो प्रतिष्ठित दिल्ली और भोपाल एम्स में ट्रायल किया जा रहा है कि वैक्सीन (Vaccine) का कोई बुरा असर तो कोरोना पीड़ितों पर नहीं पड़ रहा है.
लखनऊ. पीजीआई चंडीगढ़ (PGI Chandigarh)और देश के दो प्रतिष्ठित एम्स में इन दिनों कोरोना वायरस (Coronavirus) से बचाव के लिए एक वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है. वैसे तो ये वैक्सीन नयी नहीं है, बल्कि सालों से इसका इस्तेमाल कुष्ठ रोग से बचाव के लिए किया जाता रहा है. खास बात ये है कि वाराणसी के एक वैज्ञानिक ने भारत सरकार को 1 महीना पहले ही इसके इस्तेमाल की सलाह दी थी. भारत सरकार ने mygov.in पर देशभर के वैज्ञानिकों से कोरोना से संघर्ष के लिए सुझाव मांगे थे.
कुष्ठ रोग (LEPROSY) से बचाव में वर्षों से इस्तेमाल हो रही वैक्सीन Mw यानी माइकोबैक्टीरियम W की चर्चा अचानक से पूरे विश्व में फैल गयी है. इसे MIP यानी MYCOBACTERIUM INDICUS PRANII (माइको बैक्टीरियम इण्डिकस प्रेनाई) के नाम से भी जाना जाता है.
पीजीआई चंडीगढ़ में डॉक्टरों ने इस वैक्सीन का इस्तेमाल कोरोना वायरस पीड़ितों पर जब करना शुरु किया तो नतीजे बेहतर मिले. इसे देखते हुए इसे देश के दो प्रतिष्ठित दिल्ली और भोपाल एम्स में ट्रायल किया जा रहा है कि वैक्सीन का कोई बुरा असर तो कोरोना पीड़ितों पर नहीं पड़ रहा है.
आपको जानकर ये खुशी होगी कि इस वैक्सीन के इस्तेमाल की सलाह भारत सरकार को वाराणसी के एक वैज्ञानिक ने दी थी. डॉ. प्रवीण कुमार सिंह ने 1 अप्रैल को ही केन्द्र सरकार को उसके एप्प पर ये सलाह दी थी कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा सकता है.
MYGOV.IN पर दिये गये अपने सुझाव में डॉ. प्रवीण ने कहा था कि ये वैक्सीन उन लोगों को दी जाये जो कोरोना संक्रमितों के इलाज में लगे हुए हैं. इससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जायेगी और वे कोविड – 19 के संक्रमण से बच सकेंगे. डॉ. प्रवीण ने ये भी बताया था कि इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती है जिससे कोविड 19 वायरस का खात्मा भी संभव है.
ये वैक्सीन इम्यूनोमॉडुलेटर (जैसी जरूरत उस हिसाब से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास) की तरह काम करती है जिसका फायदा किसी बीमारी से बचने और बीमार होने के बाद उससे उबरने, दोनों ही स्थितियों में मिलता है. तो आईये जानते हैं डॉ. प्रवीण से कि इस वैक्सीन की खास बातें…
Q. क्या है MW?
जवाब – MW एक माइको बैक्टीरिया है. यह माइको बैक्टीरिया की 150 प्रजातियों में से एक है. इसे मृत अवस्था में इस्तेमाल किया जाता रहा है. इस वैक्सीन की खोज लगभग 25 साल पहले दिल्ली के ही एक वैज्ञानिक डॉ. जीपी तलवार ने की थी. उन्होंने एक मरीज़ के बलगम से इसे खोज निकाला था. जब कुष्ठ रोगियों (LEPROSY) पर इसका इस्तेमाल किया गया तो नतीजे चौकाने वाले आये. कुष्ठ रोगियों को दी जाने वाली दवाईयों के साथ जब MW वैक्सीन को दिया गया तो वे आधे समय में ही ठिक होने लगे. तब से लेकर आज तक इसका इस्तेमाल कुष्ठ रोगियों के लिए किया जाता रहा है. इस खोज के लिए उन्हें कई बड़े अवार्ड भी दिये गये थे.
Q. शरीर में कैसे काम करती है ये वैक्सीन?
जवाब – ये वैक्सीन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बहुत बढ़ा देती है. इस वैक्सीन से शरीर की फर्स्ट लाइन और सेकेण्ड लाइन दोनों इम्यूनिटी काफी बढ़ जाती है. इससे शरीर में बी और टी सेल्स बहुत तेजी से बनने लगती हैं. ये दोनों सेल्स किसी भी नये या पुराने वायरस या बैक्टीरिया को खत्म करने में तेजी से जुट जाते हैं.
Q. MW या MIP एक बैक्टीरिया है जबकि कोविड-19 एक वायरस. फिर ये कैसे मुकाबला कर रहा है ?
जवाब – कोई भी वायरस या माइकोबैक्टीरिया इन्ट्रासेल्यूलर होता है. यानी ये सेल्स के अंदर पहुंच जाते हैं. कोविड-19 भी इंसानी शरीर के सेल्स के अंदर पहुंच कर अपने आप को तेजी से बढ़ाने लगता है. MW भी माइको बैक्टीरिया होने के नाते सेल्स के अंदर पहुंच जाता है. हालांकि डेड होने के कारण ये अपने आपको बढ़ा तो नहीं पाता लेकिन, इसके प्रोटीन की वजह से शरीर सेल के अंदर ऐसी परिस्थितियां पैदा कर सकता है जिससे कोविड-19 का फैलाव रूक जाता है. धीरे-धीरे कोविड-19 खत्म होने लगता है.
Q. टीबी के लिए लगाये जाने वाले बीसीजी के टीके की भी बहुत चर्चा हो रही है. क्या ये भी कारगर है?
जवाब – ये सवाल भी मेरे में दिमाग में आया कि जब दुनियां के कई देशों में बीसीजी का इस्तेमाल किया जा रहा है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं. मुझे लगता है कि बीसीजी का टीका हमें पहले से ही लगा हुआ है. हमारे देश में टीबी की बीमारी बहुत व्यापक है. दुनियांभर में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में ही हैं. जब हम किसी बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन या टीका देते हैं तो उससे हमारे शरीर में एकाएक उस बीमारी के खिलाफ इम्यूनिटी बहुत बढ़ जाती है. अब संभावनायें ये हैं कि अगर दोबारा बीसीजी का टीका लगा दिया तो बहुत संभव है कि उसके साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा आ जायें. MIP या MW में ऐसी संभावना नहीं दिखाई दे रही है. लेप्रसी की बीमारी के लिए लगाई जाने वाली ये वैक्सीन सभी को नहीं लगती. ऐसे में इसके साइड इफेक्ट की संभावना ना के बराबर है. दूसरी ये बात कि सामान्यतः MW वैक्सीन कुष्ठ रोगियों को लगायी जाती है. यानी ये बीमारी के दौरान भी तेजी से काम करती है जबकि दूसरी वैक्सीन बीमारी से पहले लगायी जाती है. ऐसे में इसका असर दूसरी वैक्सीन से ज्यादा है.
Q. क्या ये पूरी तरह सेफ है?
जवाब – देखिये कोविड-19 के मामले में इसके इस्तेमाल का कोई पैमाना नहीं है. फिलहाल उपलब्ध दवाओं में से ही सबसे बेहतर का चुनाव करना है. यही वजह है कि कहीं बीसीजी तो कहीं मलेरिया की दवा इस्तेमाल की जा रही है. ऐसे में जबकि ये पता है कि MW वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है तो इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. हमें ये भी नहीं पता है कि कोविड-19 के लिए भविष्य में तैयार होने वाली वैक्सीन कितनी कारगर होगी. बहुत सारी बीमारियां हैं जिनके टीके अभी तक नहीं बन पाये हैं.
कौन हैं डॉ प्रवीण कुमार सिंह?
डॉ. प्रवीण कुमार सिंह एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं. वे लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में टीबी पर और आगरा के राष्ट्रीय जालमा कुष्ठ एवं अन्य माइकोबैक्टीरियल रोग संस्थान में शोध कर चुके हैं. फिलहाल मथुरा की जीएलए यूनिवर्सिटी में असिस्टेण्ट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे हैं. कोराना से बचाव के लिए भारत सरकार ने MYGOV.IN एप्प पर देशवासियों से सुझाव मांगे थे. इसी एप्प पर उन्होंने MW वैक्सीन के इस्तेमाल की सलाह दी थी जिसका कोरोना संक्रमित मरीजों पर ट्रायल चल रहा है.