Coronavirus: वैक्सीन के लिए भारत की ओर देख रही है दुनिया, जानें वजह

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा कि भारत और अमेरिका कोरोना वायरस (Coronavirus) से निजात पाने के लिए वैक्सीन (vaccine) डेवलप कर रहे हैं. यह वायरस अब तक 2 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है.

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नई दिल्ली. कोरोना वायरस (Coronavirus) अब तक 2 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है. करीब 30 लाख लोग कोविड-19 (Covid-19) वायरस से संक्रमित हैं. दुनिया के तमाम देश इस वायरस से निजात पाने के लिए वैक्सीन या दवाई बनाने में जुटी हैं, लेकिन अब तक किसी को कामयाबी नहीं मिल सकी है. ऐसे में अब दुनिया कोविड-19 के वैक्सीन (Covid-19 vaccine) की उम्मीद में भारत की ओर देख रही है.

करीब दो हफ्ते पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा कि भारत और अमेरिका कोरोना वायरस से निजात पाने के लिए वैक्सीन (Coronavirus vaccine) डेवलप कर रहे हैं. पॉम्पियो कोई ऐसी बात नहीं कह रहे थे, जो हैरान करे. दरअसल, ये दोनों देश वैक्सीन बनाने को लेकर तीन दशक से मिलकर काम कर रहे हैं. दोनों देश ज्वाइंट वैक्सीन डेवलमेंट प्रोग्राम चला रहे हैं. भारत और अमेरिका ने डेंगू, आंत्र रोग, इन्फ्लूएंजा और टीबी को रोकने पर मिलकर काम किया है. अब निकट भविष्य में डेंगू के टीके के ट्रायल पर काम हो रहा है.

भारत दुनिया में सबसे अधिक जेनेरिक दवाएं और टीके बनाने वाला है. यह आधा दर्जन प्रमुख वैक्सीन निर्माताओं का देश है. यहां  पोलियो, मेनिन्जाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी, खसरा, मम्प्स और रूबेला के टीके या दवाइयों के खुराक बनते हैं. अब आधा दर्जन भारतीय कंपनियां कोविड-19 रोकने के लिए टीके विकसित कर रही हैं.

बीबीसी’ के मुताबिक ऐसी ही कंपनियों में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया शामिल है. यह दुनिया भर में सबसे अधिक टीके और उसके डोज बनाने वाली कंपनी है. 53 साल पुरानी कंपनी हर साल 1.5 अरब डोज बनाती है. इस कंपनी में करीब 7,000 लोग काम करते हैं. कंपनी 165 देशों में 20 टीकों की आपूर्ति करती है. अब इस फर्म ने लाइव एटेन्यूएटेड वैक्सीन विकसित करने के लिए अमेरिकी बायोटेक कंपनी कोडाजेनिक्स से करार किया है.

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ आदर पूनावाला ने कहा, ‘हम अप्रैल में इस टीके के चूहों पर ट्रायल की योजना बना रहे हैं. सितंबर तक हमें इंसानों पर ट्रायल करने की स्थिति में होंगे.’ सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित टीके के उत्पादन के लिए भी समझौता किया है. ऑक्सफोर्ड में गुरुवार से इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू होगा. ऑक्सफोर्ड में जेनर इंस्टीट्यूट चलाने वाले प्रो एड्रियन हिल ने कहा, ‘दुनिया को साल के अंत तक लाखों डोज की जरूरत है. भारतीय फर्म में 400 से 500 मिलियन डोज बनाने की अतिरिक्त क्षमता है.’

हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने वैक्सीन की लगभग 30 करोड़ डोज बनाने के लिए विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय मैडिसन और अमेरिका स्थित फर्म फ्लुजन से करार किया है. जायडस कैडिला दो टीकों पर काम कर रहा है. बोयालॉजिकल ई, इंडियान इम्युनोलॉजिकल्स और मिनवैक्स भी वैक्सीन डेवलेप करने में जुटे हुए हैं. चार-पांच और फर्म भी वैक्सीन विकसित करने की कोशिश में जुटी हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, ‘इसका श्रेय उद्यमियों और फार्मास्युटिकल कंपनियों को जाना चाहिए जिन्होंने क्वालिटी मैन्युफैक्चरिंग में निवेश किया है. इन कंपनियों के मालिकों ने अच्छा काम करने के साथ-साथ बिजनेस का लक्ष्य रखा है, जो दुनिया के लिए अच्छी बात है.’

हालांकि, विशेषज्ञों ने चेताया है कि कि लोगों को वैक्सीन आने की की उम्मीद बहुत जल्दी नहीं करनी चाहिए. इम्पीरियल कॉलेज, लंदन में वैश्विक स्वास्थ्य के प्रोफेसर डेविड नाबरो कहते हैं कि मनुष्यों को निकट भविष्य में कोरोनो वायरस के खतरे के साथ रहना होगा. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोई वैक्सीन कामयाबीपूर्वक जल्दी विकसित कर ली जाएगी.

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