पालघर घटनाक्रम: साधू समाज के अखाड़ा परिषद् की चेतावनी- पुलिस पर एक्शन हो, नहीं तो करेंगे महाराष्ट्र कूच
साधुओं की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्य्क्ष नरेंद्र गिरी महाराज ने कहा है कि महाराष्ट्र के पालघर में जूना अखाड़े के दो संतों के साथ जो हुआ वो बेहद दर्दनाक है. उन्होंने कहा कि साधुओं की मौत पर मुझे आश्चर्य है कि यह मनुष्य नहीं कर सकता, राक्षस लोग ही ऐसा कर सकते हैं.
-
अखाड़ा परिषद् ने पालघर घटना की निंदा की
-
नरेंद्र गिरी महाराज ने दी महाराष्ट्र कूच की चेतावनी
-
महाराष्ट्र में उद्धव नहीं, रावण राज- नरेंद्र गिरी
महाराष्ट्र के पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग पर संत समाज में नाराजगी देखने को मिल रही है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् ने भी इस घटना पर गुस्सा जाहिर किया है. साथ ही अखाड़ा परिषद् ने कहा है कि महाराष्ट्र में रावण राज चल रहा है और अगर जिम्मेदार लोगों पर एक्शन नहीं होता है तो लॉकडाउन के बाद नागा साधुओं की फौज महाराष्ट्र कूच करेगी.
साधुओं की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के अध्य्क्ष नरेंद्र गिरी महाराज ने कहा है कि महाराष्ट्र के पालघर में जूना अखाड़े के दो संतों के साथ जो हुआ वो बेहद दर्दनाक है. उन्होंने कहा कि साधुओं की मौत पर मुझे आश्चर्य है कि यह मनुष्य नहीं कर सकता, राक्षस लोग ही ऐसा कर सकते हैं. बता दें कि पालघर में 16 अप्रैल की रात भीड़ ने दो संतों को पीट-पीटकर मार दिया. कहा जा रहा है कि चोर और डकैतों की अफवाह के चलते इलाके में पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं.
महाराष्ट्र में रावण राज
नरेंद्र गिरी महाराज ने ये भी कहा कि महाराष्ट्र में अब रावण राज आ गया है, जहां निर्दोष संत-महात्माओं को मारा जा रहा है, बिना किसी अपराध के मारा जा रहा है. यह घटना निंदनीय है. हमलावरों को राक्षस बताते हुये नरेंद्र गिरी महाराज ने उन्हें तत्काल गोली मार देने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि ये राक्षस हैं और राक्षसों को मारने में कोई पाप नहीं लगता.
महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. पालघर की मॉब लिंचिंग की वारदात को लेकर उद्धव सरकार पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) हमलावर है. महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक, इस वारदात के पीछे कोई मजहबी रंग नहीं हैं. चोर-डाकू समझकर ग्रामीणों ने दो साधु समेत तीन लोगों को मार डाला.
दरअसल, पालघर जिले में जिस जगह मॉब लिंचिंग की ये वारदात हुई है, वहां लॉकडाउन के बाद से लोग दिन-रात लगातार खुद पहरेदारी कर रहे हैं. इलाके में चोर, डाकुओं के घूमने की अफवाह थी. बीते गुरुवार को भी मॉब लिचिंग के घटनास्थल से 30 किलोमीटर दूर एक गांव में ग्रामीणों ने शक के आधार पर कुछ लोगों पर हमला किया था.
पुलिस के मुताबिक, साधुओं की मॉब लिंचिंग से तीन दिन पहले एक डॉक्टर और तीन पुलिसवालों के साथ थाने के असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर आनंद काले पर ग्रामीणों ने चोर-डाकू समझ कर हमला बोल दिया था. इन लोगों को पुलिस की टीम ने बचा लिया था.इसके बाद पुलिस की ओर से लोगों से चोर और डाकुओं को लेकर उड़ी अफवाह पर ध्यान न देने की अपील की गई थी. इस बीच 16-17 अप्रैल की दरमियानी रात को दो साधु अपनी कार से एक गांव में पहुंच गए. महाराष्ट्र सरकार के मुताबिक, ग्रामीणों ने शक के आधार पर दोनों साधुओं और उनके ड्राइवर को मार डाला. ग्रामीणों ने उन लोगों को चोर-डाकू समझ लिया था.
महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा, ‘मॉब लिंचिंग की जो घटना हुई है, वहां पर तीन लोग बिना इजाजत के बाहर के स्टेट में जा रहे थे. उन्होंने मेन रोड से ना जाकर ग्रामीण सड़क से जाने की कोशिश की, वहीं पर उनको पकड़ा गया. गांव वालों को लगा कि शायद चोरी करने आए हैं, इसकी वजह से हमला हुआ है और तीन लोगों की मौत हुई.’
पालघर पुलिस को शक है कि चूंकि ये लोग मुख्य सड़क से ना जाकर ग्रामीण रास्ते से जा रहे थे, इसलिए अफवाह की वजह से गांव के लोगों ने उन्हें डाकू समझ लिया होगा. करीब 200 ग्रामीणों की भीड़ ने पहले उनकी गाड़ी पर पथराव किया और फिर गाड़ी से खींचकर उन्हें पीटना शुरू कर दिया.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, पथराव के दौरान ही ड्राइवर ने किसी तरह पुलिस को मामले की जानकारी दे दी थी, लेकिन हिंसक भीड़ के आगे पुलिस भी बेबस नजर आई. कासा थाने के पुलिसवालों के अलावा इस हमले में जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी समेत पांच पुलिसवाले भी जख्मी हुए हैं.
दो साधुओं की मॉब लिंचिंग के कारण चर्चाओं में आए पालघर के बारे में जानें 10 बातें
महाराष्ट्र में मुंबई के करीब बसा कस्बा पालघर हमेशा ही पिछले कुछ बरसों में गलत कारणों से चर्चाओं में रहा है. अबकी बार ये दो साधुओं की मॉब लिंचिंग के कारण की गई हत्या के कारण चर्चा में है. आइए जानते हैं कि पिछले कुछ सालों में किन किन मामलों में पालघर चर्चाओं में आया है. क्या है इसकी डेमोग्राफी. यहां की सियासी हवा किस ओर बहती है.
1. पालघर के सांसद और विधायक – पालघर मुंबई से करीब 90 किलोमीटर दूर है. ये नगर पालिका है. यहां के सांसद और विधायक दोनों ही शिवसेना से ताल्लुक रखते हैं. यहां के सांसद अरुण गोवित हैं जबकि विधायक अमितकृष्ण गौड़ा
2. फेसबुक टिप्पणी पर बरपा था हंगामा- पहली बार पालघर तब सुर्खियों में आया था जब 2012 में फेसबुक पर टिप्पणी के कारण यहां की दो लड़कियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. ये टिप्पणी उन्होंने बाल ठाकरे के निधन के बाद शोक में पूरे महाराष्ट्र को बंद करने पर की थी.
3. बड़े पैमाने पर विस्फोटक मिले थे- वर्ष 2016 में यहां बड़े पैमाने पर विस्फोटक बरामद हुए थे. ये विस्फोटक जमीन पर दबाकर रखे गए थे. पुलिस के कारण इन विस्फोटक की मात्रा 10-15 किलो के आसपास थी.
4. कहां हैं पालघर – पालघर मूल तौर पर कोंकण डिविजन में आने वाला एक कस्बा है, जो पालघर जिले का प्रशासकीय मुख्यालय भी है. ये मुंबई-अहमदाबाद नेशनल हाईवे पर स्थित है.
5. साक्षरता में बहुत आगे- पालघर साक्षरता के लिहाज से बहुत आगे है. यहां की कुछ साक्षरता दर 77,52 है. जहां इस जिले के लिए 81.2 फीसदी पुरुष शिक्षित हैं वहीं 73.35 महिलाएं साक्षर हैं. इस लिहाज से इसकी साक्षरता दर देश की औसत साक्षरता दर से कहीं ज्यादा है.
6. हिंदू आबादी सबसे ज्यादा – पालघर में हिंदू आबादी सबसे ज्यादा है लेकिन उसके अलावा यहां जैन, बौद्ध, मुस्लिम भी पर्याप्त संख्या में रहते हैं. पालघर जिले की कुल आबादी 14.30 लाख के आसपास है जबकि पालघर कस्बे की जनसंख्या 70 हजार के आसपास.
7. यहां दो साल पहले बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी शरणार्थियों को गिरफ्तार किया गया था. माना जाता है कि पालघर में काफी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी रहते हैं.
8. आजादी की लड़ाई में रहा है प्रमुख केंद्र – पालघर को वर्ष 2014 में जिला बनाया गया. वैसे इस शहर का आजादी का इतिहास भी काफी समृद्ध है. 1942 में जब देश में असहयोग आंदोलन छिड़ा था, तब भी पालघर एक प्रमुख केंद्र के तौर पर उभरकर सामने आया था.
9. टूरिज्म के लिहाज से भी अहम- पालघर जिले में कई तरह के पुराने किले हैं. पर्यटन के लिहाज से ये महत्वपूर्ण केंद्र है. यहां 10 से ज्यादा पुराने किले हैं. आजादी से पहले यहां से बड़े पैमाने पर लकड़ी की स्मगलिंग हुआ करती थी.
10. बुलेट ट्रेन का हुआ था बड़ा विरोध- प्रधानमंत्री ने बुलेट परियोजना का शिलान्यास किया तो उसका सबसे ज्यादा विरोध यहां के आदिवासियों की ओर से हुआ. 12 जनवरी 2017 को यहां पश्चिमी और मध्य भारत के करीब एक लाख आदिवासी जुटे. आदिवासी एकता परिषद (एईपी) के इस सम्मेलन के जरिए मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परियोजना का विरोध किया गया.
दरअसल आदिवासियों का विरोध ये था कि इस परियोजना से पालघर के 73 गांवों के आदिवासी विस्थापित हो जाएंगे. इसमें दो गांव ऐसे भी हैं जो पहले से ही एक बांध के निर्माण के चलते दोबारा बसाए गए थे. इन दोनों गांवों के विस्थापित परिवार अभी भी सरकार द्वारा किए गए स्कूल, अस्पताल और जायज आर्थिक मुआवजा के वादों के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं.