वैज्ञानिकों का आकलन- सितंबर तक अमेरिका में हो सकती है 22 लाख मौतें, अभी रोज 1800 से ज्यादा हो रहीं

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जनजीवन सामान्य करने के लिए गाइडलाइन जारी की, उम्मीद जताई कि इससे जल्द ही सबकुछ बेहतर हो सकेगा 20 से ज्यादा एक्सपर्ट्स ने अमेरिका के भविष्य पर कहा- नहीं पता यह संकट हमें कहां ले जा रहा, लेकिन इसका कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं चेतावनी- वैक्सीन नहीं आया तो वायरस सालभर घूमता रहेगा, केस भी बढ़ते रहेंगे, ह्वाइट हाउस द्वारा देश को दोबारा खोलने से मौतें और बढ़ेंगी

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कोरोनावायरस का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर पड़ा है। यहां कोरोना से 7 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। 34 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि यह स्थिति आगे और खराब हो सकती है। दरअसल, अमेरिका के बड़े शहरों से फैला यह वायरस अब छोटे इलाकों और गांवों में पहुंच गया है। ऐसे वक्त में राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रम्प ने देश में आम जनजीवन सामान्य करने के लिए गाइडलाइन जारी की हैं। राष्ट्रपति ने अनुमान लगाया है कि इससे जल्द ही सबकुछ सामान्य हो सकेगा। हालांकि यह साफ नहीं है कि यह संकट हमें कहां ले जाएगा।’

  • ट्रम्प के बयान के बाद दो दर्जन से ज्यादा एक्सपर्ट्स को लगता है कि अमेरिकियों की सरलता जब एक बार फिर उत्पादन में लग जाएगी तो यह बोझ कम हो सकेगा। उन्होंने कहा कि सावधानी, बड़े स्तर पर टेस्टिंग, निगरानी और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पर्याप्त साधन असरदार होंगे। हालांकि अभी भी अगले साल के लिए अनुमान लगाना असंभव है।

पब्लिक हेल्थ, मेडिसिन, एपिडेमियोलॉजी और हिस्ट्री के एक्स्पर्ट्स ने इंटरव्यू में भविष्य की बात की है। वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल में प्रिवेंटिव मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर विलियम शैफनर के मुताबिक मुझे आशा है कि यह वायरस गर्मियों में कुछ कम हो जाएगा और वैक्सीन एक फौज की तरह आएगी। लेकिन मैं अपने इस आशावादी व्यव्हार को रोकने की कोशिश कर रहा हूं। हालांकि कई एक्स्पर्ट्स यह कह चुके हैं कि जैसे ही यह संकट खत्म होगा, आर्थिक व्यवस्था फिर से ठीक हो जाएगी। लेकिन तब तक इस दर्द से बचने का कोई उपाय नहीं है। यह वायरस कब खत्म होगा यह मेडिकल के साथ-साथ हमारे व्यवहार पर भी निर्भर करता है। अगर हम खुद को और करीबियों को बचा पाए तो हम ज्यादा लोग जिंदा बचेंगे। लेकिन अगर हमने इस वायरस को हल्के में लिया तो यह हमें खोज लेगा।’

आंकड़ों से ज्यादा मौतें हो रही हैं- 

  • कोरोनावायरस को अमेरिका में सबसे ज्यादा मौतों का जिम्मेदार माना जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 7 अप्रैल के बाद हर दिन 1800 अमेरिकियों की मौत हो रही है। हालांकि सरकारी आंकड़े अभी भी साफ नहीं हैं। जबकि अमेरिका में दिल की बीमिरियों से एक दिन में 1774 और कैंसर से 1641 मौत होती हैं।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवेलुएशन के मॉडल के अनुमान के मुताबिक, गर्मियों के मध्य तक एक लाख से 2 लाख 40 हजार मौतें होनी थीं। लेकिन अब यह आंकड़ा 60 हजार है। अब तक की सफलता का कारण शटडाउन है। लेकिन इसे हमेशा के लिए भी जारी नहीं रख सकते।
  • इंस्टीट्यूट का आकलन चार अगस्त तक के लिए है। उसके मॉडल के मुताबिक बिना वैक्सीन के इस महामारी कंट्रोल करना मुश्किल है। यदि वैक्सीन नहीं आई तो वायरस सालभर घूमता रहेगा और मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जाएगा। व्हाइट हाउस के देश को दोबारा खोलने के प्लान से मौत का आंकड़ा फिर बढ़ेगा। फिर चाहे कितनी ही एहतियात से इसे लागू किया जाए।
  • इम्पीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं के एक मॉडल के मुताबिक, अमेरिका में सितंबर तक 22 लाख के करीब मौतें हो सकती हैं। तुलना की जाए तो दूसरे विश्व युद्ध में 4 लाख 20 हजार अमेरिकी मारे गए थे।
  • चीन में अब तक संक्रमण के 83 हजार मामले सामने आए, जहां 4632 लोगों की मौत हो गई। ट्रम्प सरकार ने इन आंकड़ों पर सवाल उठाए थे, लेकिन खुद ने भी सही आंकड़े तैयार नहीं किए थे। मरीजों की संख्या ज्यादा होने के कारण हल्के मामलों की जांच ही नहीं की गई। अगर आपको संक्रमितों को बारे में जानकारी नहीं है, तो आप यह नहीं जान सकते कि वायरस कितना खतरनाक है।

धीमें-धीमें हटेगा लॉकडाउन

  • 19 मार्च को प्रकाशित आर्टिकल कोरोनावायरस: द हैमर एंड द डांस में थॉमर पुएयो ने नेशनल लॉकडाउन का एकदम सटीक अनुमान लगाया था। उन्होंने लॉकडाउन को हैमर कहा और फिर से शुरू हो रही इकोनॉमी, स्कूल, फैक्ट्री को डांस बताया था। फिलहाल अमेरिका में संक्रमितों का सटीक आंकड़ा किसी के पास नहीं है। यह कुल संक्रमितों का 3 से 10 प्रतिशत तक ही हो सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जितना सख्त पाबंदियां होंगी उतनी मौतें कम होंगी। ज्यादातर मॉडल्स टेम्परेचर चैक, टेस्टिंग और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की बात कर रहे हैं।
  • गुरुवार को जारी ट्रम्प की गाइडलाइन्स के अनुसार तीन लेवल की सोशल डिस्टेंसिंग की जाएगी और असुरक्षित लोगों को घर में रहने के लिए कहा गया है। इस प्लान में टेस्टिंग, आइसोलेशन और ट्रैकिंग का जिक्र है, लेकिन यह कहीं नहीं बताया गया कि इन उपायों को लागू करने मे कितना वक्त लगेगा या इनका भुगतान कैसे किया जाएगा।
  • चीन ने वुहान, नानजिंग और दूसरे शहरों को दोबारा खोलने की अनुमति तब तक नहीं दी, जब तक 14 दिनों के भीतर मरीजों का आंकड़ा शून्य नहीं हो गया। चीन में जहां 100 संक्रमणों के मामले रोज सामने आने के कारण फिर से मूवी थियेटर्स और सिंगापुर में सभी स्कूल और गैर जरूरी जगह बंद कर दिए हैं। वहीं, जापान में आपातकाल की घोषणा कर दी है।
  • सीडीसी के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर थॉमस आर फ्रीडन ने अपने प्रकाशन में बताया है कि इकोनॉमी को कब दोबारा शुरू किया जाए और कब तक इसे बंद रहने देना हैं। डॉक्टर फ्रीडन कहते हैं कि हमें एकदम बांध के गेट खोल देने के बजाए नल को धीरे-धीरे खोलने की जरूरत है।

 इम्युनिटी का प्रमाण दे सरकार-

  • कोरोनावायरस से उबर चुके लोगों के पास इम्युनिटी होती है। जबकि कुछ लोग अभी भी असुरक्षित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर डेविड नाबरो कहते हैं कि एंटीबॉडीज वाले लोग घूम सकेंगे, काम कर सकेंगे। जबकि दूसरों के साथ भेदभाव किया जाएगा। पहले ही इम्युनिटी वाले लोगों की मांग ज्यादा है। उनसे एंटीबॉडीज के लिए रक्तदान करने के लिए कहा जा रहा है।’
  • जॉर्जटाउन लॉ स्कूल में पेंडेमिक एक्सपर्ट डॉक्टर डेनियल लूसी के मुताबिक, सरकार को जल्द ही इम्यून वाले लोगों को प्रमाणित करने का तरीका तैयार करना होगा। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जितने ज्यादा इम्युनिटी वाले लोग काम करेंगे, उतनी जल्दी इकोनॉमी रिकवर होगी। लेकिन अगर कई लोग एक साथ संक्रमित हो गए तो फिर लॉकडाउन जरूरी हो जाएगा। इससे बचने के लिए टेस्टिंग की जरूरत है। वायरस की लगातार जांच के लिए एक्सपर्ट्स मरीजों को आइसोलेट करने की सलाह दे रहे हैं।
  • चीन में डब्ल्युएचओ की टीम का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर ब्रूस एलवार्ड कहते हैं कि अगर मुझे किसी एक चीज चुनने पर मजबूर किया गया तो, वह सभी मामलों का तुरंत आइसोलेशन होगा। चीन में जो पॉजिटिव केस को तत्काल हॉस्पिटल में भेज दिया जाता है। फिर चाहे उसके लक्षण कितने ही मामूली हों।’
  • एक्सपर्ट्स कहते हैं कि वायरस की रोकथाम के लिए कॉन्टेक्ट्स की टेस्टिंग भी जरूरी है। इससे पहले तक सीडीसी के पास 600 ट्रेसर्स हैं और हाल ही में लोकल हेल्थ डिपार्टमेंट ने 1600 नई नियुक्तियां की हैं। वहीं चीन में 9 हजार ट्रेसर्स केवल वुहान में हैं। डॉक्टर फ्रीडन के अनुमान के मुताबिक अमेरिका में कम से कम तीन लाख ट्रेसर्स की जरूरत है।

वैक्सीन में अभी लगेगा वक्त-

  • एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि, वैक्सीन तैयार करने में वक्त लगेगा। अमेरिका और चीन में तीन लोगों पर ट्रायल शुरू हो चुके हैं। डॉक्टर फॉसी के मुताबिक वैक्सीन तैयार होने में एक साल से लेकर 18 महीने का समय लग सकता है। मॉडर्न बायोटैक्नोलॉजी वैक्सीन जल्द तैयार करने के लिए आरएनए और डीएनए प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रही है। लेकिन क्लीनिकल ट्रायल्स में वक्त लगता है।’
  • डॉक्टर फॉसी के मुताबिक चैलेंज ट्रायल्स के जरिए इस प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है। इसमें वैज्ञानिक वॉलिंटियर्स को वैक्सीन देते हैं और एंटीबॉडीज तैयार होने का इंतजार करते हैं। इसके बाद वैक्सीन की उपयोगिता देखने के लिए उन्हें संक्रमण की चुनौती दी जाती है। चैलेंज ट्रायल्स ठीक होने वाली मलेरिया, टायफाइड जैसी बीमारियों पर ही उपयोग किए जाते हैं। ऐसे में किसी को लाइलाज बीमारी से ग्रस्त करना गलत है।’
  • हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एपिडेमियोलॉजिस्ट मार्क लिपसिच के मुताबिक अगर आप कुछ ही लोगों पर चैलेंज ट्रायल कर रहे हैं तो कुछ ही लोगों को नुकसान होगा। लेकिन कई एक्सपर्ट्स इसे गलत मानते हैं। डॉक्टर लूसी के मुताबिक मुझे लगता है कि यह बहुत ही अनैतिक है, लेकिन मैं देख सकता हूं कि हम इसे कैसे कर सकते हैं।’
  • यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा सेंटर फॉर इंफेक्शियस डिसीज रिसर्च एंड पॉलिसी के डायरेक्टर मिशेल टी ओस्टरहोल्म के मुताबिक, चैलेंज ट्रायल्स आपको सुरक्षा पर जवाब नहीं दे सकते हैं। यह एक बड़ी समस्या हो सकती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यदि वैक्सीन बन गई, तो अमेरिका को कम से 30 करोड़ वैक्सीन की जरूरत होगी। यदि एक व्यक्ति को दो डोज की जरूरत हुई तो फिर कम से कम 60 करोड़ वैक्सीन चाहिए होगी।

वैक्सिनेशन के बजाए इलाज पर जोर

  • एक्सपर्ट्स वैक्सीन से ज्यादा इलाज के लिए आशावादी हैं। उन्हें लगता है कि कॉन्वालेसेंट सिरम काम कर जाएगा। इस प्रक्रिया के मुताबिक, पुराने समय में बीमारी से उबर चुके लोगों का खून लिया जाता है। निकाले गए खून से एंटीबॉडीज छोड़कर सब हटा दिया जाता है और बाद में इंजेक्शन के जरिए यह मरीज को दिया जाता है।
  • कोरोना के मामले में समस्या है कि ठीक हुए मरीजों की संख्या कम है। वैक्सिनेशन से पहले एंटीबॉडीज को घोड़ों और भेड़ों में तैयार किया जाता था। लेकिन इस प्रक्रिया में जानवरों के प्रोटीन के कारण एलर्जिक रिएक्शन जगह ले लेते थे।
सौजन्य–BHASKAR.COM

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