लॉकडाउन में चिड़चिड़े और आक्रामक हो रहे बच्चे, ज्यादा टोका-टाकी न करें, बदल रहा बच्चों का व्यवहार

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लॉकडाउन में फिलहाल सुरक्षा और सेहत के लिहाज से घर पर ही रहना बेहतर होगा। यह पहला मौका है जब पूरा परिवार इतने दिनों से 24-24 घंटे एक साथ है।
परिवार के लिहाज से यह बेहतर समय है, लेकिन बच्चों के लिए घर में ही रहना और उनके प्रति ज्यादा टोका-टाकी उन्हें चिड़चिड़ा भी बना रही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि अभिभावकों को खुद को बदलना होगा और उन्हें बच्चों की मन:स्थिति को समझना होगा, यह खतरनाक संकेत हो सकता है।

बीते 12 दिनों में कई फोन कॉल्स लखनऊ चाइल्ड लाइन के पास आई हैं। जिनमें बच्चों की उम्र 9 साल से 15 साल तक है। चिड़चिड़ापन, आक्रामकता हावी है जो परिवार में झगड़े का कारण बन रही है। एक परिवार में तो नौबत ऐसी आ गई कि एक किशोर को बालगृह में रखा गया है।

मां ने फोन कर कहा, बेटा तोड़फोड़ कर रहा

गत दो अप्रैल को चाइल्ड लाइन को गोमतीनगर से एक अभिभावक का फोन आता है। उनका बेटा 15 साल का है। एक प्रतिष्ठित स्कूल का छात्र है। अचानक से आक्रामक हो गया है।

गुस्सा इस कदर बढ़ा कि घर का दरवाजा तक तोड़ दिया। फोन पर काउंसलिंग की कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं बनी। उसकी आक्रामकता बढ़ती दिखी तो उसे बालगृह ले आया गया। फिलहाल बाल गृह में उसकी काउंसलिंग चल रही है।

बच्चे ने फोन कर बोला, मम्मी-पापा के साथ नहीं रहना

तीन अप्रैल को आलमबाग निवासी 13 वर्षीय बच्चे ने चाइल्ड लाइन को फोन किया। उसने कहा कि मम्मी-पापा मुझे कहीं जाने नहीं दे रहे हैं। हर वक्त टोका-टाकी करते हैं। डांटते रहते हैं।

आपस में भी लड़ते रहते हैं। मुझे घर में नहीं रहना है। किसी तरह से समझाकर बच्चे को घर में रोका गया। साथ ही माता-पिता की काउंसलिंग कर उन्हें बच्चे को समझाने के लिए कहा गया है। सात दिन बाद उनका फॉलोअप लिया जाएगा।

‘पापा लगातार शराब पी रहे और हमें मार रहे हैं’

11 अप्रैल को बुद्धेश्वर निवासी 14 साल के बच्चे ने चाइल्डलाइन को फोन कर कहा कि पापा लगातार शराब पी रहे हैं और हमें मार रहे हैं। हम घर में नहीं रहना चाहते हैं। हमें कहीं रखवा दीजिए, वरना हम भाग जाएंगे।

माता-पिता के लिए खतरे की घंटी

बाल कल्याण समिति की सदस्य और इन मामलों को देख रहीं डॉ. संगीता शर्मा कहती हैं कि इस वक्त परिवार में सामंजस्य की समस्या बढ़ रही है। चाइल्ड लाइन लखनऊ 1098 में लगातार आने वाले फोन और शिकायतों पर टेली काउंसलिंग चल रही है।

फिलहाल बच्चों और माता-पिता दोनों को समझाना पड़ रहा है। समझना माता-पिता को ही पड़ेगा, क्योंकि इस वक्त बच्चे समझ ही नहीं पा रहे कि आखिर हो क्या रहा है।

स्कूल की किताबें आ नहीं पाईं हैं, दोस्तों से दूर हैं, डांस क्लास, स्पोर्ट्स सब बंद हैं, आखिर वे जाएं भी कहां और करें भी तो क्या। ऐसे में यदि माता-पिता धैर्य खोते हैं तो दिक्कत बढ़ जाती है।

जिस तरह लड़कियां घर के कामों में व्यस्त रहकर शांत दिमाग रहती हैं, उसी तरह लड़कों को भी दिनचर्या में बांधें। वर्चुअल दुनिया में एक ग्रुप बनाएं, साथ मिलकर वीडियो कॉलिंग करके परिवार, दोस्तों के साथ संपर्क में रहें और बच्चों को भी रखा।

आजकल बच्चे समझ रहे हैं कि वे कैद में हैं

बाल कल्याण समिति, चाइल्ड लाइन से संबद्ध मनोचिकित्सक डॉ. रश्मि सोनी बताती हैं कि बच्चों के स्तर पर जाकर सोचें। बड़े उन्हें कुछ उदाहरणों से समझाएं। पुलिस का डर न दिखाएं।

उन्हें समझाएं कि एक बीमारी के कारण हम लोगों का घर में रहना जरूरी है। हम लोग इससे स्वस्थ रहेंगे। कैद में रहने जैसे अहसास से बच्चों को मुक्त कीजिए और लॉकडाउन में यह जिम्मा परिवार के बड़े लोगों को ही उठाना होगा। हम लोग फोन पर उपलब्ध हैं, हमसे भी सलाह ली जा सकती है।

 

 

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