देश में कोरोनावायरस की वैक्सीन का जानवरों पर प्रयोग शुरू, 4 से 6 महीने में नतीजे मिलने की उम्मीद

भारतीय कंपनी जायडस कैडिला कोरोनावायरस का टीका बना रही, 10 साल पहले स्वाइन फ्लू का टीका भी इसी कंपनी ने बनाया था। इसी तरह अमेरिका में वैज्ञानिकों ने कोविड19 की संभावित वैक्सीन बनाई है जिसका प्रयोग अभी जानवरों पर किया गया है। चूहे पर प्रयोग से अच्छे संकेत मिलने शुरू हुए हैं जिसके बाद शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका प्रयोग आगे इंसानों पर हो सकता है

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  • भारत के साथ इसी तरह अमेरिका में एक वैक्सीन बनाई गई है जिसका प्रयोग कोरोना मरीजों पर हो सकता है
  • फिलहाल चूहे पर प्रयोग किया गया है जिसने अच्छे नतीजे दिखाने शुरू किए हैं
  • चूहे पर प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने देखा कि कुछ दिनों बाद इसने ऐंटीबॉडीज तैयार कर लिए
  • ये ऐंटीबॉडीज किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने में काफी कारगर साबित होते हैं

अहमदाबाद. कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में अच्छी खबर है। देश में ही कोरोनावायरस की वैक्सीन का जानवरों पर प्रयोग शुरू हो गया है। नतीजे आने में 4 से 6 महीने का वक्त लगेगा। गुजरात की जायडस कैडिला कंपनी यह वैक्सीन बना रही है। इसी कंपनी ने 2010 में देश में स्वाइन फ्लू की सबसे पहली वैक्सीन तैयार की थी।

मार्च से ही वैक्सीन पर काम चल रहा है
मार्च में ही कंपनी ने सूचना दी थी कि हम कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन बना रहे हैं। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर शर्विल पटेल ने दैनिक भास्कर से बातचीत में पुष्टि की कि हम कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। वैक्सीन का ट्रायल समय लेने वाली प्रक्रिया होती है। हमें इसमें कामयाबी मिलने की उम्मीद है।

हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उत्पादन में दो कंपनियों की 80% भागीदारी
मलेरिया के इलाज में असरदार मानी जाने वाली हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन का भारत में सबसे ज्यादा उत्पादन इप्का लैबोरेटरीज और जायडस कैडिला करती है। फार्मा सेक्टर के जानकारों के अनुसार, भारत में हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन के कुल उत्पादन में इन दोनों कंपनियों की भागीदारी 80% से भी ज्यादा है। जायडस कैडिला हर महीने 20 टन हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन बना सकती है। सरकार ने मंगलवार को हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन समेत 28 दवाइयों के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ये प्रतिबंध हटाने के संदर्भ में बात की थी, ताकि अमेरिका को पर्याप्त दवाइयां मिल सकें।

कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भरता नहीं
चीन में कोरोनावायरस के चलते भारतीय फार्मास्यूटिकल्स इंडस्ट्री चिंतित है। वजह- कई कंपनियां कच्चे माल के लिए चीन पर बहुत हद तक निर्भर हैं। हालांकि, जायडस कैडिला के मैनेजिंग डायरेक्टर शर्विल पटेल बताते हैं कि हम चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं हैं। आमतौर पर हम 60 से 90 दिन की इन्वेंट्री के साथ चलते हैं। कोरोना के कारण हमारे लिए सप्लाई में कोई मुश्किल पेश नहीं आएगी।

भारतीय कंपनियां हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन का उत्पादन बढ़ाएंगी
सरकार ने दवा कंपनियों को हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उत्पादन और इसकी सप्लाई सुनिश्चित करने को कहा है। सरकार से हाईड्रोक्सीक्लोरोक्विन की 10 करोड़ टैबलेट बनाने का ऑर्डर जायडस और इप्का लैबोरेटरीज जैसी कंपनियों को दिया है। इतनी टैबलेट 50 से 60 लाख कोरोना मरीजों के इलाज के लिए काफी है। इसके अलावा होने वाला उत्पादन अमेरिका सहित अन्य देशों में निर्यात किया जा सकता है।

वही दूसरी तरफ एक और राहत वासी खबर अमेरिका से आ रही है। जहां अमेरिका कोरोना वायरस से बुरी तरह से पस्त है तो दूसरी तरफ उसके वैज्ञानिक दिनरात कोरोना का तोड़ ढूंढने में लगे हुए हैं। अब कोविड19 से जुड़ा एक वैक्सीन बनाया गया है जिसका प्रयोग फिलहाल चूहे पर किया गया है। इस प्रयोग के दौरान देखा गया है कि एक स्तर पर आकर यह नए कोरोना वायरस के खिलाफ एक इम्युनिटी तैयार कर लेता है जो कि कोरोना के संक्रमण से बचा सकता है।

ऐंटीबॉडीज ने दिखाई उम्मीद, अब इंसानों पर प्रयोग

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने गुरुवार को बताया कि जब इसका प्रयोग चूहे पर प्रयोग किया गया तो इस प्रोटोटाइप वैक्सीन ने दो सप्ताह के भीतर ऐंटीबॉडीज तैयार कर ली। इस वैक्सीन का नाम फिलहाल पिटकोवैक( PittCoVacc) रखा गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता हालांकि यह भी कहते हैं कि जानवरों पर लंबे समय तक नजर नहीं रखी जा सकी है तो यह कहना जल्दबाजी होगी कि कब तक उनमें इम्युनिटी बनी रहेगी। शोधकर्ताओं की टीम को भरोसा है कि अगले कुछ महीनों में इसका प्रयोग इंसानों पर किया जा सकेगा।

ब्लड प्लाज्मा का भी ले रहे सहारा
उधर, अमेरिका के डॉक्टर स्वस्थ हो चुके मरीजों के ब्लड प्लाज्मा के जरिये इलाज की कोशिश कर रहे हैं। यह पद्धति 100 साल पुरानी है जब 1906 में फ्लू के दौरान स्वस्थ हो चुके मरीज के ब्लड प्लाज्मा से बीमार मरीज का इलाज किया गया था। चूंकि अभी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन और दवाई मौजूद नहीं है इसलिए वे फिलहाल इस प्रयोग पर ध्यान दे रहे हैं। न्यूयॉर्क और अन्य शहरों में स्वस्थ्य हो गए कोरोना पेशंट गंभीर रूप से बीमार मरीजों की मदद के लिए अपना ब्लड डोनेट कर रहे हैं।

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