तबलीगी जमात के द्वारा कोरोना संक्रमण फैलाना नासमझी या कुछ और?

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नई दिल्ली। दिल्ली निजामुद्दीन मरकज की तबलीगी जमात का जन्म भारत में 94 साल पहले हुआ था। जो आज दुनियाभर में फैले हुए हैं। लाखों लोग इससे जुड़े हैं। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में अचानक ये जमात लोगों के लिए आफत बन गई है। जिसकी वजह है इस जमात में कुछ लोगों का विदेश से आकर शामिल हो जाना। ये लोग कोरोना संक्रमित थे लेकिन इस बारे में दिल्ली के जमातियों को कोई जानकारी नहीं थी।

लेकिन अब ये जमातिये कोरोना वायरस महामारी फैलाने वाले मुख्य कारक बन गये हैं। जिसकी वजह से पूरा देश उन्हें लापरवाह, गैर-जिम्मेदार और कोरोना को जानबूझ कर फैलाने की एक योजना बनाने वाला बता रहे हैं।

मरकज का क्या है उद्देश
मरकज में ऐसा क्या हुआ जो गैर-जिम्मेदाराना था जिसकी वजह से पूरा मरकज लोगों का दोषी हो गया। इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मरकज में जाने वाले एक बुजुर्ग बताते हैं कि मरकज का उद्देश कभी भी दूसरों को कष्ट देना नहीं रहा बल्कि समाज के लिए काम करना, एक अच्छा मुस्लिम बनना और अल्लाह में विश्वास रखना, सिखाता आया है। लेकिन आज अचानक सोशल मीडिया और मीडिया ने इसे समाज का विलन बना दिया है।

मरकज कौन ज्वाइन कर सकता है
वहीँ इस बारे में 22 साल के नॉएडा के रहने वाले बिहार से आए एक युवक ने बताया कि तबलीगी जमात को ज्वाइन करने के लिए कोई खास प्रक्रिया नहीं है। आप को कोई फॉर्म आदि नहीं भरना बस आपको कुछ सत्र ज्वाइन करने होते हैं, किताबें पढ़नी होती है, लोगों तक यह सभी ज्ञान कि बातें पहुंचानी होती हैं। और जमाती होने के लिए कुछ यात्रायें भी करनी होती हैं। यहां बस एक सत्यापन चाहिये होता है कि जो लोग आपके साथ हैं और जो भी आपके साथ नया जुड़ रहा है उसे समुदाय के लोग व्यक्तिगत रूप से जानते हो।

मरकज क्या सिखाता है
इस बारे में कई लोगों से बात की गई। लोगों ने बताया कि मरकज में जो कुछ हुआ वो किसी को पता नहीं था, किसी से कुछ भी जानबूझ कर नहीं किया। जबकि मरकज कभी ये सब सिखाता। मरकज एक बेहतर इंसान बनाना, अपने मुल्क, अपने समुदाय और अपने लोगों के लिए काम करना, सहयोग करना और बेहतरी में साथ देना सिखाता है। एक बाशिंदे को अपने धर्म और अपने परिवार से कैसे पेश आना है, कैसे तहजीब देनी है जैसी बातें मरकज में सिखाई जाती हैं।

कहां हुई चूक
दरअसल, मरकज के प्रबंधकों को इस बारे में सभी लोगों को जानकारी देनी चाहिए थी जो उनके द्वारा नहीं दी गई। जब उन्होंने कोरोना के प्रभाव और प्रसार के बारे में सुना होगा तो उन्हें ये सब अपने समुदाय के उन लोगों को भी बताना था जो मरकज में शामिल होने आए थे। वहीँ, लॉकडाउन से पहले ही कुछ लोग अन्य राज्यों में जा चुके थे और ये सभी बड़ी चूक साबित हुई। जबकि यहां प्रशासन को सचेत रहना चाहिए था।

मीडिया ने बदनाम किया
वहीँ इन सब की वजह से मीडिया मरकज को कोरोना बम, जेहादी, प्लानिंग आदि बोल कर देश भर में इस समुदाय के प्रति नफरत के बीज बो रही है। जबकि जो भी हुआ वो नासमझी से हुआ या उन लोगों की वजह से हुआ जो इसे होने से रोक सकते थे। लेकिन इसमें पूरे समुदाय को बदनाम करना और उन्हें “महामारी प्रसारक” कहना गलत है। यहां मीडिया की भूमिका ठीक किसी “वीच हंट यानि चुड़ैल के शिकारी” की तरह नजर आ रही है।

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