वाल्मीकि रामायण के अनुसार त्रेतायुग में चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को दोपहर में श्रीराम का जन्म हुआ था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार ये पर्व 2 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ ही भगवान हनुमान की भी पूजा की जाती है। श्रीराम भगवान विष्णु का सातवां अवतार हैं। ये बात रामायण के साथ ही लिंग, नारद और ब्रह्मपुराण में भी बताई गई है। रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। यही कारण है कि इस दिन श्रीराम के साथ-साथ मां दुर्गा की भी पूजा की जाती है।
चैत्र नवरात्र की समाप्ति का दिन
नौ दिन के चैत्र नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन राम नवमी है। इस पर्व को लोग भगवान राम के जन्म की खुशी के रूप में मनाते हैं, इस दिन भक्त रामायण का पाठ भी करते हैं। इस दिन को लेकर ऐसा माना जाता है कि बिना किसी मुहूर्त के सभी प्रकार के मांगलिक कार्य इस दिन संपन्न किए जा सकते हैं। इस महापर्व पर श्रीराम दरबार की पूजा की जाती है। जिसमें माता सीता, लक्ष्मण और हनुमानजी भी शामिल है। रामनवमी पर पारिवारिक सुख शांति और समृद्धि के लिये व्रत भी रखा जाता है।
वाल्मीकि रामायण में राम जन्म
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट्समत्ययु:।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ।।1.18.8।।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।1.18.9।।
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम्।
कौसल्याऽजनयद्रामं सर्वलक्षणसंयुतम्।।1.18.10।।
ये तीनों श्लाेक वाल्मीकि रामायण के बालकांड के 18 वें सर्ग के हैं। इनमें भगवान राम के जन्म से जुड़ी जानकारी दी गई है। बताया गया है कि चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में देवी कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त श्रीराम को जन्म दिया। यानी जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ, उस दिन की ग्रह-स्थिति का साफ-साफ जिक्र है। जिसमें बताया कि कर्क लग्न में श्रीराम का जन्म हुआ था और अन्य ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी थी –
सूर्य मेष राशि (उच्च स्थान) में।
शुक्र मीन राशि (उच्च स्थान) में।
मंगल मकर राशि (उच्च स्थान) में।
शनि तुला राशि (उच्च स्थान) में।
बृहस्पति कर्क राशि (उच्च स्थान) में।
चंद्रमा पुनर्वसु से पुष्य नक्षत्र की और बढ़ रहा था।
व्रत और पूजा विधि
- रामनवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई कर के नहाकर व्रत का संकल्प करना चाहिए। घर, पूजाघर या मंदिर को ध्वजा, पताका और बंदनवार आदि से सजाया जा सकता है। इसके साथ ही घर के आंगन में रंगोली भी बनाई जाती है।
- रामनवमी की पूजा में पहले राम दरबार यानी सभी देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है। इसके बाद मूर्तियों पर अक्षत चढ़ाएं जाते हैं। फिर सभी सुगंधित पूजन सामग्री चढ़ाने के बाद आरती की जाती है। इसके बाद श्रीराम जन्मकथा सुननी चाहिए। जिस समय व्रत कथा सुनें उस समय हाथ में गेंहू या बाजरा आदि अन्न के दाने रखें और कथा पूरी होने के बाद उनमें और अनाज मिलाकर आर्थिक क्षमता व श्रद्धानुसार दान करें।
- रामनवमी पर पूजा के लिये पूजा सामग्री में रोली, चंदन, चावल, स्वच्छ जल, फूल, घंटी और शंख के साथ श्रद्धा अनुसार अन्य पूजन सामग्री भी ले सकते हैं।
- रामनवमी पूजा में भगवान राम और माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों पर जल चढ़ाएं। इसके बाद चंदन एवं रोली अर्पित करें।
- फिर चावल और फूल चढाएं एवं अन्य सुगंधित पूजन सामग्री भी चढ़ाएं।
- इसके बाद भगवान को धूप-दीप समर्पित करें।
- फिर भगवान राम की आरती, रामचालीसा या राम रक्षास्तोत्र का पाठ करें।
- इसके बाद आरती करें एवं नैवेद्य लगाकर उसका प्रसाद चढ़ाएं।
- आरती के बाद पवित्र जल को आरती में सम्मिलत सभी जनों पर छिड़कें।
रामनवमी पूजा के शुभ मुहूर्त
नवमी तिथि प्रारंभ – 2 अप्रैल, सुबह 4.05 पर
नवमी तिथि समाप्त – 3 अप्रैल, रात 2.50 तक
सुबह 06.20 से 7.40 तक
सुबह 11.10 से दोपहर 1.40 तक
शाम 5.10 से 6.30 तक