Good News: अमेरिका ने माना, भारत में इसलिए नहीं होगा कोरोना वायरस का ज्‍यादा असर

अमेरिका (US) के एक शोध में दावा किया गया है कि टीबी (TB) टीकाकरण वाले देशों में कोरोना वायरस (Coronavirus) से मौतों के मामले काफी कम होंगे. अच्‍छी बात है कि भारत में 1962 में नेशनल टीबी प्रोग्राम के तहत बीसीजी टीकाकरण शुरू कर दिया गया था. आज भारत की बहुसंख्यक आबादी को यह टीका लग चुका है.

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दुनिया भर में हर दिन बढ़ते कोरोना वायरस (Coronavirus) के मामलों के बीच वैज्ञानिकों को इससे बचाव को लेकर उम्‍मीद की किरण नजर आई है. अमेरिका (US) के न्‍यूयॉर्क इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (NIT) के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस के एक शोध में दावा किया गया है कि जिन देशों में टीबी (TB) की रोकथाम के लिए बच्‍चों को बेसिलस कामेट गुएरिन यानी बीसीजी (BCG) का टीका लगाया जाता है, उनमें कोरोना वायरस से मौतों के मामले काफी कम होंगे. अब अगर अमेरिकी वैज्ञानिकों के इस शोध को भारत (India) के मामले में समझें तो देश में 1962 में नेशनल टीबी प्रोग्राम शुरू कर दिया गया था. इसका मतलब है कि भारत की बहुसंख्यक आबादी को यह टीका लग चुका है. इस टीके को बच्‍चे के जन्‍म से लेकर 6 महीने के भीतर लगा दिया जाता है.

सांस से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम करता है बीसीजी का टीका

दुनिया में सबसे पहली बार 1920 में टीबी की रोकथाम के लिए लगाया जाने वाला बीसीजी टीका सांस से जुड़ी बीमारियों की भी रोकथाम करता है. ब्राजील (Brazil) में 1920 से तो जापान (Japan) में 1940 से इस वैक्‍सीन का इस्‍तेमाल किया जा रहा है. इस टीके में इंसानों में फेफड़ों की टीबी का कारण बनने वाले बैक्‍टीरिया की स्ट्रेन्स होती हैं. इस स्ट्रेन का नाम मायकोबैक्टिरियम बोविड है. टीका बनाने के दौरान एक्टिव बैक्टीरिया की ताकत घटा दी जाती है ताकि ये स्वस्थ इंसान में बीमारी न फैला सके. इसके अलावा वैक्सीन में सोडियम, पोटेशियम व मैग्नीशियम साल्ट, ग्लिसरॉल और साइट्रिक एसिड होता है. ब्रिटेन के मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस शोध की रिपोर्ट सामने आने के बाद दुनिया भर में COVID-19 के खिलाफ इस वैक्‍सीन के क्‍लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिए गए हैं.

वायरस से मुकाबला नहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता करता है मजबूत
मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं का कहना है कि ये बीसीजी वैक्‍सीन वायरस से सीधा मुकाबला नहीं करती है. ये वैक्‍सीन बैक्टीरिया से मुकाबले के लिए इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत कर देता है. इससे शरीर बैक्‍टीरिया का हमला आसानी से सहन कर लेता है. स्टडी के मुताबिक कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौत के मामले उन देशों में ज्‍यादा हैं, जहां बीसीजी टीका की पॉलिसी या तो नहीं है या बंद कर दी गई है. स्‍पेन (Spain), इटली (Italy), अमेरिका (US), लेबनान, नीदरलैंड और बेल्जियम में बीसीजी टीकाकरण नहीं होता है. इन देशों में संक्रमण और मौतों के मामले बहुत ज्‍यादा हैं. इसके उलट भारत, जापान, ब्राजील में बीसीजी टीकाकरण होता है. इन तीनों ही देशों में अब तक कोरोना संक्रमण और मौतों के मामले कम हैं. यहां ये भी बता दें कि चीन में भी बीसीजी टीकाकरण होता है, लेकिन कोरोना की शुरुआत यहींं से होने के कारण शोध में इसे अपवाद माना गया है.

अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण नहीं होता, उनमें मरने वालों की सख्‍या ज्‍यादा रहेगी.

बीसीजी टीकाकरण वाले देशों में संक्रमण का खतरा 10 गुना कम
वैज्ञानिकों ने अध्‍ययन में पाया कि बीसीजी टीकाकरण से वायरल इन्फेक्शन और सेप्सिस जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है. इसी आधार पर वैज्ञानिक मान रहे हैं कि कोरोना से जुड़े मामलों में बीसीजी टीकाकरण की अहम भूमिका रहेगी. अलग-अलग देशों से मिले आंकड़ों और उनके हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्‍यान देने के बाद वैज्ञानिक ने निष्‍कर्ष निकाला कि बीसीजी टीकाकरण वाले देशों में कोरोना फैलने का खतरा 10 गुना कम है. ईरान में 1984 में बीसीजी का टीका लगना शुरू हुआ. इससे ये माना जा रहा है कि ईरान में 36 साल तक की उम्र के लोगों को टीका लगा हुआ है, लेकिन बुजुर्गों को यह टीका नहीं लगा है. इस वजह से उनमें कोरोना का खतरा ज्यादा है. वहीं, जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण नहीं हुआ है, वहां कोरोना फैलने का खतरा 4 गुना ज्यादा है.

कई देशों ने बीसीजी वैक्‍सीन के ह्यूमन ट्रायल की घोषणा की
वैज्ञानिकों ने ये भी साफ किया है कि इन निष्‍कर्षों को 100 फीसदी सटीक मान लेना जल्दबाजी होगी. हो सकता है कि बीसीजी कोरोनावायरस से लंबे समय तक सुरक्षा दे, लेकिन इसके लिए परीक्षण करने होंगे. यह स्टडी सामने आने के बाद ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, जर्मनी और ब्रिटेन ने कोरोनावायरस के मरीजों की देखभाल कर रहे स्‍वास्‍थ्‍यकर्मियों को बीसीजी का टीका लगाकर ह्यूमन ट्रायल शुरू करने की घोषणा कर दी है. ये देश पहले यह देखेंगे कि क्या बीसीजी टीके से स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों की रोग प्रतिरोध क्षमता मजबूत होती है? ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि वह देश के 4000 डॉक्टरों, नर्सों और बुजुर्गों पर बीसीजी का ट्रायल शुरू करेगा. बता दें कि भारत में बीसीजी टीकाकरण 1948 में शुरू किया गया थाा. इसके बाद 1949 में देश के स्‍कूलों में जा-जाकर स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों ने बच्‍चों को ये टीका लगाया था. वहीं, 1962 में बकायदा नेशनल टीबी प्रोग्राम चलाया गया थाा. इस लिहाज से देश की बडी आबादी का बीसीजी टीकाकरण हो चुका है.

Coronavirus

भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत में मिला कोरोना वायरस सिंगल स्पाइक है और ये इंसानी कोशिकाओं को ज्यादा मजबूती से नहीं पकड़ पाएगा. वहीं, इटली, स्‍पेन और अमेरिका में वायरस ट्रिपल स्‍पाइक्‍स है.

भारत में मिला वायरस इंसान को मजबूती से जकड़ नहीं पाएगा
वैज्ञानिको यह भी मानना है कि भारत में फैला कोरोनावायरस ज्यादा घातक साबित नहीं होगा. भारत में मिले वायरस के स्ट्रेन और इटली, स्‍पेन व अमेरिका में मिले स्‍ट्रेन में अंतर है. भारतीय वैज्ञानिकों की शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मिला वायरस सिंगल स्पाइक है, जबकि इटली, चीन और अमेरिका में मिले वायरस में ट्रिपल स्पाइक हैं. आसान शब्‍दों में समझें तो भारत में फैला कोरोना वायरस इंसानी कोशिकाओं को ज्यादा मजबूती से नहीं पकड़ पाएगा. वहीं, ट्रिपल स्पाइक वाला वायरस कोशिकाओं को मजबूती से जकड़ता है. हालांकि, इससे ये नहीं माना जा सकता कि भारत इस वायरस से बचा ही रहेगा. भारत में कुपोषण बडी समस्‍या है. वहीं, आबादी का बड़ा हिस्सा डायबिटीज, हाइपरटेंशन, किडनी की बीमारियों से परेशान है. ऐसे लोगों में संक्रमण का खतरा ज्‍यादा रहता है.

संक्रमण के कारण हुई मौतों के आंकड़ों से भी मिल रहा संकेत
मौतों के आंकड़ों के आधार पर इसे समझें तो इटली, स्पेन और अमेरिका में संक्रमितों की संख्या सबसे ज्‍यादा है. इटली और स्पेन में मौतें भी सबसे ज्‍यादा हो रही हैं. स्पेन में जहां 8 हजार से ज्‍यादा तो स्पेन में 11 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. जर्मनी में अब तक 68,180 लोग संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें 682 की मौत हो चुकी है. नीदरलैंड में 12,595 लोग संक्रमित हुए हैं और 1,039 की मौत हो चुकी है. वहीं, ब्रिटेन में 25,150 संक्रमितों में 1,789 लोगों की मौत हुई है. इसके उलट ब्राजील में अब तक 4,000 से ज्‍यादा संक्रमित हैं और 165 की मौत हुई है. भारत में अब तक 1,397 लोग संक्रमण की चपेट में आए हैं, जिनमें 35 की मौत हुई है. वहीं, जापान में अब तक 1,953 पॉजिटिव मामले ही सामने आए हैं. इनमें 56 लोगों की मौत हुई है, जबकि यहां की बड़ी आबादी इटली से भी ज्‍यादा उम्रदराज है.

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