- 3 मार्च को दिग्विजय के भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप के साथ सियासी उठापटक की शुरुआत हुई थी
- उनके बयान के ठीक एक हफ्ते बाद कमलनाथ सरकार के 6 मंत्रियों समेत 22 विधायकों ने इस्तीफे दिए थे
भोपाल. मध्यप्रदेश में 17 दिन से चल रही सियासी उठापटक पर शुक्रवार को विराम लग गया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्यपाल को इस्तीफा दे दिया है। इस सियासी उठापटक की शुरुआत दिग्विजय सिंह के ट्वीट से हुई थी। 10 मार्च को सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही, कमलनाथ सरकार में सिंधिया गुट के 6 मंत्रियों समेत 22 विधायकों ने भी इस्तीफे दिए। इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप लगे, सरकार बनाने-गिराने के समीकरण बनते-बिगड़ते रहे। जानिए इन 17 दिनों में क्या कुछ हुआ…
3 मार्च: दिग्विजय का भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप
दिग्विजय ने शिवराज और नरोत्तम मिश्रा पर कांग्रेस विधायकों को 25 से 35 करोड़ तक का ऑफर देने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि उनके पास सबूत हैं। वह बिना तथ्यों के आरोप नहीं लगाते। दिग्विजय के बयान पर शिवराज सिंह चौहान ने पलटवार करते हुए कहा था कि झूठ बोलना दिग्विजय की पुरानी आदत है।
4 मार्च: कमलनाथ ने साधा भाजपा पर निशाना
कमलनाथ ने भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि सभी माफिया 15 साल के भाजपा सरकार के कार्यकाल में पनपे हैं। उनका विश्वास साजिश, षड्यंत्र और धनबल में है। भाजपा को हर बार मुंह की खानी पड़ी। इस बार भी भाजपा के मंसूबे ‘मुंगेरीलाल के सपने’ की तरह साबित होंगे।
5 मार्च: भाजपा का ‘ऑपरेशन लोटस’ फेल
सरकार में शामिल 11 विधायक गुड़गांव के आईटीसी मराठा होटल पहुंचे। बुधवार रात तक 6 विधायक भोपाल वापस लौट आए, 5 विधायकों की लोकेशन पता नहीं मिली। इस दौरान चर्चा थी कि एक विधायक के गनमैन की गलती से भाजपा का पूरा ऑपरेशन फेल हो गया। गनमैन से दिल्ली में कांग्रेस विधायकों के एकत्रित होने की खबर लीक हो गई। कांग्रेस को ‘ऑपरेशन लोटस’ फेल करने का वक्त मिल गया।
6 मार्च: कमलनाथ ने कैबिनेट बैठक ली
दिग्विजय मुख्यमंत्री कमलनाथ से मिलने उनके आवास पहुंचे। कांग्रेस विधायक हरदीप सिंह डंग के इस्तीफे के बाद पार्टी की रणनीति पर चर्चा की। इसके बाद ही कमलनाथ ने सभी विधायकों को भोपाल बुलाया और उन्हें राजधानी न छोड़ने की हिदायत दी। सीएम के अवास पर ही कैबिनेट की मीटिंग भी बुलाई गई। इसमें बसपा विधायक रामबाई भी मौजूद थीं। बैठक में मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा की गई। उधर, दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के आवास पर मध्य प्रदेश को लेकर भाजपा नेताओं की बैठक की। इसमें शिवराज सिंह चौहान, नरोत्तम मिश्रा मौजूद रहे।
7 मार्च: मंत्री सिसोदिया के बयान पर सिंधिया को लेकर सुगबुगाहट
कमलनाथ सरकार में मंत्री पीसी शर्मा ने प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार बजट सत्र के बाद होने की बात कही। लेकिन, कांग्रेस के बागी और निर्दलीय विधायक मंत्रिमंडल का विस्तार होली के बाद और बजट सत्र से पहले चाहते थे। विधायकों का कहना था कि उनसे मीटिंग में बात कुछ और की जाती रही और मंत्री बाहर अलग तरह की बात करते रहे। इस सब पर ज्योतिरादित्य सिंधिया खामोश रहे। इसी बीच सिंधिया गुट के प्रदेश सरकार में शामिल मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने कहा कि अगर हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा या अनादर होता है तो सरकार पर जरूर संकट आ सकता है। इसके बाद से ही सिंधिया की पार्टी से नाराजगी और राजनीतिक सुगबुगाहट तेज हो गई।
8 मार्च: भोपाल लौटे मंत्री बिसाहू बोले- तीरथ गया था
बेंगलुरू में ठहरे तीन कांग्रेसी विधायकों में से एक बिसाहूलाल सिंह रविवार को भोपाल लौटे। उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ से मुलाकात की और इसके बाद कहा- वह तो तीरथ करने गए थे। उन्हें किसी ने बंधक नहीं बनाया था। वह कांग्रेस में ही रहेंगे। जब मीडिया ने उनसे पूछा कि बेंगलुरू में आपके साथ विधायक हरदीप सिंह डंग और रघुराज कंसाना भी थे? तो बिसाहू चुप्पी साध गए। बसपा विधायक रामबाई भी दोबारा दिल्ली चली गईं। उन्होंने इसकी वजह बेटी की तबीयत खराब होना बताया। इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ भी दिल्ली पहुंचे।
9 मार्च: सिंधिया खेमे के विधायक लापता हुए
कमलनाथ ने दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की। कमलनाथ ने कहा था- कांग्रेस में कोई अंदरुनी कलह नहीं। सभी विधायक लौट आए और उन्होंने बताया कि वह तीर्थयात्रा पर गए थे। वहीं, दोपहर को खबर आई कि सिंधिया खेमे के विधायक और कुछ मंत्री भी भूमिगत हो गए, जिनसे संपर्क नहीं हो पा रहा था। मंत्रियों में श्रममंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया और तुलसी सिलावट शामिल थे।
10 मार्च: सिंधिया का इस्तीफा, 19 विधायकों ने छोड़ी पार्टी
ज्योतिरादित्य ने होली के दिन इस्तीफे की पेशकश करते हुए पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी। 20 मिनट बाद कांग्रेस ने सिंधिया को पार्टी से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद सिंधिया समर्थक 19 विधायकों ने हाथ से लिखा इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया। इससे पहले सिंधिया अमित शाह से मिलने दिल्ली के गुजरात भवन पहुंचे थे। सुबह 11 बजे वह प्रधानमंत्री से मिले थे। उनके इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी ने दिल्ली में अपने आवास पर आपात बैठक बुलाई। भोपाल में मुख्यमंत्री आवास पर बाला बच्चन, हुकुम सिंह कराड़ा, सज्जन सिंह वर्मा समेत कई मंत्री सीएम से मिलने पहुंचे। 12 बजे भोपाल में भाजपा मुख्यालय में बैठक हुई। इसमें शिवराज सिंह चौहान, पार्टी अध्यक्ष वीडी शर्मा और विनय सहस्त्रबुद्धे शामिल हुए। शाम 6 बजे भोपाल में कमलनाथ के आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई। इस बैठक में 94 विधायकों ने हिस्सा लिया। इनमें 90 कांग्रेस के और 4 निर्दलीय विधायक थे। इधर, शाम में खबर आई की भाजपा ने अपने विधायकों को भोपाल के बाहर भेज दिया है। इसके बाद कांग्रेस ने भी अपने विधायकों को जयपुर रवाना कर दिया।
11 मार्च: सिंधिया भाजपा में शामिल हुए
ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। सिंधिया के इस्तीफे के 24 घंटे बाद राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि जब आप (मोदी सरकार) कांग्रेस की चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने में व्यस्त हैं, तब यह देखने में चूक गए कि दुनिया में तेल की कीमतों में 35% की गिरावट आई है। क्या आप पेट्रोल की कीमतों को 60 रुपए प्रति लीटर कर देश के लोगों को राहत दे सकते हैं? इससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।’
12 मार्च: बागी विधायकों को मनाने बेंगलुरु पहुंचे जीतू
मंत्री जीतू पटवारी बागी विधायकों को मनाने बेंगलुरु पहुंचे। वहां की पुलिस ने उन्हें और लाखन सिंह को हिरासत में ले लिया। पुलिस और पटवारी में धक्कामुक्की भी हुई। पटवारी ने हिरासत से छूटने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा- क्या दोस्तों से मिलना गुनाह है? यहां पर मेरे चचेरे भाई मनोज चौधरी को भी रखा गया है। मैं अपने भाई से यहां मिलने आया, लेकिन हमें रोका गया। विधायकों के फोन तक छीन लिए गए हैं। वहीं, सिंधिया के भाजपा में जाते ही आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने 6 साल पुरानी शिकायत पर फिर जांच शुरू कर दी गई। फर्जी दस्तावेजों से जमीन बेचने की ये शिकायतें 9 मई 2018 को शिवराज सरकार के कार्यकाल में जांच के बाद बंद कर दी गईं थी।
13 मार्च: भोपाल आते-आते वापस रिजॉर्ट लौटे विधायक
विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति द्वारा दिए गए नोटिस का जवाब देने के लिए सिंधिया समर्थक 19 विधायक भोपाल आने की तैयारी में थे। सीएम कमलनाथ राज्यपाल से मिले और भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया। संयोग था या रणनीति का हिस्सा कि भाजपा अध्यक्ष नड्डा भी बेंगलुरु पहुंचे। तीन घंटे बेंगलुरु एयरपोर्ट पर बैठने के बाद विधायकों को देर शाम वापस रिजॉर्ट लौटना पड़ा। बेंगलुरु में जमे सिंधिया समर्थक 6 मंत्रियों गोविंद सिंह राजपूत, तुलसीराम सिलावट प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, डॉ. प्रभुराम चौधरी और इमरती देवी को राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री की सिफारिश पर मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। नाथ ने इनके विभागों का बंटवारा भी कर दिया। जीतू पटवारी, कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के साथ विधायक मनोज चौधरी के पिता नारायण चौधरी को लेकर कर्नाटक डीजीपी से मिले। चौधरी ने बेटे से मिलवाने की मांग की। उन्हें मदद का भरोसा देकर रवाना कर दिया गया।
14 मार्च: सिंधिया समर्थक 6 विधायकों के इस्तीफे मंजूर
शनिवार शाम विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापित ने सिंधिया समर्थक 6 पूर्व मंत्रियों के इस्तीफे मंजूर कर लिए। पहले मंत्री पद गया और अब ये 6 विधायक भी नहीं रह गए। इसके बाद मध्य रात्रि राज्यपाल लालजी टंडन ने फ्लोर टेस्ट की तारीख तय कर दी। उन्होंने बजट सत्र के पहले दिन 16 मार्च को ही फ्लोर टेस्ट के निर्देश दिए।
15 मार्च: कांग्रेस और भाजपा विधायक भोपाल लौटे
कांग्रेस के सभी विधायक रविवार दोपहर जयपुर से लौट आए। देर रात करीब 2 बजे भाजपा के विधायक भी गुरुग्राम से वापस आ गए। इसके पहले भाजपा ने विधानसभा में बटन दबाकर मतदान की सुविधा न होने पर हाथ उठाकर ही बहुमत का निर्णय करने की मांग की, जिसे राज्यपाल ने मान लिया। इसी बीच खबर आई कि कांग्रेस के बागी विधायकों को बेंगलुरु से भोपाल लाने के लिए 3 चार्टर्ड प्लेन तैयार खड़े हैं। सिंधिया का इशारा मिलते ही विधायक कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए उड़ान भरेंगे। विधानसभा में फ्लोर टेस्ट नहीं होने की रणनीति के जवाब में इन विधायकों की राजभवन में परेड कराई जा सकती है।
16 मार्च: फ्लोर टेस्ट टला, सदन स्थगित
विधानसभा में सोमवार को गवर्नर ने एक मिनट में अभिभाषण का सिर्फ आखिरी पैरा पढ़ा और इसके 15 मिनट बाद ही अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कोरोनावायरस का हवाला देते हुए 26 मार्च तक के लिए सदन स्थगित कर दिया। फ्लोर टेस्ट टल गया। शाम करीब 4 बजे राज्यपाल लालजी टंडन ने कमलनाथ को पत्र लिखा। इसमें उन्हें 24 घंटे का अल्टिमेटम देते हुए 17 मार्च को ही फ्लोर टेस्ट कराने को कहा गया। उधर, पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और 10 भाजपा विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 12 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की।
17 मार्च: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, चला पत्रों का दौर
प्रदेश सरकार और विपक्ष के बीच जारी सियासी द्वंद्व मंगलवार को और दिलचस्प हो गया। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। कोर्ट ने विपक्ष की 12 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराने की मांग पर विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति और सीएम कमलनाथ को नोटिस जारी कर बुधवार सुबह जवाब देने के निर्देश दिए। इसके बाद कमलनाथ का राज्यपाल लालजी टंडन को लिखा दूसरा पत्र सामने आया। इसमें सीएम ने सोमवार रात लिखे गए पहले पत्र पर खेद व्यक्त करते हुए राज्यपाल को जवाब दिया और लिखा- आपने कहा कि 17 मार्च तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने पर यह माना जाएगा कि मुझे वास्तव में बहुमत नहीं है, आपकी यह बात आधारहीन और असंवैधानिक है। इससे पहले शिवराज ने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार के अल्पमत में होने की बात रखी।
18 मार्च: बेंगलुरु में दिग्विजय का धरना
दिग्विजय सिंह 16 बागी विधायकों से मिलने के लिए बेंगलुरु पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रिजॉर्ट के बाहर ही रोक लिया। नाराज दिग्वजिय वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस ने उन्हें व कांग्रेस के अन्य नेताओं को करीब सवा घंटे तक हिरासत में रखा। इसके बाद वह भूख हड़ताल पर बैठ गए। बागियों से मुलाकात के लिए उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगाई, जो खारिज हो गई।
19 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दिए
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए फैसले से मध्य प्रदेश की सियासत में 17 दिन से मचे घमासान के थमने के संकेत मिले। सुबह 10.30 बजे से शाम 6.08 बजे तक तीन चरणों में जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने सुनवाई कर स्पीकर को 20 मार्च की शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश दिए। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग न हो, इसके लिए फ्लोर टेस्ट कराना बहुत जरूरी है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक साल तीन महीने तक सरकार चलाने के बाद शुक्रवार को इस्तीफा दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन कमलनाथ के इस्तीफे के बाद अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। उनके इस्तीफे के साथ ही भाजपा के लिए सरकार बनाने का दावा पेश करने का रास्ता साफ हो गया है। 5 पॉइंट में जानिए, मध्यप्रदेश में अब आगे क्या होेने वाला है?
1. भाजपा सरकार बनाने की तैयारी करेगी
कमलनाथ के इस्तीफे के बाद अब दो स्थितियां होंगी। पहली- राज्यपाल मौजूदा स्थिति में सबसे बड़े दल भाजपा से सरकार बनाने का दावा पेश करने को कह सकते हैं। भाजपा इसे स्वीकार कर सरकार बना सकती है। दूसरी- राज्यपाल के कहने से पहले ही भाजपा सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है। वह विधायकों की दोबारा परेड करा सकती है और समर्थन पत्र सौंप सकती है।
2. सरकार बनाने के बाद भाजपा को बहुमत साबित करना होगा
भाजपा सरकार बना लेती है, तब भी उसे विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा। पिछले साल महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के बाद उद्धव ठाकरे ने विधायकों के समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद भी उन्हें विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से गुजरना पड़ा, जिसमें वे जीत गए। कर्नाटक में भी 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा बनी। राज्यपाल ने सबसे बड़े दल भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाया और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने। 6 दिन बाद ही येदियुरप्पा ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया।
3. शिवराज रिकॉर्ड चौथी बार सीएम बन सकते हैं, उनके पास पौने चार साल सरकार चलाने का मौका
भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार शिवराज सिंह चौहान ही हैं। वे 2005 से 2018 तक लगातार 13 साल सीएम रह चुके हैं। इस दौरान उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे फिर सीएम बनते हैं तो ये मध्यप्रदेश के इतिहास में पहला मौका होगा, जब कोई चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा। शिवराज के अलावा अब तक अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल तीन-तीन बार सीएम रहे हैं।
4. छह महीने के अंदर 25 सीटों पर उपचुनाव होंगे
विधानसभा में 230 सीटें हैं। दो विधायकों के निधन के बाद पहले से 2 सीटें खाली हैं। सिंधिया समर्थक कांग्रेस के 22 विधायक बागी हो गए थे। इनमें 6 मंत्री भी थे। स्पीकर एनपी प्रजापति इन सभी के इस्तीफे मंजूर कर चुके हैं। शुक्रवार सुबह स्पीकर ने कहा, ‘‘भाजपा विधायक शरद कोल ने भी इस्तीफा दिया था, जिसे मंजूर किया जा चुका है।’’ इस तरह कुल 25 सीटें अब खाली हैं। इन पर 6 महीने में चुनाव होने हैं।
5. उपचुनाव में भाजपा को कम से कम 10 सीटें जीतनी होंगी
- भाजपा के पास 106 विधायक हैं। 4 निर्दलीय उसके समर्थन में आए तो भाजपा+ की संख्या 110 हो जाती है। 25 सीटों पर उपचुनाव होने पर भाजपा को बहुमत के लिए 6 और सीटों की जरूरत होगी। अगर निर्दलीयों ने भाजपा का साथ नहीं दिया तो उपचुनाव में पार्टी को 10 सीटें जीतनी होंगी।
- कांग्रेस को निर्दलियों के साथ रहने पर उपचुनाव में 17 और निर्दलियों के पाला बदलने पर 21 सीटें जीतनी होंगी। अगर निर्दलीय के साथ-साथ सपा-बसपा ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया तो उसे सत्ता में वापसी के लिए सभी 24 सीटें जीतनी होंगी।
- कांग्रेस के 22 बागी विधायक जिन सीटों से जीते थे, उनमें से 20 पर भाजपा दूसरे नंबर पर थी। 11 सीटों पर जीत-हार का अंतर 10% से भी कम था। ये 22 बागी विधायक मध्य प्रदेश के 14 जिलों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इनमें से 15 सिंधिया के गढ़ ग्वालियर-चंबल से विधायक बने थे।