मध्य प्रदेश के बाद अब पंजाब के विधायकों में भी दिखने लगा अंतर्कलह, कांग्रेस की बढ़ी टेंशन

पंजाब में कांग्रेस विधायकों के एक गुट का कहना है कि न तो राज्य में नशे का खात्मा हुआ है और न ही किसानों की स्थिति में किसी तरह का कोई बदलाव देखने को मिला है.

चंडीगढ़. मध्य प्रदेश की राजनीति में सोमवार शाम से शुरू हुए सियासी उथल-पुथल के बीच कांग्रेस के लिए अब पंजाब से खतरे घंटी बजती दिखाई दे रही है. पंजाब के कई विधायक और मंत्री सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से नाखुश बताए जा रहे हैं. साल 2017 में जिन मुद्दों के सहारे कांग्रेस ने राज्य में सत्ता हासिल की थी, तीन साल बाद वही मुद्दे अब कैप्टन सरकार को परेशानी में डाल रहे हैं. हालात ये हैं कि राज्य सरकार को विपक्ष के साथ अब उनके विधायक और नेता भी घेरने में लगे हुए हैं.

पंजाब में कांग्रेस विधायकों के एक गुट का कहना है कि न तो राज्य में नशे का खात्मा हुआ है और न ही किसानों की स्थिति में किसी तरह का कोई बदलाव देखने को मिला है. यहां तक की सरकार कर्ज के बोझ से दब गई है, जिसके कारण अमरिंदर सिंह के विधायक काफी नाराज दिखाई दे रहे हैं. यही नहीं अब सरकार में शामिल नेताओं ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है.
गौरतलब है कि राज्य की स्थिति के लेकर पंजाब के पूर्व निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर इस बारे में बात की थी. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच इस कदर खटास बढ़ गई थी कि वह काफी दिनों तक पंजाब की राजनीति से दूर रहे. पंजाब के राज्यसभा सांसद और पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा भी कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार पर हमला बोल चुके हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि पंजाब में फैले ड्रग्स माफियाओं को लेकर हाईकोर्ट में जो रिपोर्ट सौंपी गई है उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए. उन्होंने इस मामले में केंद्र और पंजाब सरकार द्वारा कोई एक्शन नहीं लेने का भी आरोप लगाया.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर पहले भी ये आरोप लगते रहे हैं कि उनकी सरकार के विधायक और मंत्रियों का जनता के साथ कोई सीधा संपर्क नहीं है. अमरिंदर सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर विधायक पहले ही असंतोष जता चुके हैं. पंजाब में जिस तरह के हालात है उससे विधायकों में काफी रोष दिखाई दे रहा है.

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से अकसर उनके विधायक और मंत्री इसलिए नाराज रहते हैं कि वह उनसे मिलते नहीं। खासतौर पर अब और मुश्किल हो गया है, जब से कैप्टन ने अपना नया आवास सिसवां-बद्दी रोड पर बना लिया है। यहां तक कि अब तो कैप्टन सरकारी बैठकें और कैबिनेट की मीटिंग भी वहीं करने लगे हैं, लेकिन कुछ दिन पहले जब उन्होंने अपनी पार्टी के सभी विधायकों और मंत्रियों को रात्रि भोज पर बुलाया तो उनके पास ज्यादा नहीं बैठे और जल्दी अपने बेडरूम में चले गए। सभी हैरान थे कि ऐसा क्यों हुआ? पता चला है कि कैप्टन इस बात से नाराज थे कि कई विधायक नहीं आए। पहली बार ऐसे हुआ कि दो दर्जन के लगभग विधायक मंत्रियों ने कैप्टन के डिनर से दूरी बनाई। आखिर विधायक करें भी क्या? जो वादे उन्होंने लोगों से किए हैं, वह पूरे नहीं हो रहे, आखिर उन्हें तो जवाब देना ही है?

सब ठीक नहीं

कांग्रेस पार्टी में इन दिनों सब ठीक नहीं है। विधायक और मंत्री तो कैप्टन से नाराज हैं ही, हाईकमान भी खासी नाराज है, लेकिन दिक्कत यह है कि कैप्टन के सामने खड़े होने की हिम्मत किसी में नहीं है। सभी एक-दूसरे के कंधों पर बंदूक रखकर चलाने में लगे हुए हैं। राज्य के दो बड़े नेताओं में से एक ने हाल ही में दूसरे को फोन किया। इनकी प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं है। दोनों नेताओं में मीटिंग हुई कि नहीं, इसके बारे में पुख्ता जानकारी तो नहीं मिली, लेकिन इस बात की चर्चा जरूर छिड़ गई है कि सभी लोग हाईकमान पर इस बात का दबाव बनाएं कि आने वाले दो साल में अगर बड़े अकाली नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई या रेत, केबल, ट्रांसपोर्ट माफिया पर नकेल नहीं कसी गई तो लोगों के बीच जाना मुश्किल हो जाएगा।

किस करवट बैठेगा ऊंट

दिल्ली स्थित पंजाब भवन में कमरे लेने का मामला विधानसभा में लगातार दो दिन तक गूंजता रहा। स्पीकर राणा केपी सिंह ने इस मामले में मुख्य सचिव करण अवतार सिंह को भी तलब किया है। उधर, अपने चीफ सेक्रेटरी के तलब होने से अफसरशाही भी नाराज हो गई है। उन्होंने भी साफ कर दिया है कि सिस्टम से बढ़कर कोई नहीं है। पंजाब भवन में कमरे लेने के लिए ऑनलाइन अप्लाई करना पड़ता है। अगर कमरे खाली नहीं हैं तो सिस्टम में आवेदन रिजेक्ट हो जाता है, जबकि दूसरी ओर विधायकों का कहना है कि जब भी उन्हें कमरे चाहिए हों तो तत्काल मिलने चाहिए। उनका असल में मलाल चीफ सेक्रेटरी और एडवोकेट जनरल के परमानेंट फिक्स को लेकर है। अब देखने वाली बात यह होगी कि अगर स्पीकर ने मुख्य सचिव पर कोई कार्रवाई की तो कर्मचारी क्या रुख अपनाएंगे। देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है।

सवाल विधायकों, अफसरों का

सुखना लेक के कैचमेंट एरिया में आने वाले निर्माण कार्यो को गिराने का पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने जो आदेश दिया है, उससे वहां रहने वाले कई लोगों की नींद उड़ी हुई है। मुख्यमंत्री ने अपने चीफ प्रिंसिपल सेक्रेटरी के अधीन एक कमेटी बना दी है, जो इस फैसले का अध्ययन करेगी। अब सवाल यह है कि कमेटी का गठन क्यों? अगर ये सभी निर्माण कार्य उन जगहों पर बने हैं, जहां इसकी इजाजत नहीं थी तो ऐसा किया क्यों गया? जब हो रहा था तब रोका क्यों नहीं गया? दूसरा, जब अवैध कॉलोनियां गिराने का आदेश आता है तो क्या उन्हें बचाने के लिए इस तरह की कमेटियों का गठन होता है। दरअसल इसके पीछे विधायकों, अफसरों, जजों के अपने निजी हित जुड़े हुए हैं। चंडीगढ़ के सबसे ज्यादा निकट क्षेत्र में इनके बड़े-बड़े फार्म हाउस और बंगलों को बचाने का सवाल है?

वही पंजाब में रोजगार के मुद्दे पर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (SAD) के बीच जुबानी जंग तेज हाे गई है। शिअद ने मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह पर निशाना साधा है। शिअद ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से आर्थिक सर्वेक्षण के बारे में दिए बयान को उनकी निराशा करार दिया है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने शिअद को अपने गिरेबां में झांकने को कहा है।

कैप्टन बताएं रोजगार देने में पंजाब बाकी राज्यों से पीछे क्यों: चीमा

शिअद के प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि तकनीकी पक्षों के पीछे छिपने की जगह मुख्यमंत्री को असलियत का सामना करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि युवाओं को नौकरी देने में पंजाब देश के बाकी राज्यों से पीछे क्यों रह गया।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने सर्वेक्षण में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से 6497 और 6877 लोगों के शामिल होने से इसका आकार ‘बेहद छोटा’ करार दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि शायद मुख्यमंत्री देश भर में आर्थिक सर्वेक्षण में अपनाए जाने वाले तरीकों से अवगत नही हैं या फिर वह दोबारा लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या कैप्‍टन अमरिंदर सिंह इस तथ्य को भी झुठलाएंगे कि राज्य के बेरोजगारी ब्यूरो के पास 2.69 आवेदकों ने रजिस्ट्रेशन करवाए हैं, जिनमें से 91 फीसद तकनीकी प्रशिक्षण वाले व 87 फीसद 10वीं पास या ज्यादा पढ़े-लिखे हैं।

उन्‍होंने कहा कि यदि मुख्यमंत्री अब भी भारत के आर्थिक सर्वेक्षण से संतुष्ट नहीं हैं तो उन्हें उन युवाओं की गिनती कर लेनी चाहिए, जो पटियाला में उनके महल के आगे रोजगार मांग रहे थे। डॉ. चीमा ने कहा कि असलियत में सिर्फ 57905 युवाओं को रोजगार दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए था कि राज्य में इतनी बड़ी गिनती के ऐसे अध्यापक हैं, जिन्हें पहले 45 हजार वेतन मिल रहा था, पर सरकार ने 15 हजार रुपये प्रति महीना लेने के लिए मजबूर किया है।

चीमा ने मुख्यमंत्री से यह सवाल किया कि क्या राज्य के लोग केंद्र सरकार की योजना मनरेगा के तहत 20.21 लाख घरों को रोजगार प्रदान के उनके दावे को उनकी सरकार की उपलब्धि मानें? वह यह भी बताएं कि जब 14136 युवाओं ने ईटीटी-टीईटी परीक्षा पास की है, तो 12000 पद खाली हैं। फिर उनकी सरकार ने सिर्फ 1664 पदों का विज्ञापन क्यों दिया।

कैप्‍टन अमरिंदर बोले- कोरा झूठ बोलकर खुद को मूर्ख साबित न करो

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शिअद पर पलटवार किया। उन्‍होंने कहा कि अकालियों को पंजाब के हितों वाले मुद्दों पर अपना मुंह खोलने से पहले तथ्यों की जांच करना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि अकाली कोरा झूठ बोलकर खुद को मूर्ख साबित न करें। अकालियों की आलोचना का आधार गलत था। अकाली आधे-अधूरे झूठ से लोगों को गुमराह करने की कोशिशें कर अपने आप को मूर्ख बना रहे हैं।

उन्‍होंने कहा कि अकालियों के झूठ का जवाब देने के लिए ही उन्होंने एक बार फिर पूरे तथ्यों व आंकड़ों को सामने रखा है। आर्थिक सर्वेक्षण में दी गई जानकारी को समझने या इसका विश्लेषण करने के लिए अकालियों ने दिमाग इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं की। उल्टा वह इस सर्वेक्षण को आधार बनाकर ही उनकी सरकार पर हमले कर रहे हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े स्पष्ट तौर पर दिखाते हैं कि बेरोजगारी पर दिए गए आंकड़ों का स्रोत पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएफएलएस) 2017-18 का है, जो भारत सरकार के लेबर ब्यूरो की ओर से करवाया गया है। इसमें दर्ज समय जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 तक का है, जो पिछली अकाली-भाजपा सरकार से विरासत में मिले लडख़ड़ाते शासन से बड़ी मुश्किल से एक साल बाद का है।

कैप्टन ने कहा कि इस सर्वेक्षण नमूने लेने का दायरा बहुत छोटा रखा गया है। इसी तरह 15 से 29 साल के नौजवानों के लिए नमूनों का आकार हैरान कर देने वाला है। इसमें ग्रामीण व शहरी इलाकों के लिए क्रमवार 1870 और 1961 लोगों को लिया गया। इसका सीधा भाव यह है कि राज्य में इस उम्र वर्ग की 80.58 लाख की आबादी में से केवल 3831 युवाओं को शामिल किया गया। इस सर्वेक्षण में भारत सरकार ने ही जिक्र किया है कि बेरोजगारी संबंधी पिछले आंकड़ों से इस सर्वेक्षण के आधार पर कोई तुलना नहीं की जा सकती। इससे स्पष्ट है कि साल 2017-18 के आंकड़ों की साल 2015-16 के आंकड़ों से तुलना नहीं की जा सकती।

12.15 लाख नौकरियां दीं

कैप्टन ने कहा ‘घर-घर रोजगार और कारोबार’ मिशन के तहत पिछले तीन सालों में 12.15 लाख नौकरियां दी जा चुकी हैं। इनमें से 57,905 सरकारी नौकरियां, प्राइवेट सेक्टर में 3.97 लाख नौकरियां और स्व-रोजगार शुरू करने के लिए 7.61 लाख नौजवानों को उपयुक्त सहायता दी गई।

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