ठाणे. सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नरेंद्र दाभोलकर की हत्या में इस्तेमाल पिस्तौल बरामद होने की बात सामने आई है। कहा जा रहा है कि नॉर्वे के गोताखोरों ने पिस्तौल ठाणे की एक खाड़ी से निकाली। जांच के लिए इसे फॉरेंसिक लैब भेजा गया है। डॉ दाभोलकर की अगस्त 2013 में 2 अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि हत्या के करीब साढ़े सात साल बाद बरामद हुई इस पिस्तौल को तलाशने में करीब 7 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च हुए। हालांकि, मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अब तक इसकी पिस्तौल बरामद होने की पुष्टि नहीं की है।
कौन थे नरेंद्र दाभोलकर
नरेंद्र अच्युत दाभोलकर पेशे से डॉक्टर थे. अंधविश्वास के खिलाफ समाज को जागृत करने का काम भी करते थे. इस क्रम में उन्होंने 1989 में महाराष्ट्र अंधविश्वास निर्मूलन समिति भी बनाई थी जिसके वो अध्यक्ष थे. सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे दाभोलकर कई बार जान से मारने की धमकी मिल चुकी थी. 20 अगस्त 2013 को पुणे में जब वो मॉर्निंग वॉक पर निकले थे तब उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
सीबीआई ने पिस्तौल की तलाश के लिए कोर्ट से ली थी परमिशन
सीबीआई को अगस्त 2019 में पुणे की शिवाजीनगर कोर्ट से ठाणे की खाड़ी में हथियार तलाशने की मंजूरी मिली थी। इसके बाद नॉर्वे के गोताखोरों को इसकी खोज में लगाया गया। हथियार ढूंढने के लिए दुबई स्थित एनविटेक मरीन कंसल्टेंट्स ने नार्वे से अपनी मशीनरी पहुंचाई। हिंदुस्तान टाइम्स ने सीबीआई के अधिकारी के अधिकारी के हवाले से बताया कि ठाणे की खाड़ी में कई दिनों तक तलाश करने के बाद एक पिस्तौल मिली। बैलिस्टिक्स विशेषज्ञ अब दाभोलकर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताए गए बुलेट के आकार और प्रकार के आधार पर जांच करेंगे कि क्या इसी पिस्तौल का हत्या में इस्तेमाल हुआ था।
नॉर्वे से मशीन लाने में सीमा शुल्क ही 95 लाख रुपए लगा
गोताखोरों ने खाड़ी से पिस्तौल की तलाश के लिए चुंबकीय स्लेज का इस्तेमाल किया। केंद्रीय एजेंसी ने पूरे ऑपरेशन की व्यवस्था की। इसमें राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त करने से लेकर पर्यावरण की मंजूरी हासिल करने तक की व्यवस्था थी। यहां तक कि नॉर्वे से मशीनरी लाने के लिए लगभग 95 लाख के सीमा शुल्क की छूट भी मिली। सीबीआई अधिकारी ने बताया कि पिस्तौल की तलाश में करीब 7.5 करोड़ रुपए खर्च हुए।
अगले 10 दिन में शुरू हो सकता है ट्रायल
दाभोलकर मामले में बचाव पक्ष के एक वकील ने कहा, ‘‘मैं जांच के उन पहलुओं पर इस वक्त बात नहीं करना चाहता जिन्हें कोर्ट में पेश नहीं किया गया है, लेकिन अगर सच में ऐसा हुआ है, तो मुझे लग रहा है कि उन्हें अप्रैल या फिर अगले 10 दिन में ट्रायल शुरू कर देना चाहिए। मुझे निजी तौर पर नहीं पता कि गोताखोर कहां से आए और कैसे ये प्रक्रिया चली। यही दिलचस्प है कि खोज वर्षों तक चली। वह कोई समुद्र नहीं है, बस एक छोटी सी नदी है। मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि ये सब इतना लंबा क्यों चला है।’’
मामले से जुड़े एक जज ने इस्तीफा दिया था
डॉ दाभोलकर हत्याकांड की सुनवाई कर चुके बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस सत्यरंजन धर्माधिकारी ने पिछले महीने निजी कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया था। न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने मामले में सीबीआई जांच की धीमी गति को लेकर कई आदेश जारी किए थे। दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को पुणे में ओंकारेश्वर पुल पर सुबह करीब 7.30 बजे दो बाइक सवार हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। 2014 में जांच सीबीआई को सौंपी गई। पहली चार्जशीट 6 सितंबर 2016 में दाखिल हुई। इसमें मुख्य साजिशकर्ता के रूप में वीरेंद्र तावड़े और हमलावरों के रूप में सारंग अकोलकर और विनय पवार का नाम आया।
पुलिस की चार्जशीट में सामने आईं यह बातें
इस मामले में पूरक चार्जशीट 13 फरवरी, 2019 में दाखिल हुई। इसमें दो हमलावरों के नाम सचिन आंदुरे और शरद कालस्कर बताए गए। एक अन्य चार्जशीट 20 नवंबर 2019 में वकील संजीव पुनालेकर और उनके सहयोगी विक्रम भावे के खिलाफ दाखिल हुई। इन्हें हत्या में सहयोगी साजिशकर्ता के तौर पर बताया गया। जिन सात लोगों के नाम चार्जशीट में लिखे गए, उनमें तवाड़े, कालस्कर, आंदुरे और भावे जेल में हैं। अकोल्कर और पवार की गिरफ्तारी नहीं हुई है। 25 मई 2019 को वकील पुनालेकर और भावे को गिरफ्तार किया गया था। पुनालेकर को 5 जुलाई 2019 को जमानत दी गई थी।