सरकार के 100 दिन पूरा होने पर सात को अयोध्या में रामलला का दर्शन करेंगे महाराष्ट्र के CM उद्धव ठाकरे

Maharashtra CM Uddhav Thackeray महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सत्ता में आने के 100 दिन पूरे होने के मौके पर सात मार्च को अयोध्या जाएंगे। ...

लखनऊ। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अयोध्या दौरे का कार्यक्रम तय हो गया है। करीब नौ महीने बाद एक बार फिर वह अयोध्या आकर रामलला का दर्शन करेंगे। महाराष्ट्र में अपनी सरकार के सौ दिन पूरा होने के उपलक्ष्य में ठाकरे अयोध्या का रुख करेंगे।

महाराष्ट्र में सरकार बनने के बाद उद्धव ठाकरे के अयोध्या दौरे को लेकर पिछले काफी समय से सवाल उठ रहे थे। जनवरी में संजय राउत के ठाकरे के अयोध्या जाने का कार्यक्रम बताने के बाद भी भाजपा लगातार उद्धव ठाकरे पर निशाना साध रही थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सत्ता में आने के 100 दिन पूरे होने के मौके पर सात मार्च को अयोध्या जाएंगे और रामलला के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेंगे। अब सात मार्च को उद्धव के अयोध्या जाने का कार्यक्रम तय हो गया है।

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया था कि वह अयोध्या जाएंगे। वह सात मार्च को अयोध्या में रामलला के दर्शन करेंगे और सरयू नदी के घाट पर भी जाएंगे। सत्ता के सौ दिन पूरे होने पर उद्धव ठाकरे अयोध्या जाएंगे और भगवान राम का आशीर्वाद लेंगे। इससे पहले जून 2019 में उद्धव ठाकरे अयोध्या गए थे और भगवान राम की पूजा अर्चना की थी। उस समय तो उनके साथ शिवसेना के 18 सांसद भी अयोध्या गए थे।

महाराष्ट्र में शिवसेना का भाजपा और एनडीए से गठबंधन टूटने के बाद सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की यह पहली अयोध्या यात्रा होगी। बीते वर्ष अक्टूबर में पद की साझेदारी को लेकर दोनों पार्टियां एक-दूसरे से अलग हो गई थीं। उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर, 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. इस प्रकार उनकी सरकार के 100 दिन मार्च में पूरे होने वाले हैं। नौ नवंबर, 2019 को अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया था कि वह 24 नवंबर, 2019 को अयोध्या जाएंगे। उस दौरान राज्य में तेजी से बदले राजनीतिक हालात के चलते वह अयोध्या नहीं जा सके।

इससे पहले शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे 16 जून 2019 को अपनी पार्टी के सभी सांसदों के साथ अयोध्या पहुंचे थे। उस समय उद्धव ठाकरे के इस दौरे को भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति और विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा गया था। तब शिवसेना केंद्र के साथ महाराष्ट्र में भी भाजपा की सहयोगी पार्टी थी लेकिन अब दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं।

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