AGR विवाद: टेलीकॉम कंपनियों के लिए डेडलाइन खत्म, सरकार को चुकाने थे 1.47 लाख करोड़ करोड़

सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को एक बार फिर झटका देते हुए कहा कि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR का बकाया चुकाने के लिए उन्हें कोई मोहलत नहीं मिल सकती.

0 1,000,223
  • टेलीकॉम कंपनियों को करीब 1.47 लाख करोड़ का AGR बकाया चुकाना है
  • सबसे अधिक बोझ टेलीकॉम कंपनी- एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया पर

टेलीकॉम कंपनियों के लिए शुक्रवार का दिन अहम रहा. दरअसल, डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्‍युनिकेशन (DoT) ने उन्हें शुक्रवार रात 12 बजे से पहले एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR भुगतान करने का आदेश दिया था. जिसकी मियादी अब पूरी हो चुकी है. यहां बता दें कि टेलीकॉम कंपनियों को 1.47 लाख करोड़ से अधिक का बकाया चुकाना था.

कोर्ट ने शुक्रवार को ही दिया झटका

डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्‍युनिकेशन ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को झटका दिया है. दरअसल, एजीआर भुगतान के लिए और समय की मांग करते हुए वोडाफोन-आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है. इस नोटिस में पूछा गया है कि AGR पर कोर्ट के आदेश को क्‍यों नहीं माना गया.

टेलीकॉम मिनिस्‍ट्री को फटकारा

कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या इस देश में कोई कानून नहीं बचा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर अमल नहीं किये जाने पर कड़ा रूख अपनाया और टेलीकॉम मिनिस्‍ट्री के डेस्क अधिकारी के एक आदेश पर अपनी नाराजगी व्यक्त की. दरअसल, टेलीकॉम मिनिस्‍ट्री के डेस्‍क अधिकारी ने एजीआर भुगतान के मामले में कोर्ट के फैसले के प्रभाव पर रोक लगा दी थी. डेस्क अधिकारी ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और अन्‍य अधिकारियों को पत्र लिखा कि वे टेलीकॉम कंपनियों और अन्य पर इस रकम के भुगतान के लिए दबाव नहीं डालें. इसके साथ ही ये सुनिश्चित करें कि उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो.

इस घटनाक्रम पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई डेस्क अधिकारी इस तरह का आदेश कैसे दे सकता है. पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘एक डेस्क अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में ऐसा कैसे कर सकता है. क्या यह देश का कानून है. क्या आप अदालतों से इसी तरह का आचरण करते हैं.’’

क्या है AGR का विवाद?

दरअसल, टेलीकॉम कंपनियों से टेलीकॉम डिपार्टमेंट एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) मांग रहा है. एजीआर, संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है.

सरकार की इस मांग के खिलाफ टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने भी सरकार की मांग को जायज ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर, 2019 के अपने आदेश में टेलीकॉम कंपनियों को 23 जनवरी 2020 तक की मोहलत दी थी. इस डेडलाइन पर रिलायंस जियो ने भुगतान तो कर दिया लेकिन अन्‍य टेलीकॉम कंपनियां एक बार फिर मोहलत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट चली गई थीं.

टेलीकॉम कंपनियों को क्‍या है दिक्‍कत?

टेलीकॉम कंपनियां आदेश मानती हैं तो उन्‍हें 1.47 लाख करोड़ रुपये से अधिक चुकाने होंगे. बिना ब्याज और जुर्माने के एयरटेल को 21,682.13 करोड़ रुपये, वोडाफोन को 19,823.71 करोड़ रुपये, रिलायंस कम्युनिकेशंस को 16,456.47 करोड़ रुपये और बीएसएनएल को 2,098.72 करोड़ रुपये देने हैं. वहीं ब्‍याज और जुर्माने समेत ये रकम 1 लाख करोड़ से भी ज्‍यादा की हो जाती है. हालांकि, एयरटेल ने 20 फरवरी तक 10 हजार करोड़ रुपये देने की पेशकश की है.

Leave A Reply

Your email address will not be published.