एजीआर विवाद / सुप्रीम कोर्ट की फटकार के 6 घंटे बाद सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों से कहा- रात 11.59 बजे तक बकाया रकम चुकाएं

सुप्रीम कोर्ट टेलीकॉम कंपनियों और सरकार से नाराज, कहा- इस देश में रहने से बेहतर इसे छोड़कर चले जाना चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों के अधिकारियों से पूछा- क्यों न अवमानना की कार्रवाई की जाए?

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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के करीब 6 घंटे बाद सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को शुक्रवार रात 11:59 बजे तक बकाया रकम का भुगतान करने के निर्देश दिए। भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया और अन्य कंपनियों को सरकार द्वारा तय मियाद से पहले रकम चुकानी होगी। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को ही टेलीकॉम कंपनियों से रिकवरी स्थगित करने पर दूरसंचार विभाग को फटकार लगाई थी। 1.47 लाख करोड़ रुपए के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ज्यादातर कंपनियों ने रकम जमा नहीं करवाई थी।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन कंपनियों से पूछा था कि क्यों ना आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए? क्या इस देश में कोई कानून नहीं बचा? इस देश में रहने से बेहतर है कि इसे छोड़कर चले जाना चाहिए।’ शुक्रवार को दूरसंचार विभाग से जारी आदेश में कहा गया, “लाइसेंस फीस और स्पैक्ट्रम उपयोग शुल्क के भुगतान को लेकर टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडरों को 14 फरवरी को रात 11.59 बजे तक बकाया रकम चुकाने का निर्देश दिया गया है।”

23 जनवरी तक बकाया जमा करने के आदेश थे

सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर को आदेश दिया था कि टेलीकॉम कंपनियां 23 जनवरी तक बकाया राशि जमा करें। कंपनियों ने फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। इसके बाद भारती एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेली ने भुगतान के लिए ज्यादा वक्त मांगते हुए नया शेड्यूल तय करने की अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इसे भी खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी की वजह?

दूरसंचार विभाग के राजस्व मामलों से जुड़े एक डेस्क ऑफिसर ने पिछले दिनों संवैधानिक पदों पर बैठे अन्य अफसरों को लिखी चिट्‌ठी में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक टेलीकॉम कंपनियों पर कोई कार्रवाई न की जाए, भले ही वे एजीआर मामले में बकाया भुगतान नहीं करें।

दूरसंचार विभाग ने आदेश वापस लिया, सुप्रीम कोर्ट ने एक घंटे का वक्त दिया था

सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद दूरसंचार विभाग ने यह आदेश वापस ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब हम पहले ही टेलीकॉम कंपनियों को भुगतान का आदेश दे चुके हैं, तब कोई डेस्क ऑफिसर ऐसा आदेश कैसे जारी कर सकता है? हमें नहीं पता कि कौन माहौल बिगाड़ रहा है? क्या देश में कोई कानून ही नहीं बचा है? कोई अधिकारी कोर्ट के आदेश के खिलाफ जुर्रत कर सकता है तो सुप्रीम कोर्ट को बंद कर देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर इस अफसर ने एक घंटे के अंदर आदेश वापस नहीं लिया तो उसे जेल भेजा जा सकता है। कंपनियों ने एक पैसा भी नहीं चुकाया और आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोक चाहते हैं?

टेलीकॉम कंपनियों के एमडी को 17 मार्च को पेशी के आदेश

जिन टेलीकॉम कंपनियों पर एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू के आधार पर स्पेक्ट्रम और लाइसेंस फीस के 1.47 लाख करोड़ रुपए बकाया हैं, उनमें से सिर्फ रिलायंस जियो ने करीब 195 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया है। इस पर जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने भारती एयरटेल, वोडाफोन, एमटीएनएल, बीएसएनएल, रिलायंस कम्युनिकेशंस, टाटा टेलीकम्युनिकेशंस और अन्य के मैनेजिंग डायरेक्टर्स से 17 मार्च को पेश होने को कहा है।

एजीआर : सरकार और कंपनियों का कैलकुलेशन अलग-अलग था, इसलिए विवाद शुरू हुआ
टेलीकॉम कंपनियों और सरकार के बीच पिछले 14 साल से एजीआर को लेकर विवाद था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले टेलीकॉम ट्रिब्यूनल ने 2015 में टेलीकॉम कंपनियों के पक्ष में फैसला दिया था। ट्रिब्यूनल ने कहा था कि किराए, स्थायी संपत्ति को बेचने पर होने वाले प्रॉफिट, डिविडेंड और ब्याज जैसे नॉन कोर रिसोर्सेस से मिली रकम को छोड़कर बाकी रेवेन्यू एजीआर में शामिल होगा। विदेशी मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) एडजस्टमेंट को भी एजीआर में शामिल किया गया। हालांकि, फंसे हुए कर्ज, विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव और कबाड़ की बिक्री को इससे अलग रखा गया। विवाद इसलिए था क्योंकि सरकार किराए, स्थायी संपत्ति को बेचने पर होने वाले प्रॉफिट और कबाड़ बेचने से मिलने वाली रकम को भी एजीआर में शामिल करती है। 24 अक्टूबर 2019 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की गणना को ही सही माना था। टेलीकॉम कंपनियों को इसी आधार पर ब्याज और पेनल्टी समेत बकाया फीस चुकाने का आदेश दिया था। कंपनियों को एजीआर का 3% स्पेक्ट्रम फीस और 8% लाइसेंस फीस के तौर पर सरकार को देना होता है।

1.47 लाख करोड़ में से किस कंपनी पर कितना बकाया

कंपनी बकाया (रुपए)
वोडाफोन-आइडिया 53,038 करोड़
भारती एयरटेल 35,586 करोड़
टाटा टेली 13,823 करोड़
रिलायंस जियो, रिलायंस कम्युनिकेशंस, बीएसएनएल, एमटीएनएल और अन्य पर बकाया 45,000 करोड़
सभी कंपनियों पर ब्याज और पेनल्टी समेत कुल बकाया 1,47000 करोड़
रिलायंस जियो ने चुकाए -195 करोड़
अब बाकी कंपनियों पर बकाया 1,46,805 करोड़

एयरटेल को छोड़ बाकी टेलीकॉम कंपनियों के शेयरों में 23% तक गिरावट

कंपनी शेयर में गिरावट
वोडाफोन-आइडिया 23.21%
भारती इन्फ्राटेल 4.04%
रिलायंस कम्युनिकेशंस 4.11%
टाटा टेली 9.89%

(एयरटेल का शेयर 4.69% फायदे में रहा)

टेलीकॉम सेक्टर पर इस वक्त सबसे ज्यादा खतरा: एनालिस्ट
कंसल्टिंग फर्म कॉम फर्स्ट इंडिया के डायरेक्टर महेश उप्पल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से टेलीकॉम इंडस्ट्री की स्थिति खराब होगी। वोडाफोन-आइडिया की मुश्किलें सबसे ज्यादा बढ़ेंगी। विश्लेषकों का कहना है कि टेलीकॉम सेक्टर में दो कंपनियों का दबदबा होने का जोखिम इस वक्त सबसे ज्यादा है। अभी भारती एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया और रिलायंस जियो बाजार में हैं। एजीआर मामले में वोडाफोन-आइडिया पर 53,000 करोड़ की देनदारी है। कंपनी पहले ही चेतावनी दे चुकी है कि राहत नहीं मिली तो कारोबार बंद करना पड़ सकता है। दिसंबर तिमाही में वोडाफोन-आइडिया को को 6,439 करोड़ का घाटा हुआ है।

कोर्ट ने शुक्रवार को ही दिया झटका

डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्‍युनिकेशन ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को झटका दिया है. दरअसल, एजीआर भुगतान के लिए और समय की मांग करते हुए वोडाफोन-आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है. इस नोटिस में पूछा गया है कि AGR पर कोर्ट के आदेश को क्‍यों नहीं माना गया.

टेलीकॉम मिनिस्‍ट्री को फटकारा

कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या इस देश में कोई कानून नहीं बचा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर अमल नहीं किये जाने पर कड़ा रूख अपनाया और टेलीकॉम मिनिस्‍ट्री के डेस्क अधिकारी के एक आदेश पर अपनी नाराजगी व्यक्त की. दरअसल, टेलीकॉम मिनिस्‍ट्री के डेस्‍क अधिकारी ने एजीआर भुगतान के मामले में कोर्ट के फैसले के प्रभाव पर रोक लगा दी थी. डेस्क अधिकारी ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और अन्‍य अधिकारियों को पत्र लिखा कि वे टेलीकॉम कंपनियों और अन्य पर इस रकम के भुगतान के लिए दबाव नहीं डालें. इसके साथ ही ये सुनिश्चित करें कि उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो.

इस घटनाक्रम पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई डेस्क अधिकारी इस तरह का आदेश कैसे दे सकता है. पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘एक डेस्क अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में ऐसा कैसे कर सकता है. क्या यह देश का कानून है. क्या आप अदालतों से इसी तरह का आचरण करते हैं.’’

क्या है AGR का विवाद?

दरअसल, टेलीकॉम कंपनियों से टेलीकॉम डिपार्टमेंट एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) मांग रहा है. एजीआर, संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 फीसदी और 8 फीसदी होता है.

सरकार की इस मांग के खिलाफ टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने भी सरकार की मांग को जायज ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर, 2019 के अपने आदेश में टेलीकॉम कंपनियों को 23 जनवरी 2020 तक की मोहलत दी थी. इस डेडलाइन पर रिलायंस जियो ने भुगतान तो कर दिया लेकिन अन्‍य टेलीकॉम कंपनियां एक बार फिर मोहलत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट चली गई थीं.

टेलीकॉम कंपनियों को क्‍या है दिक्‍कत?

टेलीकॉम कंपनियां आदेश मानती हैं तो उन्‍हें 1.47 लाख करोड़ रुपये से अधिक चुकाने होंगे. बिना ब्याज और जुर्माने के एयरटेल को 21,682.13 करोड़ रुपये, वोडाफोन को 19,823.71 करोड़ रुपये, रिलायंस कम्युनिकेशंस को 16,456.47 करोड़ रुपये और बीएसएनएल को 2,098.72 करोड़ रुपये देने हैं. वहीं ब्‍याज और जुर्माने समेत ये रकम 1 लाख करोड़ से भी ज्‍यादा की हो जाती है.

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