दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजनीति के अपराधीकरण (Criminal Background) को खत्म करने के लिए चुनाव आयोग को एक हफ्ते में फ्रेमवर्क तैयार करने का निर्देश दिया था.

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नई दिल्ली. राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज अपना फैसला सुनाएगा. अदालत ये तय करेगा कि क्रिमिनल बैकग्राउंड (Criminal Background) वाले नेताओं को चुनाव लड़ने का टिकट मिलना चाहिए या नहीं. जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एस रविंद्र भट की बेंच इस मामले पर फैसला सुनाएगी.

कई याचिकाकर्ताओं में से बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह राजनीतिक दलों पर दबाव डाले कि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट न दें. ऐसा होने पर आयोग राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करे.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को खत्म करने के लिए चुनाव आयोग को एक हफ्ते में फ्रेमवर्क तैयार करने का निर्देश दिया था. जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने आयोग से कहा था, ‘राजनीति में अपराध के वर्चस्व को खत्म करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए.’

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय और चुनाव आयोग से कहा कि वह साथ मिलकर विचार करें और सुझाव दें, जिससे राजनीति में अपराधीकरण पर रोक लगाने में मदद मिले.

क्या कहता है कानून?
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा आठ दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है, लेकिन ऐसे नेता जिन पर सिर्फ मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं. भले ही उनके ऊपर लगा आरोप कितना भी गंभीर है.

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा. ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किये जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.

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