क्या हैक हो सकती है ईवीएम, हर चुनाव में क्यों उठते हैं सवाल?

हर बार की तरह इस बार भी ईवीएम (EVM) का मुद्दा बहस का विषय बन गया है. एक बार फिर सवाल उठने लगा है कि क्या ईवीएम से छेड़छाड़ (tampering) संभव है?

दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2020) के बाद ईवीएम (EVM) को लेकर एक बार फिर गर्मागर्म बहस छिड़ी है. आम आदमी पार्टी की तरफ से विधानसभा चुनाव में मतदान खत्म होने के फौरन बाद ईवीएम में गड़बड़ी किए जाने की आशंका जाहिर की जाने लगी. हालांकि वो एग्जिट पोल में दिल्ली में आसानी से सरकार बनाती दिख रही है. इसके बावजूद आप ने ईवीएम को लेकर सवाल उठाए हैं.

आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने सोशल मीडिया में कुछ वीडियो शेयर किए हैं. उनका दावा है कि वीडियो में कुछ मतदान अधिकारी अवैध तरीके से ईवीएम अपने साथ ले जाते हुए दिख रहे हैं, जबकि मतदान के तुरंत बाद ईवीएम को सील करके स्ट्रॉन्ग रूम भेजा जाता है. इन्हीं वीडियो को आधार बनाकर उन्होंने ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए हैं.

हर बार की तरह इस बार भी ईवीएम का मुद्दा बहस का विषय बन गया है. एक बार फिर सवाल उठने लगा है कि क्या ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है? ये भी जानना दिलचस्प होगा कि ईवीएम में वोटिंग डाटा कितने वक्त तक सुरक्षित रह सकता है? और चुनाव के बाद कहां चली जाती हैं ईवीएम?

बैलेट बॉक्स सेफ है या ईवीएम?


ईवीएम से पहले हमारे देश में बैलेट बॉक्स से चुनाव होते थे. बैलेट बॉक्स में वोटर कागज पर ठप्पा लगाकर उम्मीदवारों को वोट करते थे. फिर सारे बैलट पेपर्स को एक जगह पर रखकर गिनती की जाती थी. गिनती के बाद नतीजे बताए जाते थे. ये पूरी प्रक्रिया मैन्युअल थी. इसमें अच्छा-खासा वक्त लगता था. कई बार सारे नतीजे आने में 2 से 3 दिन लग जाते थे.

उसके बाद ईवीएम आई. ईवीएम में सारा काम तुरत-फुरत होने लगा. ईवीएम के इस्तेमाल का इतिहास पुराना है. पहली बार 1974 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थानीय चुनावों में इसका प्रयोग हुआ. इसके बाद एक बेहतर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग इलुनॉयस, शिकागो में हुआ. 1975 में अमेरिकी सरकार ने इन मशीनों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया.

भारत में 1982 में पहली बार हुआ उपयोग
भारत में केरल के एक उपचुनाव में पहली 1982 में ऐसी मशीन का इस्तेमाल किया गया लेकिन कोर्ट ने इन मशीनों के इस्तेमाल को खारिज कर दिया. 1991 में बेल्जियम पहला देश था, जहां इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल चुनाव में हुआ. लेकिन सही मायनों में वहां भी इसका पूरा इस्तेमाल 1999 से शुरू हुआ. भारत में 1982 में पहली बार इस्तेमाल के बाद 2003 के चुनावों में इसका व्यापक प्रयोग किया गया.

80 के दशक में भारत सरकार के सुझाव पर देश के दो सार्वजनिक उपक्रमों भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने ई वोटिंग मशीन पर काम करना शुरू किया. इस मशीन को डेवलप करने के बाद उन्होंने इसे भारतीय चुनाव आयोग से इस बारे में राय मांगी. चुनाव आयोग की कमेटी अपने कुछ संशोधनों और डिजाइन में कुछ फेरबदल के सुझाव के साथ इस पर मुहर लगा दी.

देश में अब भी ईवीएम भारत के इन्हीं दो नवरत्न उपक्रमों भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जाती है. इन्हें कुछ देशों को भी निर्यात किया जाता है. बैलेट बॉक्स की तुलना में इन मशीनों से चुनाव सस्ता पड़ता है.

ईवीएम को लेकर बहुत से सवाल लगातार पूछे जाते रहे हैं. हम यहां उन्हीं सवालों के जरिए उसके हर पहलू को स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे.

क्या ईवीएम बगैर बिजली के चल सकती हैं?
हां, इनके लिए किसी तरह के बिजली की जरूरत नहीं होती. ये इनके साथ जोड़ी गईं बैटरी से चलती हैं.

एक ईवीएम में कितने वोट रिकॉर्ड किए जा सकते हैं?
भारतीय चुनाव आयोग जिन ईवीएम का इस्तेमाल करता है, वो मशीनें 2000 वोट तक रिकॉर्ड कर सकती हैं

इनमें वोट कब तक इनकी मेमोरी में रिकॉर्ड रहता है?
वोटों का डाटा ईवीएम की कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में लंबे वक्त तक रिकॉर्ड रह सकता है, उसकी मेमोरी डाटा को आंच भी नहीं आती.

एक ईवीएम की उम्र कितनी होती है?
आमतौर पर 16-17 साल या इससे ज्यादा

एक ईवीएम में कितने उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं?
पहले एम2 ईवीएम आती थीं, उसकी एक यूनिट में 16 उम्मीदवारों को चुनने के बटन होते थे, ज्यादा उम्मीदवार होने पर अलग यूनिट लगानी होती थी. अब इस्तेमाल की जाने वाली एम3 मशीनों में ज्यादा यूनिट्स जोड़ी जा सकती हैं.

कितनी होती है इन मशीनों की कीमत?
एम2 ईवीएम की कीमत 8670 रुपए होती है जबकि एम3 ईवीएम 17000 रुपए का.

क्या इनसे छेड़खानी संभव है, क्या इन पर फटाफट बटन दबाए जा सकते हैं?
नहीं, ऐसा संभव नहीं है. हर एक वोट के बाद कंट्रोल यूनिट को फिर अगले वोट के लिए तैयार करना होता है. लिहाजा इन पर फटाफटा बटन दबाकर वोट करना मुश्किल है.

क्या ये मशीनें हैक की जा सकती हैं?
चूंकि ये मशीनें किसी इंटरनेट नेटवर्क से नहीं जुड़ी होतीं लिहाजा इन्हें हैक करना संभव नहीं. हालांकि ये दावा भी किया गया कि इन मशीनों की अपनी फ्रीक्वेंसी होती हैं, जिसके जरिए इन्हें हैक किया जा सकता है, लेकिन इस तरह के दावे सही नहीं पाए गए. लेकिन एक बात कही जाती है कि मशीन को फिजिकली मैन्युपुलेट किया जा सकता है. यानी अगर किसी के हाथ में ये मशीन आ जाए, तो वो इसके नतीजों में उलटफेर कर सकता है.

अब तक ईवीएम को लेकर कितने मुकदमे हो चुके हैं?
ईवीएम में टैंपरिंग को लेकर अब तक कई मुकदमे कई राज्यों के हाईकोर्ट में हो चुके हैं. यहां तक कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा लेकिन सर्वोच्च अदालत ने इसे खारिज कर दिया.

आमतौर पर ईवीएम के रिजल्ट को कब तक सुरक्षित रखा जाता है?
वोटिंग की काउंटिंग के बाद ईवीएम को स्ट्रांग रूम में बंद करके सुरक्षित रख दिया जाता है. इसके डाटा को तब तक डिलीट नहीं किया जाता, जब तक कि इलेक्शन पीटिशन का समय होता है.

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