निजी मेडिकल कॉलेजों में वसूल की जा रही भारी भरकम फीसों के विरोध में खड़े होने की जरूरत-डा. गुप्ता

-नीजि कालेजों में विभिन्न सुविधाओं के नाम पर वसूल हो रही फीसे पर सुविधाएं नाममात्र ही मिल रही -मामले में सरकार पर सख्त कानून बनाने के लिए दबाव बनाना जरूरी, जनसमर्थन के बिना संभव नहीं

बठिंडा . मानवाधिकार व आरटीए कार्यकर्ता व आईएमए के स्थायी सदस्य डा. वितुल कुमार गुप्ता ने प्राइवेट मेडिकल कालेजों में बिना किसी सुविधा के छात्रों से वसूल की जा रही भारी भरकम फीसों का मुद्दा एक बार फिर से उठाया है। उन्होंने इस मामले में लोगों को एकजुट होकर आगे आने व सरकार पर प्राइवेट कालेजों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाने की वकालत की है।

डा. गुप्ता ने मुख्यमंत्री पंजाब कैप्टन अमरिंदर सिंह और ओपी सोनी, मंत्री  चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान विभाग के  हरपाल सिंह चीमा को लिखित पत्र देकर इस बाबत व्यापत समस्या की तरफ ध्यान दिलवाया है।  उन्होंने डी.के. तिवारी, सचिव चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान विभाग पंजाब से भी प्राइवेट कालेजों की मनमानी पर रोक लगाने की मांग की है।

  • उन्होंने कहा कि निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क को कम कर एक तय मापदंड निर्धारित करने वाले अध्यादेश की तत्काल जरूर है। हालांकि पंजाब विधानसभा का सत्र भी जल्द शुरू होने वाला है। इस सत्र में सरकार को बिना किसी देरी के इस बाबत कानून बनाना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकारे एमबीबीएस की सीटों में लगातार बढ़ोतरी कर रही है वही नए मेडिकल कालेज भी खोले जा रहे हैं। इसके चलते मेडिकल कालेजों में गुणवत्ता लाने व बेहतर डाक्टर तैयार करने के लिए नियमों को बनाकर लागू करने की जरूर है वही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में सरकार की अक्षमता और उदासीन रवैये के कारण इस बाबत कानून बनाने में देरी की जा रही है।
  • पिछले साल जून में पंजाब मंत्रिमंडल ने इस बाबत निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों के शुल्क को विनियमित करने के लिए कानून लाने की बात कही थी लेकिन इसमें सरकार विफल रही। जून 2019 में  मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने पंजाब प्राइवेट हेल्थ साइंसेज एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (रेग्युलेशन ऑफ एडमिशन, फीस का निर्धारण और रिजर्वेशन ऑफ रिजर्वेशन ऑफ रेगुलेशन) एक्ट, 2006 में संशोधन करके अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी ताकि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क निजी विश्वविद्यालयों पर भी लागू हो सके।
  • पिछले साल जुलाई में यह बताया गया था कि सरकार ने निजी मेडिकल विश्वविद्यालयों में शुल्क को विनियमित करने के लिए अधिनियम में संशोधन करने के लिए प्रक्रिया शुरू की है और चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान विभाग ने अगस्त में सरकार को अधिनियम का मसौदा भेजा था, जिसे मंजूरी दे दी गई थी लेकिन इस मुद्दे को सदन के सामने नहीं लाया गया है। लगभग 15 कैबिनेट बैठकों के बाद भी इस तरह के एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले को एजेंडे में शामिल नहीं किया गया।
  • तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा, वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, सहित कैबिनेट के दूसरे सदस्यों ने पंजाब निजी स्वास्थ्य विज्ञान शैक्षिक संस्थानों (विनियमन) में संशोधन करने की सिफारिशें की थीं। वही दूसरी तरफ प्रवेश, शुल्क निर्धारण और आरक्षण का निर्धारण करने के लिए अधिनियम, 2006 लाया गया। 2012 के बाद से निजी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालयों में कई निजी मेडिकल कॉलेजों का गठन किया गया और उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में 2006 अधिनियम के तहत निर्धारित किए गए शुल्क को चुनौती दी थी। इसमें आधार बनाया गया कि यह निजी स्वास्थ्य विज्ञान संस्थानों पर लागू होता है न कि निजी विश्वविद्यालयों पर इसे लागू किया जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया और कहा कि निजी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय 2006 अधिनियम के तहत शामिल नहीं हैं। अब एमबीबीएस के छात्र को निजी विश्वविद्यालयों को पूरे कोर्स के लिए 50 से 70 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता है, जबकि यह प्रस्ताव सरकार की तरफ से बनाए नियम में छात्रावास शुल्क सहित 10 से 15 लाख रुपये के बीच है। इसमें सीधे तौर पर प्राइवेट कालेज 50 से 55 लाख रुपए अतिरिक्त वसूली कर छात्रों को लूट रहे हैं। डा. वितुल गुप्ता ने कहा कि यह मुद्दा 2003 से पहले का है जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को सभी पेशेवर कॉलेजों के शुल्क को विनियमित करने के लिए एक कानून बनाने का निर्देश दिया है। पंजाब ने शुल्क को विनियमित करने के तरीकों और साधनों का सुझाव देने के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश जी आर मजीठिया के तहत एक समिति का गठन किया है। 2006 में  पंजाब ने एक कानून बनाया, जिसने सरकार को शुल्क को विनियमित करने की अनुमति दी।
  • सरकार ने 50:50 के अनुपात में सरकार और प्रबंधन कोटे के तहत सीटों को विभाजित करके शुल्क को विनियमित किया। इसके बाद देश भगत और आदेश मेडिकल कालेज यूनिवर्सिटी बना दिए गए। उन्होंने तर्क दिया कि यह विनियमन कानून के दायरे में नहीं आते हैं क्योंकि यह केवल पेशेवर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक दिशा निर्देश थी। इसीलिए सरकार को डीम्ड विश्वविद्यालयों को इस अधिनियम के दायरे में लाने के लिए मौजूदा अधिनियम में संशोधन करना होगा जिससे शुल्क को सरकार द्वारा विनियमित किया जा सकता है।
  • फरवरी के महीने में एमबीबीएस में प्रवेश की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है और यदि यह प्राथमिकता पर नहीं किया जाता है तो छात्रों को फिर से उच्च शुल्क का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाएगा। आम लोगों को लगता है कि सरकार पर निजी मेडिकल कॉलेजों की शक्तिशाली लॉबी का प्रभाव सरकार को उचित कार्रवाई करने से रोक रहा है। डा. वितुल ने सभी गैर सरकारी संगठनों, आईएमए और विपक्षी दलों से अपील की है कि वे इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाएं और सरकार को पंजाब के निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस में कमी करने के लिए अध्यादेश जारी करने के लिए मजबूर करें। डॉ. वितुल ने कहा कि यदि पंजाब सरकार कार्रवाई नहीं करती है, तो हम इस संबंध में माननीय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में मामला दर्ज करेंगे।

लेखक-Prof. Dr. Vitull K. Gupta,

Health and Human Rights Activist and Chairman, API Malwa Branch.

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