कोटा के बाद जोधपुर / राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत के गृहनगर में भी एक महीने में 146 बच्चों ने तोड़ा दम, इनमें से 102 नवजात

2019 में शिशु रोग विभाग में कुल 47815 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें से 754 की मौत हुई मुख्यमंत्री गहलोत जोधपुर मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत पर जवाब दिए बिना निकले कोटा के जेके लोन सरकारी अस्पताल में भी पिछले 35 दिन में 107 बच्चों ने दम तोड़ा

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जोधपुर (राजस्थान). कोटा के जेके लोन अस्पताल में शनिवार तक 35 दिन में 107 बच्चों की मौत हुई। यहीं हाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर में देखा जा रहा है। बेहतर इलाज और सुविधाएं नहीं मिलने से डॉ. सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज में महीनेभर में 146 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। इसमें से 102 नवजात थे। मेडिकल कॉलेज के अधिकारी इसे सामान्य बता रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री बच्चों के मरने के सवाल को अनसुना कर निकल गए।

जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम और उम्मेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है। यहां 5 जिलों- जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही और पाली से मरीज आते हैं। दिसंबर में यहां के शिशु रोग विभाग में 4689 बच्चे भर्ती हुए थे, इनमें 3002 नवजात थे। इलाज के दौरान 146 की मौत हो गई। कोटा त्रासदी के बाद कॉलेज प्रबंधन द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ। सबसे ज्यादा मौतें नियोनेटल केअर यूनिट (एनआईसीयू) व पीडियाट्रिक आईसीयू (पीआईसीयू) में हुई हैं।

आंकड़े छिपाने के लिए रिपोर्ट में गड़बड़ी

रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में शिशु रोग विभाग में कुल 47815 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें से 754 की मौत हुई। इस हिसाब से मौतों का प्रतिशत 1.57 था। लेकिन 2019 में ही एनआईसीयू और पीआईसीयू में 5634 गंभीर नवजात भर्ती हुए, जिनमें से 754 की मौत हुई है। यह 13% से भी ज्यादा है। हैरान करने वाली बात ये है कि पिछले साल वार्ड में कोई मौत नहीं हुई, पर शिशु रोग विभाग ने मौतों का प्रतिशत निकलने में वार्डों में भर्ती होने वाले 42 हजार बच्चों की संख्या भी जोड़ दी ताकि मौतों की संख्या कम नजर आए।

बगैर जवाब दिए निकल गए गहलोत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पत्रकार वार्ता में कोटा और जोधपुर में बच्चों की मौत को लेकर सवाल पूछे गए। उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कोटा के अस्पताल का दौरा करने के बाद कहा था कि एक साल से कांग्रेस सरकार है। ऐसे में हम पुरानी भाजपा सरकार पर आरोप नहीं लगा सकते हैं। हमें इसके लिए जिम्मेदार लोगों को सामने लाना होगा। मुख्यमंत्री ने पर भी चुप्पी साध ली। जब उनसे 146 बच्चों की मौत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- कहां पर? जोधपुर का बताने पर वे पलट कर रवाना हो गए। उन्होंने जवाब देना भी उचित नहीं समझा।

जोधपुर मेडिकल कॉलेज में पहले भी लापरवाही सामने आई 

डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के अस्पताल की व्यवस्थाएं पहले भी सवालों के घेरे में रही हैं। यहां 2011 में 30 से ज्यादा प्रसूताओं की संक्रमित ग्लूकोज से मौत हुई थी। इसके बाद सरकार ने उम्मेद अस्पताल का दबाव कम करने के लिए एमडीएम अस्पताल में भी महिला विंग शुरू की, लेकिन यहां पूरे पश्चिमी राजस्थान का दबाव रहता है।

व्यवस्थाएं माकूल, लेकिन मरीजों का दबाव ज्यादा
मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में माकूल व्यवस्थाएं है। यहां पर 7 प्रोफेसर सहित कुल 18 डॉक्टर कार्यरत हैं। इसके अलावा अत्यधुनिक उपकरण और अन्य सभी तरह की सुविधाएं है। लेकिन, यहां पर बीमार बच्चों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण डॉक्टरों पर हमेशा दबाव रहता है। पूरे संभाग से बीमार बच्चों को इलाज के लिए यहीं पर लाया जाता है। वहां से यहां बच्चों को रेफर करने पर लम्बी यात्रा के दौरान बच्चों की सेहत और बिगड़ जाती है। यहां पहुंचने पर ओपीडी में एक भी वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं मिलता। ओपीडी की व्यवस्था पूरी तरह से मेडिकल ऑफिसर के भरोसे रहती है।

मेडिकल कॉलेज के 11 डॉक्टर चला रहे हैं अपने अस्पताल
मेडिकल कॉलेज के 3 वरिष्ठ डॉक्टरों ने अपने प्राइवेट अस्पताल खोल रखे हैं। शिकायतें मिलने पर राज्य सरकार ने कुछ दिन पूर्व संभागीय आयुक्त से इसकी जांच कराई थी। इसमें मेडिकल कॉलेज के 11 वरिष्ठ चिकित्सकों के अपने अस्पताल चलाने की पुष्टि हुई थी। इनमें से शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अनुराग सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद शर्मा और डॉ. जेपी सोनी का नाम शामिल था। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इन सभी को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण भी मांगा था।

मौतों का आंकड़ा अंतरराष्ट्रीय मापदंड के अनुरूप- प्रिंसिपल 
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एसएस राठौड़ का कहना है कि बच्चों की मौत का आंकड़ा 3% से कम है। यह अंतरराष्ट्रीय मापदंड के अनुरूप ही है। इसके बावजूद हम इसे कम करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूरे संभाग सहित एम्स तक से बच्चों को इलाज के लिए उनके यहां रेफर किया जाता है। ऐसे में डॉक्टरों पर अधिक दबाव रहता है। हमारे पास पर्याप्त उपकरण व चिकित्सा सुविधा है।

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