कानून में व्यापक बदलाव की तैयारी में केंद्र सरकार, आईपीसी और सीआरपीसी में होगा परिवर्तन

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ब्रिटिश राज में बने आईपीसी और सीआरपीसी जैसे कानून अब अप्रासंगिक हो चुके हैं. आज की जरूरतों के मुताबिक इन कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किया जाएगा.

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लखनऊ: लखनऊ में आयोजित 47वीं साइंस कांग्रेस के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कानूनों में बदलाव के साथ साथ समय के हिसाब से पुलिस का कामकाज बदलने को लेकर भी महत्वपूर्ण बातें कहीं. उन्होंने कहा कि हम आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव करेंगे क्योंकि ये उस वक्त का कानून है जब ब्रिटिश हमपर हुक़ूमत करते थे. ब्रिटिश सरकार की प्राथमिकता भारत के नागरिक नहीं थे, इसलिए जबतक नागरिकों को प्राथमिकता मानकर कानून ना हो, तबतक बेहतर माहौल नहीं हो सकता.

 

अमित शाह ने राज्यों और पुलिस अधिकारियों से कानून में बदलाव के लिए सुझाव मांगा है. शाह ने कहा कि फील्ड में अच्छा बुरा झेलने वाले सब-इंस्पेक्टर से लेकर इंस्पेक्टर तक से सुझाव लेकर हमें बताइये, आपके सुझाव से हम कानून में व्यवहारिक बदलाव लाएंगे.

 

अमित शाह ने कहा कि पुलिसिया व्यवहार को लेकर अक्सर कई तरह के वाकये और किस्से सुनने को मिलते हैं. फिल्मों से लेकर टीवी और अख़बारों में भी पुलिस को लेकर कई तरह की खबरें या बातें सामने आती हैं. इसलिए देश में पुलिस रिफॉर्म से ज़्यादा पुलिसिंग में रिफॉर्म की ज़रूरत है.

 

शाह ने कहा, “लोग दिवाली मना रहे होते हैं, पुलिसकर्मी सुरक्षा में लगे होते हैं. लोग छुट्टी लेकर घर जाते हैं, होली खेलते हैं लेकिन पुलिसकर्मी इस चिंता में रहते हैं कि कहीं कोई दंगा न हो जाए. पुलिस विभाग के 35 हजार जवानों ने अपनी शहादत दी, जिसके बाद इस देश के लोग आज खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं.”

 

गृहमंत्री ने कहा, “हम मोड्स अपरेंडी ब्यूरो बनाने पर विचार कर रहे हैं. नारकोटिक्स ब्यूरो के स्वरूप में हम बदलाव चाहते हैं. उन्होंने कहा कि डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए.”

 

शाह ने कहा कि जब तक प्रॉसिक्यूशन इसकी चिंता नहीं करेगा, अपराधियों को सजा नहीं मिलेगी। हर राज्य में डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन को मजबूत करना चाहिए। जेल मैनुअल का अपग्रेडेशन होना चाहिए. जेलें भी कानून व्यवस्था का हिस्सा हैं.”

 

लखनऊ में पुलिस के अधिकारियों को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ”जनता का पुलिस को और पुलिस का जनता को देखने का नज़रिया बदलना चाहिए. कार्टून और हिंदी फिल्मों में पुलिस का मज़ाक बनता है लेकिन कोई ऐसी सेवा नहीं है जिसमें 35 हज़ार लोगों ने अपनी जान दी हो. ऐसे में पुलिस को मन से काम करना होगा क्योंकि जबतक मन नहीं जुड़ेंगे तो कुछ नहीं हो सकता. भावना अच्छी होना बेहद ज़रूरी है और ये परिवर्तन हम सबको करना होगा.

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