यूपी: 2 पुलिसकर्मियों ने की आत्महत्या, इस साल 19 पुलिसवालों ने मौत को लगाया गले

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में इस साल निरीक्षक से कांसटेबल पद तक के कम से कम 19 पुलिसकर्मी आत्महत्या कर चुके हैं

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अलग-अलग मामलों में 24 घंटों के अंदर दो पुलिसकर्मियों ने आत्महत्या कर ली. सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के उप निरीक्षक रमेश चौधरी (40) बहराइच जिला में भारत-नेपाल सीमा पर तैनात थे. उन्होंने कथित रूप से सोमवार को अपनी सरकारी राइफल से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली.

चौधरी को एसएसबी की 70वीं बटालियन के कटरनिया घाट चौकी पर 15 दिन पहले तैनात किया गया था. सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी) रवींद्र सिंह ने कहा कि चौधरी को मिहीपुरवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. दूसरे मामले में बुलंदशहर में तैनात उत्तर प्रदेश पुलिस के कांस्टेबल शेर सिंह धामा सोमवार को अपने आवास पर अपनी सरकारी रिवॉल्वर से गोली मारकर आत्महत्या कर ली. धामा बागपत जिला के खेकड़ा गांव के निवासी थे. मौके पर कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ और विभाग को धामा के इस कदम के पीछे का कारण नहीं पता है.

पुलिस के अनुसार, 2011 बैच के कांसटेबल धामा रविवार रात अपने रिश्ते के भाई दीपू के जन्मदिन की पार्टी से लौटकर सोने चले गए. दीपू भी उसी घर में सो रहा था, लेकिन उसने गोली चलने की आवाज नहीं सुनी. बुलंदशहर के एसपी (नगर) अतुल श्रीवास्तव ने कहा कि आत्महत्या का कारण अभी पता नहीं चला है, लेकिन प्राथमिक नजर में लगता है कि वे घरेलू विवाद के चलते तनाव में थे.

इस साल 19 ने की आत्महत्या

 

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में इस साल निरीक्षक से कांसटेबल पद तक के कम से कम 19 पुलिसकर्मी आत्महत्या कर चुके हैं, जिससे ड्यूटी के दौरान उनपर होने वाले दवाब और तनाव पर अपने आप ध्यान जाता है. उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी. सिंह ने हाल ही में कहा था कि विभाग में आत्महत्याओं के बढ़ते मामले चिंता का विषय हैं.

उन्होंने कहा, “परिवार के मुखिया के तौर पर मैं पुलिसकर्मियों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं के बारे में जानकर बहुत दुखी हूं.”

उन्होंने कहा था, “ज्यादातर मामलों में आत्महत्या जैसा कदम उठाने के पीछे निजी मामला होता है. उत्तर प्रदेश एक बड़ा बल है और हमने अपने पुलिसकर्मियों की भलाई के लिए उनके प्रमोशन, आवास और काम करने के माहौल के संबंध में पिछले दो साल में कई कदम उठाए हैं.”

 

इन मामलों पर बढ़ती चिंताओं को देखते हुए विभाग पेशेवर मनोवैज्ञानिकों से भी सेवाएं लेने की योजना बना रही है. ये मनोवैज्ञानिक यह जांच करेंगे कि क्या पुलिसकर्मी तनाव या दवाब से गुजर रहे हैं या नहीं. और इसके बाद उन्हें जरूरी उपचार दिया जाएगा.

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